विपक्षी गठबंधन पांच चरणों में कमजोर साबित हुआ था, साल 2019 में भाजपा ने चौथे चरण तक नहीं खुलने दिया था, खाता
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव पहले की तरह ही सात चरणों में होगा। पिछली बार पहले और छठवें चरण के अलावा विपक्षी समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन का प्रदर्शन खराब रहा था। चौथे चरण में तो भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षी गठबंधन का खाता तक नहीं खुलने दिया था। चुनाव पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ा तो पहले चरण के बाद ही विपक्षी गठबंधन का प्रदर्शन बेहद खराब होता गया।
साल- 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 62, उसके सहयोगी अपना दल को दो, बहुजन समाज पार्टी को 10, समाजवादी पार्टी को पांच और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। साल- 2019 के लोकसभा चुनाव को चरणवार देखें तो पहले चरण की आठ सीटों में से पांच सपा-बसपा गठबंधन के खाते में गईं। भाजपा को तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। पश्चिमी क्षेत्र की इन सीटों पर सपा-बसपा गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ा था, लेकिन दूसरे चरण में यह प्रदर्शन नहीं दोहराया जा सका।
सिर्फ अमरोहा सीट पर बसपा जीत सकी। सात सीटें भाजपा ने जीती। तीसरे चरण की 10 सीटों में दो सपा को मिलीं। अन्य आठ सीटें भाजपा को मिली थी। चौथे चरण की सभी 13 सीटों में भाजपा ने जीत दर्ज की। पांचवें चरण में भी कमोबेश यही हाल रहा। हालांकि गठबंधन वाली रायबरेली सीट जरूर कांग्रेस के खाते में गई।
छठवें चरण में सपा-बसपा गठबंधन की स्थिति कुछ सुधरी। इस चरण की 14 सीटों में से पांच सपा-बसपा गठबंधन ने जीतीं।शेष नौ सीटें भाजपा ने जीती।सातवें और अंतिम चरण की 13 सीटों में दो सीटें बसपा को मिलीं।मिर्जापुर और राबर्ट्सगंज एनडीए में शामिल अपना दल के खाते में गईं। बची नौ सीटें भाजपा के खाते में रहीं।
इस तरह से देखें तो इंडिया गठबंधन को दूसरे, तीसरे, चौथे और सातवें चरण में भाजपा के सामने अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की चुनौती होगी। इसके लिए कारगर रणनीति बनानी होगी। वहीं बसपा के सामने भी इस चुनाव में अपना वोट बैंक साधे रखने की चुनौती रहेगी। इस चुनाव में जहां भाजपा अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ ही पसमांदा मुस्लिमों के वोटों को भी हासिल करने की रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है तो वहीं सपा पीडीए के समीकरणों के साथ मैदान में उतर रही है। अब कौन कितना सफल होता है। यह तो चार जून को परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा।