शिक्षित बेरोजगारों के साथ हुआ खिलवाड़ साक्षी बन गया विधायक का मौर्या रिसार्ट, विधायक की छवि हुई खराब
PRATAPGARH चिलबिला निवासी युवा आत्म निर्भर ने मोदी के सपनो को साकार करने का प्रयास किया था और ऐसे में जिले के एक मात्र भाजपा विधायक ने अपने बेटे के बराबर किया सहयोग जो उनकी उदारता, सजन्नता और युवाओं के प्रति संवेदना का है परिचायक। पर किसके मन में क्या है ? ये किसे पता होता है और यही किया उस युवा ने, जिसका नाम है, शिवम जायसवाल।
शिवम जायसवाल के काले कारनामें से विधायक का मौर्या रिसार्ट और परिवार हुआ बदनाम
नकली तंबाकू की तस्करी का सरगना शिवम जायसवाल और विधायक के बड़े पुत्र आशीष मौर्या उर्फ पिंटू के बीच याराना से बच्चा-बच्चा वाकिफ है। विधायक पुत्र आशीष मौर्य उर्फ पिंटू कम हरफन मौला नहीं हैं। मुंगेरी लाल वाले सपनो में उन्हें कितनी सफलता मिलती है, ये भगवान जाने ! उनकी शेख चिल्ली की दुनिया में कई लोगों का जखीरा हर वक्त परेशानियों का सबब बना रहता है। खाने में गर्म मसाला के तेजपत्ता और धनिया की तरह कभी-कभी स्वादानुसार नमक की तरह लोगों को अपने हित के लिए प्रयोग कर लेना विधायक जी के सुपुत्र के शगल से भी पब्लिक अब धीरे-धीरे वाकिफ हो रही है।
ईमानदार चरित्रवान कर्मठ मधुर स्वभाव के विधायक जी की प्रतिष्ठा बड़े पुत्र आशीष मौर्या उर्फ पिंटू के कारनामों से दांव पर लगी रहती है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा से टिकट लाने में विधायक के बड़े पुत्र आशीष मौर्या उर्फ पिंटू का हाथ रहा। परन्तु अब आशीष मौर्या उर्फ पिंटू के कारनामों से विधायक राजेंद्र मौर्य काफी असहज और मजबूर दिखने लगे हैं। विधायक के बड़े पुत्र आशीष मौर्या उर्फ पिंटू की सामाजिक गतिबिधि अच्छी नहीं है। जिसकी वजह से विधायक जी के परिवार में कलह बढ़ती जा रही है और वह धीरे-धीरे नासूर का रूप लेने लगी है।
परिवार के लोग एक प्रकरण को भुला नहीं पाते कि दूसरा प्रकरण मुंह फाड़ कर खड़ा हो जाता है। पड़ोसी युवा तस्कर ने मित्रता के नाम पर फिर विधायक पुत्र आशीष मौर्या को अपने चंगुल में फंसाया और चतुर चालाक, पर मन के भोले पिंटू जी ने खुलेआम लखनऊ विधायक निवास से चिलबिला स्थित अपने आवास और श्रीराम वाटिका सहित मौर्या रिसार्ट के सभी दरवाजे निष्कपट भाव से खोल दिए। अंधे को क्या चाहिए, दो आंख बस ! इस कहावत को अमली जामा पहनाया शातिर शिवम जायसवाल ने ! उसे खुद को स्थापित करने के लिए सारे उपकरण पिंटू मौर्या के रूप में घर में ही मिल गया और शिवम जायसवाल ने अपनी वकालत की पढ़ाई का लाभ लेते हुए अपनी योजना को अमली जामा पहनाने की नियत से रचा शिवम फाउन्डेशन नामक ट्रस्ट।
शिवम फाउन्डेशन के संस्थापक शिवम जायसवाल के पहले ही प्रयास में उसे सफलता मिल गई, क्योंकि मछली की सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए जाल बिछाया ही गया था। सभी जरूरी कार्यवाही दो भागों में दो प्रांतों में पूरी तैयारी के साथ गतिमान रही, जिसमें संवैधानिक दर्जा प्राप्त गतिविधि में मुक्त हस्त समर्थन शिवम जायसवाल को जनपद में विधायक पुत्र की झंडा बरदारी के कारण मिलता रहा। कौशल प्रशिक्षण केंद्र उत्तर प्रदेश और आलू गोदाम दिल्ली की असलियत उजागर तब हुई, जब नोएडा में पकड़ी गई 2 करोड़ कीमत की नकली तम्बाकू जो के ट्रक से लोड होकर साउथ इंडिया जा रही थी। जिसकी खबर भारत के कई राज्यों में फैली तो मास्टर माइंड निकला शिवम फाउन्डेशन नामक ट्रस्ट का मालिक शिवम जायसवाल।
यक्ष प्रश्न यह है कि शिवम जायसवाल के पास इतना धन, इतने कम समय में कहां से आया ? सूत्रों की माने तो अकेले प्रतापगढ़ जनपद में करोंड़ों रूपये की सम्पत्ति का बैनामा शिवम जायसवाल ले चुका है। परन्तु प्रतापगढ़ का आयकर विभाग कुम्भकरनी नींद में सो रहा है। जबकि बैनामा का रजिस्ट्रेशन कराते समय क्रेता और बिक्रेता का पैन और आधार सहित बैंक खाते के लेनदेन का जिक्र भी अंकित रहता है। इतने के बाद भी आयकर विभाग के कान पर जून नहीं रेंगी। जिले में आयकर विभाग सिर्फ बड़े खातेदारों से ही मतलब रखता है। महज दो वर्षों में विधायक बनने के बाद राजेंद्र मौर्य उर्फ काका की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने का कार्य उनके बड़े बेटे पिंटू मौर्या ही कर रहे हैं।
ऐसे में विधायक जी अपने बड़े पुत्र के कारनामों से हैरान व परेशान हैं। उसी परेशानी में विधायक के प्रतिनिधि उनके सगे भांजे अरुण मौर्या और उनकी टीम द्वारा पीडब्लूडी के अवर अभियन्ता से मारपीट और धन उगाही के आरोप का मुकदमा दर्ज होने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि मौर्या रिसार्ट में निःशुल्क रूप से कौशल प्रशिक्षण केंद्र उत्तर प्रदेश का संचालक शिवम जायसवाल द्वारा दिल्ली के वजीराबाद में नकली तम्बाकू की तस्करी का मामला रहा हो। सभी मामलों में विधायक राजेंद्र मौर्या की खुलेआम बेइज्जती हुई। जबकि प्रतापगढ़ के विधायक राजेंद्र मौर्या की तुलना यदि UPA के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से की जाए तो ईमानदारी और सज्जनता में समान ही मिलेंगे।
ऐसे में शिवम जयसवाल ने खुद क्या पाया, क्या खोया ? ये मामला न्यायिक निर्णय से ही तय होगा। पर इस प्रकरण में विधायक राजेंद्र मौर्या काफी असहज हुए। विधायक जी अपने बड़े पुत्र और भांजे प्रतिनिधि के कारगुजारी से क्या-क्या गंवा रहे हैं, ये तो सत्ता में रहने के कारण पर्दे के पीछे छुपा है। फिर भी बिल्ली के गले में घंटी बांधने के यक्ष प्रश्न का उत्तर अब हर शिक्षित बेरोजगार अपने-अपने स्तर पर दे रहा है। लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ की सीट फंसी हुई नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव-2027 में राजेन्द्र मौर्या टिकट पाते हैं अथवा चुनाव लड़ने से पहले ही पार्टी स्तर से ही उनका कट जाता हैं, यह तो वक्त तय करेगा। चुनाव की रणभेरी बजने के बाद अब अगर न खाऊंगा, न खाने दूंगा की तुतुहरी बजी तो विधायक जी की छवि सुधारने में काफी हद मेहनत करनी पड़ सकती है ।