अमेठी संसदीय सीट पर कांग्रेस में अभी भी उहापोह की स्थिति, बहन प्रियंका वाड्रा लड़ेगी अमेठी सीट से चुनाव या राहुल गांधी ही होंगे उम्मीदवार, सस्पेंस कायम

यूपी की इस हॉट सीट पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। अमेठी लोकसभा सीट पर पांचवें चरण में वोटिंग है, जिसके लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राहुल गांधी के साल- 2024 के लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। बीजेपी और बसपा ने भी अमेठी सीट से अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है। 

साल- 1967 में अस्तित्व में आई थी, अमेठी संसदीय सीट

उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट साल- 1967 में अस्तित्व में आई थी और कांग्रेस के प्रत्याशी ने यहाँ से पहला चुनाव जीता था। कांग्रेस की ओर से विद्याधर वाजपेयी ने जीत हासिल की थी। इसके बाद साल- 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में भी विद्याधर वाजपेयी अमेठी सीट से विजयी रहे थे। साल- 1977 में कांग्रेस ने इस सीट से अपना उम्मीदवार बदलने का फैसला किया और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी को चुनावी मैदान में उतार दिया। अमेठी सीट से संजय गांधी का सामना जनता पार्टी के उम्मीदवार रवींद्र प्रताप सिंह से हुआ था। चुनावी नतीजे रवींद्र प्रताप सिंह के पक्ष में आए और संजय गांधी को अपने पहले ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

अमेठी का चुनावी इतिहास…

साल- 1980 में अमेठी संसदीय सीट से इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी जीते थे, चुनाव

संजय गांधी को पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, परन्तु इस हार से आहत हुए बिना संजय गांधी अमेठी में लगे रहे और साल- 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार रवींद्र प्रताप सिंह को पटखनी देकर पहली हार का बदला लिया। इसके कुछ ही महीनों बाद संजय गांधी की विमान दुर्घटना में संदिग्ध रूप से मौत हो गई। संजय गांधी की विमान दुर्घटना से मौत से कांग्रेस काफी असहज और कमजोर हुई। फ़िलहाल संजय गांधी की मौत से आजतक पर्दा नहीं उठा सका, जबकि उनकी माँ इंदिरा गांधी स्वयं देश के प्रधानमंत्री रही। फिर भी बेटे की मौत रहस्य बनकर रह गई।

साल- 1984 से साल- 1991 तक राजीव गांधी अमेठी के सांसद निर्वाचित होते रहे

संजय गांधी की मौत के बाद बड़े भाई राजीव गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ने का मन बनाया और साल- 1984 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतर गए। इस दौरान राजीव गांधी का सामना संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी से हुआ। चुनाव में भाभी को देवर के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद धीरे-धीरे अमेठी कांग्रेस का गढ़ बनती चली गयी। साल- 1989 का लोकसभा चुनाव हो या 1991 का दोनों बार राजीव गांधी को अमेठी की जनता ने सर आंखों पर बैठाया। अमेठी की जनता में राजीव गांधी के प्रति अलग स्नेह और प्यार रहा जो दूसरे नेता उसे प्राप्त न कर सके।

साल- 1996 में कांग्रेस ने सतीश शर्मा को अमेठी संसदीय सीट से बनाया था, उम्मीदवार

साल- 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई तो कांग्रेस ने उनके ही करीबी सतीश शर्मा को मैदान में उतारने का फैसला किया। सतीश शर्मा भी कांग्रेस की उम्मीदों पर खड़े उतरे और साल- 1996 के लोकसभा चुनाव में जीत गए। हालांकि साल- 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर सेंध लगाई और संजय सिंह ने सतीश शर्मा  को पटखनी दे दी।

साल- 1999 में अमेठी संसदीय सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी बनी सोनिया गांधी बन गई थी, सांसद

राजीव गांधी की मौत से आहात सोनिया गांधी राजनीति से स्वयं को कई साल दूर रखा। चूँकि उस समय उनके दोनों बच्चे छोटे थे और वह किसी तरह का रिस्क लेना नहीं चाहती थी। कांग्रेस की बिगड़ती दशा से तंग आकर सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान खुद अपने हाथों में ली। साल-1999 में लोकसभा चुनाव हुए और इस बार खुद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ने का फैसला किया। सोनिया गांधी का यह फैसला कांग्रेस के हित में गया। उन्होंने करीब 3 लाख वोटों से जीत हासिल कीं।

साल- 2004 से साल- 2014 तक अमेठी संसदीय सीट से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी स्वयं मैदान में उतरे थे 

अमेठी संसदीय सीट पर गांधी परिवार की अब तक मुहर लग चुकी थी। साल- 2004 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अपने चुनावी सफर की शुरुआत अमेठी संसदीय सीट से की थी। राहुल गांधी ने 2 लाख, 90 हजार, 853 वोट के अंतर से जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी कांग्रेस के पक्ष में रहे। साल- 2014 में भी राहुल गांधी अमेठी संसदीय सीट से जीते थे। यहां तक साल- 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच भी कांग्रेस इस सीट को जीतने में कामयाब रही। बस जीत का अंतर कम हो गया था। इस चुनाव में राहुल गांधी ने BJP उम्मीदवार स्मृति ईरानी को 1 लाख, 7 हजार, 903 वोटों के अंतर से पटखनी दी थी। लेकिन अपनी इस हार से आहत हुए बिना स्मृति ईरानी लगातार इस क्षेत्र में डटी रहीं।

अमेठी संसदीय सीट पर शुरू से कांग्रेस का दबदबा रहा, परन्तु साल-2019 के चुनाव में भाजपा की स्मृति इरानी ने जीता लिया, चुनाव 

साल- 2019 के लोकसभा चुनाव में वे राहुल गांधी को इस सीट से हराने में कामयाब रहीं। कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेठी पर शुरू से ही कांग्रेस का दबदबा रहा है और इसे कांग्रेस का गढ़ भी कहा जाता है। लेकिन कांग्रेस अब इस सीट को गंवा चुकी है। ऐसे में पार्टी फिर से इस सीट पर अपना कब्जा जमाने के प्रयास में लगी हुई है। लिहाजा कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस इस बार फिर राहुल गांधी को इस सीट पर उम्मीदवार बना सकती है। अगर वास्तव में ऐसा होता है तो कांग्रेस की विरासत बचाने की राहुल गांधी के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी होगी।

साल-2024 के चुनाव में राहुल गांधी या उनकी बहन प्रियंका वाड्रा लड़ेगी अमेठी से चुनाव, इस पर अभी भी संस्पेंस बराकर 

कांग्रेस अमेठी सीट पर 43 साल पुराने इतिहास को दोहराती हुई नजर आ रही है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल दावा करते हैं कि राहुल गांधी ही अमेठी सीट से चुनाव लड़ेंगे। उनका कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब नामांकन शुरू होने पर भी पार्टी का प्रत्याशी मैदान में नहीं है। साल- 1981 में भी कांग्रेस ने नामांकन शुरू होने के बाद राजीव गांधी के नाम की घोषणा की थी। इस तरह से राहुल गांधी के नाम की घोषणा होगी। अमेठी में इस बार कांग्रेस के पक्ष में पूरी तरह से माहौल है और राहुल गांधी रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करेंगे। ऐसे में कांग्रेस जल्द ही उम्मीदवार के नाम का ऐलान करेगी।

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