Loksabha_Election_2024: आईये जाने सूबे की प्रतापगढ़ लोकसभा सीट का संसदीय इतिहास, वहां का जातिगत समीकरण और चुनावी आंकड़ों की गुणा-गणित

भारत के पहले आम चुनाव के बाद 17 अप्रैल, 1952 को पहली लोकसभा का गठन किया गया था। पहली लोकसभा ने अपना पूरा कार्यकाल पांच साल तक चलाया और 4 अप्रैल, 1957 को भंग कर दिया गया। इस लोकसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को शुरू हुआ।

राजघरानों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही प्रतापगढ़ की सियासत, अब किंग क्यों बन रहे किंगमेकर ?

प्रतापगढ़। जगत जननी मां बेल्हा देवी के दर्शनीय स्थल के साथ सई नदी के किनारे बसा प्रतापगढ़ लोकसभा सीट कई मायनों में बेहद ही महत्वपूर्ण है। सुल्तानपुर और इलाहाबाद के बीच बसा प्रतापगढ़ की लोकसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन कई दशकों से यहां दूसरी पार्टियां भी आती जाती रही हैं। साथ ही प्रतापगढ़ आंवला उत्पादन के लिए बेहद मशहूर है। प्रतापगढ़ की सियासत राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। राजघरानों से यदि सीट बाहर गई तो ठाकुर और ब्राह्मण समुदाय का ही कब्जा रहा। यहां की राजनीति में सिर्फ दो बार गैर सवर्ण यहां से सांसद बन सका।

लोकसभा सीट प्रतापगढ़ का संसदीय इतिहास

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट साल- 1952 में अस्तित्व में आई है। आजादी के बाद साल – 1952 में कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे थे। 17 चुनावों में कांग्रेस ने बार चुनाव जीता है। साल- 1962 में हुए चुनाव में भारतीय जनसंघ से राजा अजीत प्रताप सिंह ने कांग्रेस को मात दे दी। साल- 1967 के चुनाव में कांग्रेस से कालाकांकर के राजा दिनेश सिंह चुनाव जीते और कांग्रेस की वापसी कराई। इसके बाद साल- 1971 राजा दिनेश प्रताप सिंह कांग्रेस से सांसद बने। राजा दिनेश प्रताप सिंह कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री भी रहे। साल- 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी से रूप नाथ सिंह यादव संसद पहुंचे।

साल- 1980 के चुनाव में जनसंघ छोड़कर राजा अजीत प्रताप सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी बने और चुनाव जीते। साल- 1984 और साल- 1989 के चुनाव में राजा दिनेश सिंह दुबारा चुनाव जीते, लेकिन साल- 1991 के चुनाव में जनता दल से प्रतापगढ़ के राजा अभय प्रताप सिंह सांसद बने। साल- 1996 के चुनाव में राजा दिनेश सिंह कि बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बनी। साल- 1998 के चुनाव में यहां बीजेपी का खाता खुला और राम विलास वेदांती यहां से सांसद बने, लेकिन अगले ही साल साल- 1999 में हुए चुनाव में राजकुमारी रत्ना सिंह दुबारा चुनाव जीत गई। साल- 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा का यहां खाता खुला और अक्षय प्रताप सिंह यहां से सांसद बने।

साल- 2009 के चुनाव में कांग्रेस की रत्ना सिंह तीसरी बार यहां से सांसद बनी। वहीं साल- 2014 के चुनाव में बीजेपी और अपना दल के बीच हुए गठबंधन में यह सीट अपना दल के खाते में चली गई और अपना दल के टिकट से कुंवर हरिवंश सिंह चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। साल- 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। बीजेपी से संगम लाल गुप्ता और सपा-बसपा गठबंधन की ओर बसपा ने अशोक कुमार त्रिपाठी को अपना उम्मीदवार था। कांग्रेस से राजकुमारी रत्ना सिंह मैदान में उतरे थे। राजा भईया ने साल-2018 में जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया था। जनसत्ता दल से राजा भईया के चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह “गोपाल जी” भी चुनवे मैदान में कूद पड़े थे।

लोकसभा क्षेत्र प्रतापगढ़ सीट की 5 विधानसभा सीटें

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आती हैं- रामपुरखास, विश्वनाथगंज, प्रतापगढ़ सदर, पट्टी और रानीगंज। मौजूदा समय में रामपुरखास कांग्रेस के पास, विश्वनाथगंज अपना दल एस के पास, जबकि पट्टी और रानीगंज सपा के पास हैं। प्रतापगढ़ सदर सीट बीजेपी के पास है। इस तरह सपा और कांग्रेस के साथ आने पर भी डॉ एसपी पटेल भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। प्रतापगढ़ संसदीय सीट पर ठाकुर और कुर्मी मतदाताओं के साथ-साथ ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं। साल-2019 के लोकसभा चुनाव में कई संसदीय सीटों पर बसपा का वोट सपा के प्रत्याशी के खाते में नहीं गया, बल्कि भाजपा में चला गया। उसी तरह कांग्रेस का वोटबैंक सपा में जाता दिखाई नहीं दे रहा है।

लोकसभा सीट जौनपुर में मतदाताओं की संख्या

इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर कुल 18 लाख, 33 हजार, 312 वोटर अपने मत का प्रयोग करेंगे, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या- 9 लाख, 70 हजार, 13 हैं, जबकि महिला वोटरों की संख्या- 8लाख, 63 हजार, 294 है। वहीं ट्रांस जेंडर वोटरों की संख्या 26 हैं।

प्रतापगढ़ में ठाकुरों का दबदबा

संसदीय सीट प्रतापगढ़ पर अब तक हुए 17 चुनावों में 11 बार राजघरानों का ही कब्जा रहा और सबसे ज्यादा सांसद ठाकुर समाज से हुए हैं, लेकिन साल-2024 के चुनाव में पहली बार है, जब न कोई राज परिवार से चुनाव लड़ रहा और न ही कोई ठाकुर समाज से मैदान में है। इस तरह से प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर पहली बार ‘किंग’ किंग मेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं। प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद संगम लाल गुप्ता को उतारा है। संगम लाल गुप्ता का मुकाबला समाजवादी पार्टी के डॉ एसपी सिंह पटेल और बसपा प्रत्याशी प्रथमेश मिश्रा से है। बीजेपी को अपना दल (एस) का समर्थन है तो सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन है। बसपा अकेले चुनावी मैदान में है।

प्रतापगढ़ में अहम भूमिका रखने वाले जनसत्ता दल के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं है, जिसके चलते वो कहने के लिए वह न्यूट्रल हैं और अपने समर्थकों के अपनी मर्जी से वोट डालने के लिए कह दिया है। परन्तु राजकीय इंटर कालेज में जनसत्ता दल का झंडा और बैनर लेकर पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव की जनसभा में हिस्सा लिए, परन्तु सपा की जनसभा में उन्हें वह सम्मान न मिला जिस अपेक्षा के साथ वहां पहुँचे थे। अखिलेश यादव अपने भाषण में न तो राजा भईया का नाम लिया और न ही उनके दल का नाम लिया, जिससे राजा भईया समर्थकों में घोर निराशा हुई।

हालांकि, प्रतापगढ़ सीट से बीजेपी प्रत्याशी संगम लाल गुप्ता ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा विरोध इसलिए हो रहा है, क्योंकि मैं तेली समाज से आता हूं। राजाओं के गढ़ में किसी तेली को सांसद नहीं बनने देना चाहते हैं। क्या क्षत्रिय ही यहां से सांसद बनेगा ? इससे पहले केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कुंडा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अब राजा किसी रानी के पेट से पैदा नहीं होता हैं, बल्कि ईवीएम से पैदा होता है। इन दोनों बयान का कौशांबी सीट पर ही प्रभाव नहीं पड़ा, बल्कि प्रतापगढ़ का भी सियासी समीकरण बदला हुआ नजर आ रहा है।

प्रतापगढ़ में राजघराने का वर्चस्व रहा

प्रतापगढ़ सीट पर 17 लोकसभा चुनाव में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्य जीतने में सफल रहे थे। इससे यहां की सियासत में राजघरानों-रियासतों की भूमिका को समझा जा सकता है। कालाकांकर राजघराने के राजा दिनेश सिंह चार बार सांसद बने, जबकि उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद चुनी गईं। प्रतापगढ़ राजघराने के अजीत प्रताप सिंह दो बार और उनके बेटे अभय प्रताप सिंह एक बार लोकसभा चुनाव जीते। राजा अजीत प्रताप सिंह पहली बार जनसंघ के टिकट पर जीते और उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर, जबकि अभय प्रताप सिंह ने साल- 1991 में जनता दल से जीत हासिल की थी। जामो रियासत से जुड़े कुंवर अक्षय प्रताप सिंह को प्रतापगढ़ सीट से समाजवादी पार्टी के सिम्बल से एक बार ही जीत मिली थी और सपा का खाता खुल सका था। चार बार मुख्यमंत्री की कमान सँभालने वाली मायावती की बसपा, प्रतापगढ़ से अपना खाता भी नहीं खोल सकी।

सिर्फ दो बार प्रतापगढ़ में पिछड़ी जाति से सांसद चुने गए

आजादी के बाद साल- 1952 में बनी प्रतापगढ़ की सीट पर पहली बार कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि साल- 1962 में जनसंघ से राजा अजीत प्रताप सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद साल- 1971 में कांग्रेस के नेता राजा दिनेश सिंह यहां के सांसद बने। आपातकाल के बाद साल- 1977 में हुए चुनाव में प्रतापगढ़ सीट पर जनता पार्टी के रूपनाथ सिंह यादव मैदान में उतरे और राजा दिनेश सिंह को मात देने में सफल रहे। प्रतापगढ़ सीट पहली बार ओबीसी से रूपनाथ सिंह यादव को सांसद चुना गया, लेकिन उसके बाद साल- 2019 में करीब 42 साल के बाद ओबीसी समाज से आने वाले बीजेपी से संगम लाल गुप्ता सांसद बने।

प्रतापगढ़ का बदला सियासी मिजाज

पूर्वी उत्तर प्रदेश में सई नदी के बीच प्रतापगढ़ का सियासी मिजाज बदल गया। दलित, ब्राह्मण और ओबीसी मतदाता बहुल वाली प्रतापगढ़ सीट की राजनीति सियासी प्रयोगों और बदलावों के दौर से गुजर रही है। पहली बार है कि प्रतापगढ़ सीट पर न ही कोई राजा चुनावी मैदान में उतरा है और न ही ठाकुर समुदाय से कोई प्रत्याशी है। बीजेपी ने साल- 2019 में संगम लाल गुप्ता को उतारकर प्रतापगढ़ सीट पर ठाकुर और राजा घराने के वर्चस्व को तोड़ने में कामयाब रही थी। तेली समुदाय से आने वाले संगम लाल गुप्ता साल- 2019 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राज कुमारी रत्ना सिंह और जनसत्ता दल के अक्षय प्रताप सिंह के मात देने में कामयाब रहे।

बीजेपी ने एक बार फिर से संगम लाल गुप्ता को उतारा है, जिनके खिलाफ सपा ने डॉ एसपी सिंह पटेल और बसपा से प्रथमेश मिश्रा मैदान में है। एसपी सिंह पटेल की कोशिश कुर्मी, यादव, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक के सहारे जीत दर्ज करने की है, तो संगम लाल गुप्ता पूरी तरह से मोदी-योगी के सहारे अपनी जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं। बसपा के उतरे प्रथमेश मिश्रा ब्राह्मण और दलित समीकरण के सहारे अपनी जीत की आस लगाए हुए हैं। संगम लाल गुप्ता के बयान से बदले प्रतापगढ़ के सियासी समीकरण में ठाकुर वोटर निर्णायक भूमिका में नजर आ रहे हैं। ब्रह्मण यदि बसपा में नहीं गया तो वह भाजपा में अपना वोट करेगा और संगम लाल गुप्ता दूसरी बार प्रतापगढ़ से सांसद बन जायेंगे।

सियासत में रियासत का घटता वजूद और जनप्रतिनिधियों में प्रतिस्पर्धा से आम मतदाता नहीं रखते उनके द्वारा जारी दिशा-निर्देश 

प्रतापगढ़ के सियासत की धुरी राज्यसभा सांसद प्रमोद कुमार, कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह और राजकुमारी रत्ना सिंह मानी जाती हैं। इसके अलावा राम सिंह और डॉ. एसके पटेल जैसे कुर्मी विधायक भी अपनी एक अलग सियासी अहमियत रखते हैं। अनुप्रिया पटेल का कुर्मियों के बीच दबदबा रहा है, लेकिन डॉ. एसपी सिंह पटेल के उतरने के बाद कुर्मी समुदाय उनके पीछे लामबंद नजर आ रहा है। प्रमोद कुमार प्रतापगढ़ में ब्राह्मण चेहरे माने जाते हैं, तो राजा भैया से लेकर राजकुमारी रत्ना सिंह और मोती सिंह की ठाकुर समुदाय के बीच पकड़ मानी जाती है। प्रमोद कुमार का रामपुर खास विधानसभा सीट पर एकछत्र राज है, जहां ब्राह्मण से लेकर मुस्लिम और दलित तक उनके साथ खड़ा नजर आता है। इसके अलावा प्रतापगढ़ सदर, विश्वनाथगंज और रानीगंज के ब्राह्मणों में भी ठीक-ठाक पहचान है।

कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन होने से प्रमोद तिवारी पूरी मशक्कत के साथ एसपी सिंह पटेल को जिताने की कवायद में लगे हैं। परन्तु 23 मई को सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव की जनसभा में जिस तरह कांग्रेस और प्रमोद कुमार की बेइज्जती हुई उससे कांग्रेस के वोटर मतदान से पहले विदक गया है। एक बार न तो कांग्रेस का नारा लगा और न ही प्रमोद कुमार और उनकी विधायक बेटी मोना मिश्र के पक्ष में नारा लगा। पूरी जनसभा में कांग्रेस का झन्डा और बैनर भी नहीं दिखा। मंच पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद कुमार को वो तवज्जों नहीं दी गई, जिसकी वह अपेक्षा रखते थे।

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट का जातीय समीकरण

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर सबसे बड़ी संख्या दलित मतदाताओं की है। माना जाता है कि करीब 18 फीसदी ब्राह्मण हैं, तो 14 फीसदी कुर्मी, 17 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी यादव, 13 फीसदी दलित हैं। इसके अलावा 10 फीसदी के करीब ठाकुर वोटर हैं, जबकि 13 फीसदी अन्य समुदाय के वोट हैं, जिनमें मौर्य, पाल और वैश्य समुदाय सहित अन्य बिरादरी हैं। जातीय समीकरण के लिहाज से प्रतापगढ़ सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। क्योंकि भाजपा को सभी वर्ग और जाति का वोट मिलता है। बसपा दलित-ब्राह्मण समीकरण बना रही है, लेकिन बीजेपी और सपा के बीच सीधी लड़ाई होने के चलते लड़ाई से बाहर नजर आ रही है।

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