डॉ शाहिदा, प्रबन्धक, न्यू एंजिल्स स्कूल, प्रतापगढ़... साहित्य अब सिलसिला तन्हाइयों का रह गया है, यादों के सिवा पिंजड़े मे कुछ भी नहीं है By Ramesh Tiwari Rajdar Last updated Sep 25, 2024 186 ग़ज़ल तेरे बग़ैर ये दुनिया कुछ भी नहीं है चारों तरफ़ अंधेरा है कुछ भी नहीं है अब सिलसिला तन्हाइयों का रह गया है यादों के सिवा पिंजड़े मे कुछ भी नहीं है हर सिम्त ख़ामोशी दिल भी डरा हुआ है आहट है सिर्फ़ सांसों की कुछ भी नहीं है इक आइने के टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं चेहरे हज़ार दिखते पर कुछ भी नहीं है दरया बनी अश्कों भरी आंखें हमारी बस इन्तजार आपका औ कुछ भी नहीं है ईमान की ताक़त से मंज़िल भी मिलेगी बस लौ लगाए रक्खो औ कुछ भी नहीं है कश्ती यहां सफ़ीना भी उस पार है जाना कांधा ज़रा लगाना, अब कुछ भी नहीं है डॉ शाहिदा गजल 186 Share