यूपी में 17 जातियों को मिलेगा SC दर्जा! योगी सरकार ने निकाला ये नया रास्ता, मॉनसून सत्र में पेश होगा प्रस्ताव

लखनऊ : हाईकोर्ट से ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का नोटिफिकेशन रद होने के बाद योगी सरकार ने अब नया रास्ता निकाल लिया है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ संजय सिंह ने कहा है कि सरकार मॉनसून सत्र में ही 17 जातियों के आरक्षण का प्रस्ताव यूपी विधानसभा से पास करवाकर केंद्र को भेज देगी। संसद के दोनों सदनों में मंजूरी के बाद इन जातियों को भी यूपी में अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र मिलने लगेंगे। बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डॉ संजय निषाद ने बताया कि मंगलवार की शाम इस मुद्दे पर उनकी सीएम योगी से बात हुई है। सीएम ने समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण के साथ मिलकर एक हफ्ते में इस प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं।

संजय ने स्पष्ट किया कि जिन जातियों के आरक्षण का मामला चल रहा है, वह सिर्फ 17 ही हैं न कि 18। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली कांग्रेस, सपा और बसपा की सरकारें केवल समाज को गुमराह करने के लिए इन 17 जातियों (निषाद, केवट, मल्लाह, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैंकवार, तुरैहा, बाथम, भर, राजभर, धीमर, प्रजापति, कुम्हार, मांझी और मछुआ) को पिछड़ी जातियों से निकालकर अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल करने को लेकर अधिसूचना जारी करती रहीं।

मछुआ समुदाय की 17 उपजातियों को सिर्फ परिभाषित करना है

डॉ निषाद ने यह भी स्पष्ट किया कि इन 17 जातियों को पिछड़ी जातियों से निकालकर अनुसूचित जाति में शामिल नहीं करना है, बल्कि मछुआ समुदाय की 17 उपजातियों को उत्तर प्रदेश में सिर्फ परिभाषित किया जाना है। यूपी में अनुसूचित जाति की सूची में क्रमांक 53 पर मझवार और क्रमांक 66 पर तुरैहा जाति शामिल हैं। यह दोनों मछुआ समुदाय की ही जातियां हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति की ओर से 1961 में जारी आदेश में इन दोनों जातियों की उपजातियों को पारिभाषित करने को कहा गया था। लेकिन इन्हें परिभाषित करने के बजाए, पिछली सरकार वह काम करती रहीं, जिसका राज्य सरकारों के पास अधिकार ही नहीं है।

कोर्ट ने हाल ही में किया था नोटिफिकेशन रद

बता दें इससे पहले पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाली 18 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने वाले सरकार के नोटिफिकेशन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। इसके साथ ही प्रदेश की सियासत गरमाने लगी। विपक्ष ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने सही पैरवी नहीं की इसलिए नोटिफिकेशन रद हो गया। वहीं मंत्री डॉ संजय निषाद ने कहा था कि नोटिफिकेशन ही अवैध था इसलिए रद कर दिया गया। अब सरकार सही प्रक्रिया का पालन करके इन्हें आरक्षण दिलवाएगी। बहरहाल, इस पूरे मामले में कई वर्षों से सियासत ही देखने को मिली है। चाहे वह मुलायम सिंह यादव की सरकार रही हो, अखिलेश यादव या योगी आदित्यनाथ की पूर्ववर्ती सरकार, सभी ने इन 18 जातियों को एससी में शामिल करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किए लेकिन नतीजा सिफर ही रहा, आखिरकार नोटिफिकेशन रद हो गए।

कहां से शुरू हुई कहानी

सवाल ये है ओबीसी श्रेणी की जातियों को एससी श्रेणी में डालने की बात आई कहां से? दरअसल इसके पीछे वोट बैंक की सियासत और इन जातियों का राजनीतिक दलों पर दबाव है। जिन ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा दिए जाने की बात हो रही है, उनमें से कई ऐसी हैं, जिनको दूसरे राज्यों में एससी का दर्जा है। यहां की जातियों ने भी एससी में शामिल होने के लिए आंदोलन किया। इसके बाद शुरू हुई इन्हें संतुष्ट करने की सियासत। यह बात उन दलों को खूब भायी, जो ओबीसी वोटबैंक की सियासत करते हैं। वे ओबीसी की कुछ जातियों को एससी में शामिल करके आरक्षण का लाभ ज्यादा दिलवाना चाहते हैं। हालांकि सियासत करने वाले यह तर्क देते हैं कि इन जातियों का सीधा ताल्लुक अनुसूचित जाति से है। ये जातियां उनसे टूटकर बनी हैं, जिन्हें एससी का दर्जा है। जबकि दलित वोटबैंक की राजनीति करने वाले दलों को यह फैसला हमेशा ही खराब लगा और वे इसका विरोध करते रहे।

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