विधानसभा चुनाव-2022 में सत्ता पाने के लिए पति और पत्नी के झगड़े में भाजपा की भूमिका सास जैसी
बिटिया नहीं तो दामाद कैसा,बेटा नहीं तो बहू कैसी वाली कहावत तो सुना था,पर भाजपा चार कदम आगे निगल कर चुनाव के टिकट के बंटवारे पर बेटे पर ही मेहरबान है,भाजपा का शीर्ष नेतृत्व…
लखनऊ। क्या भारतीय जनता पार्टी महिलाओं का साथ नहीं देती, क्या पति-पत्नी के झगड़े में भाजपा की भूमिका सास की तरह हो गयी है, हमेशा बेटे का ही पक्ष ही लेती है, बहू का क्यों नही। ये सवाल इस लिए उठ रहे हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो पत्नियों का टिकट काट कर उनके ही पति को प्रत्याशी बना दिया है। अमेठी विधायक गरिमा सिंह और सरोजनी नगर विधायक स्वाति सिंह को भाजपा ने बेटिकट कर दिया है। गरिमा सिंह का अपने पति संजय सिंह से अलगाव हो चुका है और दोनों की दुश्मनी जगजाहिर है। कोर्ट से लेकर सड़क तक दोनों लोग लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार भाजपा ने अमेठी से संजय सिंह को टिकट दिया है। सरोजनी नगर विधायक स्वाति सिंह मंत्री हैं। टिकट को लेकर उनकी अपने पति दयाशंकर सिंह से अनबन चल रही थी। इस झगड़े में भाजपा ने दयाशंकर सिंह का पक्ष लिया और उन्हें बलिया से प्रत्याशी बना दिया। घरेलू झगड़े में भाजपा ने क्यों रुचि दिखायी, अगर प्रत्याशी बदलना ही था तो किसी नये चेहरे को क्यों नहीं बनाया ? क्या संजय सिंह और दयाशंकर सिंह जीत की गारंटी हैं जो मौजूदा विधायक का टिकट काटकर उन्हें दिया गया ?
आइए एक नजर अमेठी पर डाले…
सुल्तानपुर जिले का अमेठी पहले हिस्सा हुआ करती थी लेकिन अब अमेठी खुद जिला है। अमेठी विधायक गरिमा सिंह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की भतीजी हैं और वीपी सिंह का संबंध प्रयागराज के मांडा राजघराने से है। वीपी सिंह को राजा मांडा के नाम से भी जाना जाता था। वीपी सिंह छोटे भाई का नाम हरिबक्श सिंह है और गरिमा सिंह इनकी ही बेटी हैं।अमेठी रियासत बहुत पुरानी है। अमेठी के सातवें राजा रणंजय सिंह साल 1969 में जनसंघ के टिकट पर अमेठी से विधायक चुने गये थे और साल 1974 में कांग्रेस से विधायक बने थे। रणंजय सिंह को कोई संतान नहीं थी। रणंजय सिंह जिले के बेटुआ प्रखंड के अमेयमाफी गांव के रहने वाले संजय सिंह को अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था। संजय सिंह के जैविक पिता का नाम गयाबख्श सिंह था। संजय सिंह साल 1962 में अमेठी के राजकुमार बने थे। तब वे पांचवी क्लास में पढ़ते थे। साल 1974 में गरिमा सिंह की शादी संजय सिंह के साथ हुई थी। ये दो राजघरानों का संबंध था। आगे चल कर रणंजय सिंह की सम्पत्ति और राजनीति का संजय सिंह उत्तराधिकारी बने।
संजय सिंह और गरिमा सिंह को तीन संताने हुई। अनंत विक्रम सिंह, महिमा सिंह और शैव्या सिंह। साल 1986 के आसपास संजय सिंह की जिंदगी में नेशनल बैडमिंटन चैम्पियन अमिता मोदी प्रकट हुईं। अमिता मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की पत्नी थीं। कहा जाता है कि अमिता से नजदीकी बढ़ने के बाद संजय सिंह ने साल 1995 में गरिमा सिंह को तलाक दे दिया था। इस मामले में गरिमा सिंह का कहना है कि ये तलाक फर्जी है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अवैध करार दिया है। गरिमा सिंह का आरोप है कि संजय सिंह ने सीतापुर की अदालत में किसी दूसरी महिला को खड़ा कर तलाक हासिल किया था। उस समय वह लखनऊ में थीं। साल 1989 में संजय सिंह ने गरिमा सिंह को अपने महल से निकाल दिया था। आरोप है कि संजय सिंह ने अपने बच्चों को भी गरिमा सिंह के खिलाफ भड़का दिया था। इन बातों से निराश हो कर गरिमा सिंह लखनऊ में रहने लगीं। वे अपने आपको कानूनी रूप से संजय सिंह की पत्नी मानती रहीं। साल 2014 में गरिमा सिंह अचानक अमेठी राजघराने के एक और महल भूपति पैलेस में रहने के लिए पहुंच गयी। लगभग सौ कमरे वाला भूपति महल एक आलिशान इमारत है।
गरिमा सिंह को जनता का समर्थन…
गरिमा सिंह साल 2014 में जब अपने तीनों बच्चों के साथ भूपति महल में रहने आयीं तो बड़ा विवाद हो गया। वहां संजय सिंह के हथियारबंद आदमी महल की रखवाली कर रहे थे। वे गरिमा के आने पर विरोध करने लगे। लड़ाई -झगड़ा शुरू हो गया। यह देखकर महल के आसपास रहने वाले लोग वहां जमा हो गये। स्थानीय लोग गरिमा सिंह को अमेठी की रानी मानते थे। जब संजय सिंह के हथियारबंद लोग गरिमा सिंह पर ताकत दिखाने लगे तो स्थानीय लोग भड़क गये। वे गरिमा सिंह के समर्थन में नारा लगाने लगे- रानी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।
जब गरिमा सिंह महल के झरोखे में आकर जनता का अभिवादन करने लगीं तो वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो गयी। भीड़ लगातार गरिमा सिंह के समर्थन में नारे लगाती रही। यह देखकर संजय सिंह के हथियारबंद कारिंदे हवाई फायरिंग करते हुए वहां से भाग खड़े हुए। स्थानीय लोगों का कहना था कि अमेठी राजघराने ने रानी गरिमा सिंह के साथ बुरा सलूक किया था। इसलिए वे रानी गरिमा के साथ हैं। विवाद बढ़ने पर मामला पुलिस और कोर्ट तक पहुंच गया। हिफाजत के लिए मुख्य दरवाजा बंद कर दिया गया था। किसी बाहरी आदमी के जाने पर रोक लगा दी गयी। इस स्थिति में गरिमा सिंह अपने बेटे-बेटियों के साथ महल में फंस गयी थीं। वे भूख से परेशान थे। तब स्थानीय लोगों ने बाल्टी में भोजन भर कर रस्सी के सहारे उसे महल में भेजा था।
मौजूदा विधायक गरिमा सिंह का टिकट क्यों कटा…???
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जनता की सहानुभूति गरिमा सिंह के साथ थी ये बात साबित हो गयी थी। साल 2017 में भाजपा ने गरिमा सिंह को अमेठी से प्रत्याशी बनाया था। संजय सिंह की दूसरी पत्नी अमिता सिंह (मोदी) ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। संजय सिंह ने गरिमा सिंह के खिलाफ बड़े जोर शोर से प्रचार भी किया था, लेकिन जनता ने अपना समर्थन गरिमा सिंह को दिया। गरिमा सिंह ने 64 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। अमिता सिंह को लगभग 20 हजार वोट ही मिले थे और वे चौथे नंबर पर नंबर रहीं। संजय सिंह कई बार पार्टी बदल चुके हैं। वे कभी कांग्रेस में रहते हैं तो कभी भाजपा में। साल 2017 में वे कांग्रेस में थे। साल 2019 में भाजपा में आ गये थे। जब जनता गरिमा सिंह के साथ थी, तब फिर भाजपा ने क्यों उनका टिकट काट दिया, क्या संजय सिंह ने जोड़तोड़ से टिकट हासिल कर लिया ?
संजय सिंह हार चुके हैं, विधानसभा चुनाव…
ऐसा नहीं है कि संजय सिंह जीत की गारंटी हैं, अगर गरिमा सिंह के साथ कोई जोखिम थी तो ये जोखिम संजय सिंह के साथ भी हो सकती है। संजय सिंह साल 1989 में अमेठी विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। वे जनता दल के टिकट पर खड़े हुए थे। उस समय जनता दल का बोलबाला था। बोफोर्स तोप विवाद के कारण कांग्रेस के खिलाफ हवा बह रही थी। इसके बाद भी संजय सिंह चुनाव हार गये थे। संजय सिंह को कांग्रेस के हरिचरण यादव ने बुरी तरह से हाराया था। हरिचरण को लगभग 53 हजार वोट मिले थे और संजय सिंह लगभग 20 हजार वोट ही पा सके थे। संजय सिंह फिर लोकसभा का चुनाव लड़ने लगे। संजय सिंह की दलीय आस्था बदलती रही है। संजय सिंह 33 साल बाद विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। क्या यह कम जोखिम वाली बात है ?