बाहुबली पूर्व विधायक राजन तिवारी ने श्रीप्रकाश शुक्ल के इनकाउंटर के बाद बिहार में बनाया था ठिकाना
गोरखपुर। श्रीप्रकाश शुक्ल के इनकाउंटर में मारे जाने के बाद माफिया राजन तिवारी ने बिहार में अपना ठिकाना बना लिया। लंबे समय तक उसने बाहुबली रहे देवेंद्र नाथ दुबे के साथ काम किया। जब देवेंद्र की हत्या हो गई, तब राजन ने राजनीति में कदम रखा। उनके भाई भी विधायक रह चुके हैं। उनकी माता शांति तिवारी अरेराज प्रखंड की चौथी बार प्रखंड प्रमुख की कुर्सी पर काबिज हैं। गैंगस्टर कोर्ट में 17 साल तक पेशी पर न आने वाले राजन को 60 से अधिक गैर जमानती वारंट जारी हुए थे। उसकी तलाश में 15 दिन पहले क्राइम ब्रांच की टीम दिल्ली गई थी लेकिन भनक लगने पर चकमा देकर फरार हो गया। वीरेंद्र शाही पर हुए हमले में भी सामने आया था नाम गोरखपुर के सोहगौरा गांव के रहने वाले राजन ने युवा अवस्था में ही अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। 90 के दशक के श्रीप्रकाश शुक्ला के संपर्क में आने के बाद कई वारदातों में उसका नाम सामने आया। महराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे वीरेंद्र शाही पर हमले में भी राजन तिवारी का नाम आया था। इस घटना में माफिया डान श्रीप्रकाश शुक्ला और राजन तिवारी समेत चार लोगों को आरोपित बनाया गया था।इस मामले में राजन तिवारी साल-2014 में बरी हो चुका है। पूर्व मंत्री ब्रजबिहारी की हत्या के बाद आया चर्चा में राजन तिवारी साल-1995 में उत्तर प्रदेश से बिहार अपने ननिहाल अरेराज प्रखंड क्षेत्र की ममरखा भैया टोला पंचायत के खजुरिया गांव आए। साथ ही बीच-बीच में अपने पैतृक गांव आते-जाते रहते थे।
गोविंदगंज के विधायक देवेंद्र दुबे की साल-1998 में हत्या के बाद इसमें आरोपित बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री व लालू प्रसाद के करीबी ब्रजबिहारी की उसी वर्ष हत्या हुई थी। इसके बाद सीपीएम के विधायक अजीत सरकार की हत्या हुई। दोनों में राजन तिवारी का नाम सामने आया था। इसके बाद चर्चा में आए और बिहार की राजनीति में कदम रखा। उन्होंने साल-2000 में गोविंदगंज सीट से निर्दलीय विधानसभा का चुनाव जीता था। चुनाव के दौरान जेल में बंद थे। जेल में बंद रहते उन्होंने बाहुबली देवेंद्र नाथ दुबे के बड़े भाई भूपेंद्र दुबे को पराजित कर जीत हासिल की थी। गोविंदगंज विधानसभा में दर्ज की थी जीत वहीं पूर्व विधायक के बड़े भाई राजू तिवारी साल-2015 में एनडीए के समर्थन से लोजपा से गोविंदगंज विधानसभा का चुनाव जीते थे। साल-2020 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील मणि तिवारी से चुनाव हार गए। फिलहाल लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हैं। साथ ही बाहुबली पूर्व विधायक साल-2004 में बेतिया लोकसभा क्षेत्र से रघुनाथ झा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद 2022 में यूपी के चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमाना चाहते थे, लेकिन टिकट नहीं मिला। वे भाजपा और सपा से चुनाव लडऩे की तैयारी में थे।
फिलहाल वे उत्तर प्रदेश तथा बेतिया और बगहा से भी चुनाव लडऩे की तैयारी में थे। साल-2014 में राजन तिवारी राजद में शामिल हुए। टिकट नहीं मिलने के बाद साल-2019 में लखनऊ में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। बीजेपी से जुड़ने के प्रयास पर हुआ था विवाद साल-2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजन तिवारी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की कोशिश की थी। लखनऊ में उसने बीजेपी से जुड़ने का प्रयास किया, जिस पर काफी विवाद हुआ था। इसके बाद पार्टी ने उससे किनार कर लिया। अपने मकसद में कामयाब न होने पर राजन ने बिहार की राजनीति में वापसी कर ली। राजन तिवारी पर बिहार तथा उत्तर प्रदेश के कई जिलों में तीन दर्जन आपराधिक मामले दर्ज हैं। राजन तिवारी पर साल-2004 में बेतिया के प्रसिद्ध व्यवसायी रमेश तोदी का अपहरण कर फिरौती वसूलने का आरोप था। आरोप है कि एनटीपीसी के अभियंता लोहिया का साल-2005 में राजन तिवारी ने पटना जेल में रहते हुए अपहरण कराया था। इसमें सात करोड़ की फिरौती वसूली गई थी। साल-2004 में मोतिहारी नगर थाना क्षेत्र के रेलवे गुमटी के पास से चीनी मिल के डायरेक्टर प्रभात लोहिया के साथ विश्वंभरनाथ तिवारी का भी अपहरण कर लिया था। इस मामले में विश्वंभरनाथ की हत्या कर दी गई थी। इस अपहरण व हत्या में राजन तिवारी के साथ उनके भाई राजू तिवारी का नाम आया था।