चंद्रशेखर के एक फैसले से सपा-कांग्रेस और बसपा की बढ़ी टेंशन, यूपी उपचुनाव में कहीं बिगड़ न जाए इंडिया गठबंधन का खेल
लखनऊ। नगीना से सांसद और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने साफ कर दिया है कि यूपी की सभी दस सीटों पर होने वाले उप चुनाव में उनकी पार्टी प्रत्याशी उतारेगी। दलित युवाओं में लोकप्रियता के ग्राफ पर ऊपर चढ़ रहे चंद्रशेखर के इस फैसले के बाद बसपा तो टेंशन में है ही, सपा और कांग्रेस की भी परेशानियां बढ़ती दिख रही हैं। वजह यह है कि गठबंधन को यूपी में लोकसभा चुनावों में चमत्कारिक नतीजे मिलने में बड़ा हाथ दलित वोटरों का रहा है। अब बसपा के अलावा अगर चंद्रशेखर भी ताल ठोकेंगे, तो इसका नुकसान सपा-कांग्रेस गठबंधन को उठाना पड़ सकता है।
चंद्रशेखर कहीं बिगाड़ न दें सपा-कांग्रेस का खेल…
लोकसभा चुनावों में सपा और कांग्रेस गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी। संविधान बचाने का नैरेटिव दलित वोटरों को इतना भाया था कि बसपा को छोड़कर वे गठबंधन के साथ गए। इसके अलावा युवाओं और किसानों ने भी अपने मुद्दों पर गठबंधन का साथ दिया था। नतीजा यह हुआ था कि भाजपा 33 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि सपा को 37 और कांग्रेस को छह सीटों पर जीत मिली थी। इससे गठबंधन उत्साहित है और विधानसभा उप चुनावों में भी साथ मिलकर ही लड़ने का फैसला कर चुका है। वहीं, दूसरी तरफ बात करें चंद्रशेखर आजाद की तो पहले वह भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा होना चाह रहे थे, लेकिन जब बात नहीं बनी, तो दो सीटों पर मुकाबला लड़ा था। नगीना में आजाद खुद तो जीत गए, लेकिन डुमरियागंज सीट पर उनके प्रत्याशी को इतने वोट जरूर मिले कि उन्होंने इंडिया ब्लॉक के जीत की राह रोक दी थी। अब चंद्रशेखर सभी दस सीटों पर उपचुनाव लड़ने की घोषणा कर रहे हैं। उन्होंने साफ कहा है कि इस बारे में पार्टी पदाधिकारियों से बात हो चुकी है। संगठन तैयार है। हमने सभी तैयारियां भी कर ली हैं।
दलित वोटर सभी को चाहिए…
लोकसभा चुनाव के पहले तक दलित वोटरों का एक बड़ा तबका भाजपा के पास आ जाता था। इससे उसके वोट बैंक में अच्छा इजाफा दिखता था, जबकि बीते चार दशक से बसपा दलित वोटरों की राजनीति करती रही है, लेकिन 2024 में उससे भी दलित वोटर छिटक गए थे। वहीं, बात सपा और कांग्रेस की करें तो बसपा के गठन के पहले तक दलित कांग्रेस का वोटर हुआ करता था, लेकिन तकरीबन चार दशक से वह उससे रूठा हुआ था। इस चुनाव में वह उसके साथ आया था। सपा को भी इसका लाभ मिला था। सपा इसके पहले साल-2019 में बसपा के साथ गठबंधन करके लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन तब भी दलित वोटर सपा में ट्रांसफर नहीं हुए थे। अब जबकि कांग्रेस के मार्फत उसके पास दलित वोट बैंक आया और नतीजे में ऐसे परिणाम आए, तो सपा-कांग्रेस किसी भी सूरत में दलित वोटरों को छिटकने नहीं देना चाहते हैं, लेकिन चंद्रशेखर के आने से सियासी समीकरणों का बदलना तो तय है। कितना बदलेगा, यह तो उपचुनाव के नतीजे बताएंगे।