यूपी की इस चर्चित लोकसभा सीट पर हर धुरंधरों ने आजमाई अपनी किस्मत, लेकिन मिली हार, इतिहास है रोचक
लखनऊ। नवाबों का शहर लखनऊ ऐसी ही सबसे अलग नहीं है। खानपान और तहजीब ही नहीं बल्कि यहां के लोगों को सीरत पसंद हैं। नवाबों के शहर के लोग उम्मीदवारों को बड़ी समझदारी चुनते हैं।सभी पार्टियों के उम्मीदवारों की बड़ी बारीकी से मूल्यांकन करने के बाद ही वोट देते हैं। यही कारण है कि नवाबों के शहर के लोग फिल्म जगत की चकाचौंध को भी दरकिनार कर दिया। कई धुरंधरों को वापसी का रास्ता दिखाया।
लखनऊ लोकसभा सीट से हर क्षेत्र के दिग्गजों ने अपनी किश्मत आजमाई,लेकिन लोगों ने नकार दिया, जिससे दिग्गजों को पराजय का सामना करना पड़ा। लखनऊ लोकसभा से फिल्म अभिनेता मुजफ्फर अली, जावेद जाफरी और राज बब्बर, पूर्व मिस इंडिया नफीसा अली, मशहूर वकील राम जेठमलानी और कश्मीर राजघराने से डॉ. कर्ण सिंह को भी यहां के लोगों ने अस्वीकार किया, जिससे इन लोगों को पराजित होकर वापस जाना पड़ा।
नवाबों के शहर ने कई मशहूर संगीतकारों, अभिनेताओं, शायरों, गायकों और खान-पान के विशेषज्ञों को भी अपनी ओर खींचकर रखा। साल- 1967 के लोकसभा चुनाव में लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी आनंद नारायण को लोकसभा भेजा था। आनंद नारायण हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के अलावा मशहूर शायर भी थे। आनंद नारायण ने कांग्रेस के वीआर मोहन और जनसंघ के आरसी शर्मा को शिकस्त दी थी। वह भी तब जबकि इन दोनों उम्मीदवारों का संगठन मजबूत था और हर तरह से साधन संपन्न भी थे। हालांकि लोगों ने दोनों को दरकिनार करते हुए आनंद नारायण को स्वीकार किया था।
लखनऊ को गंगा जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है। लखनऊ पश्चिमी मुस्लिम बहुल इलाका है, लेकिन साल- 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से सबसे अधिक वोट भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह को मिला था। वहीं लखनऊ पूर्व में राजनाथ सिंह को 1,47,064, लखनऊ उत्तर से 1,17,873 और कैंट से 1,00,642 वाेट मिला था। इसके अलावा लखनऊ पश्चिम से रीता बहुगुणा जोशी को 65,949, नकुल दुबे को 13,413 और अभिषेक मिश्रा को 11,249 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। बरहाल रीता बहुगुणा जोशी को लखनऊ मध्य से 72,390 वोट मिले थे।
नबाबों के इस शहर में भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित अटल बिहारी बाजपेयी की खडाऊं लाकर लालजी टंडन लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। उसके बाद गाजियाबाद से लोकसभा सांसद बने राजनाथ सिंह भी नबाबों के शहर लखनऊ को ही अपना संसदीय क्षेत्र चुना और साल-2014 से वह सांसद निर्वाचित हो रहे हैं। जिसे देखकर लगता है कि नबाबों के इस शहर में आम जनता की सोच भी नबाबों सरीखे है। यहाँ की जनता राजनीतिक धुरंधरों को राजनीति की तहजीब सिखाई। उससे कईयों धुरंधरों ने सबक भी लिया।