Loksabha_Election_2024: आईये जाने सूबे की राजधानी लखनऊ लोकसभा सीट का संसदीय इतिहास, वहां का जातिगत समीकरण और चुनावी आंकड़ों की गुणा-गणित

Loksabha Election 2024: लखनऊ लोकसभा सीट देश की सबसे हाईप्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है। इस सीट की पहचान नवाबों की नगरी के रूप में तो होती ही है। साथ ही राजनीतिक पृष्ठ भूमि की दृष्टि से अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमी के रूम में भी जानी जाती है। यहां का दशहरी आम, चिकन की कढ़ाई के कपड़े, और गलावटी कबाब पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इस सीट पर 17 बार आम चुनाव और एक उप चुनाव हुए हैं। जिनमें 8 बार बीजेपी और 6 बार कांग्रेस ने चुनाव जीता है, लेकिन सपा-बसपा आज तक इस सीट पर जीत के लिए तरस रहे हैं। इसके अलावा जनता पार्टी, जनता दल और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।

लोकसभा सीट लखनऊ का संसदीय इतिहास

इस सीट पर 1952 में पहली बार चुनाव हुए और कांग्रेस से विजय लक्ष्मी पंडित पहली सांसद चुनी गई। हालांकि साल-1955 के उप चुनाव में कांग्रेस से शिवराजवती जीत कर संसद पहुंची, जो देश के पीएम पंडित नेहरू के रिश्तेदार थी। साल- 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी संसद पहुंचे तो साल- 1962 में कांग्रेस के ही बी. के. धवन संसद पहुंचे, लेकिन साल- 1967 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण ने इस सीट से चुनाव जीता। ये जीत महज एक बार ही रही। अगले चुनाव यानी साल- 1971 में हुए चुनाव में कांग्रेस से फिर शीला कौल सांसद बनी। इसके बाद साल- 1977 में इमरजेंसी के बाद आम चुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस को इस सीट पर मुंह की खानी पड़ी और लोकदल से हेमवंती नंदन बहुगुणा चुनाव जीत कर सांसद बने।

भारत रत्न व देश के पीएम पंडित अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से लगातार 5 बार सांसद निर्वाचित होते रहे

हालांकि साल- 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर शीला कौल को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर वापसी की। वह साल- 1984 में चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहीं। साल- 1989 में जनता दल के मानधाता सिंह ने यह सीट कांग्रेस से ऐसा छीना कि फिर दोबारा कांग्रेस यहां से वापसी नहीं कर सकी। साल- 1990 के दशक में जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी का रूप ले लिया और राम मंदिर का लहर पूरे देश में चल रहा था। तब बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से चुनाव लड़े और संसद पहुंचे। वाजपेयी ने लखनऊ को ही अपनी कर्मभूमी बना ली। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी यहां से 5 बार सांसद बने। अटल जी साल- 1991 से  साल- 2004 तक यहां से लगातार चुने जाते रहे।

साल- 2009 में राजनीतिक सन्यास लेने के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लालजी टंडन ने संभाला और यहां से संसद पहुंचे। इस चुनाव में बसपा ने लखनऊ सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र डॉ.अलिखेश दास को मैदान में उतारा था। अखिलेश दास ने जीत के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। लखनऊ वासियों ने जीत का सेहरा भाजपा प्रत्याशी लालजी टंडन के सिर पर बांधा। कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी दूसरे और बसपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। ये वो समय था जब प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी। बसपा की तरह सपा भी अब तक लखनऊ संसदीय सीट जीत नहीं पाई।

साल- 2014 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यहां से रीता बहुगुणा जोशी को करारी शिकस्त देकर इस सीट को बीजेपी के लिए बरकरार रखा। साल- 2019 में पूनम सिन्हा दूसरे स्थान पर रहीं। ये दोनों चुनाव भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह ने बड़े अंतर से जीते। साल- 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी से राजनाथ सिंह ही मैदान में उतरे थे, तो कांग्रेस ने धर्म गुरू आचार्य प्रमोद कृष्णम को मैदान में उतारा था। वहीं सपा और बसपा गठबंधन से पूर्व बीजेपी नेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा मैदान में थी।

लोकसभा क्षेत्र लखनऊ की 5 विधानसभा सीटें

बात करें विधान सभा सीटों की तो इस लोकसभा के अंदर 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीट शामिल है। साल- 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा, बसपा और कांग्रेस राजधानी की सीटों के लिए तरस गई थी। साल- 2022 में हुए चुनाव में पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा जीती थी।

लोकसभा सीट लखनऊ में मतदाताओं की संख्या 

लोकसभा चुनाव में लखनऊ सीट पर कुल 19 लाख, 58 हज़ार, 847 वोटर अपने मत का प्रयोग करेंगे। जिनमें पुरूष मतदाताओं की संख्या- 10 लाख, 54 हज़ार, 133 है। जबकि महिला वोटरों की संख्या- 9 लाख, 4 हज़ार, 628 है। वहीं ट्रांस जेंडर वोटरों की संख्या- 86 है।

साल- 2004 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर एक नजर

साल- 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में अटल विहारी वाजपेयी आखिरी बार चुनाव लड़े थे। लगातार लखनऊ से 5 बार सांसद रहे वाजपेयी इस बार भी यहां से चुनाव जीते और संसद पहुंचे। उन्होंने इस चुनाव में सपा के मधु गुप्ता को हराया था। वाजपेयी को इस चुनाव में कुल 3 लाख, 24 हज़ार, 714 वोट मिले थे। जबकि सपा की मधु गुप्ता को 1 लाख, 6 हज़ार, 339 वोट मिले थे। वहीं तीसरे नंबर पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रामजेठ मलानी रहे। जेठमलानी को कुल 57 हज़ार, 685 वोट मिले।

साल- 2009 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर एक नजर

साल- 2009 में लखनऊ में हुए चुनाव में अटल जी के बाद लालजी टंडन ने यहां से चुनाव लड़ा। लालजी टंडन के खिलाफ कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी चुनाव लड़ रही थी और हार गई। टंडन को कुल 2 लाख, 4 हज़ार, 28 वोट मिले थे। जबकी कांग्रेस की बहुगुणा जोशी को कुल 1 लाख, 63 हज़ार, 127 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर बसपा के अखिलेश दास गुप्ता थे। अखिलेश को कुल 1 लाख, 33 हज़ार, 610 वोट मिले थे।

साल- 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर एक नजर

अटल जी की विरासत को लालजी टंडन के बाद साल- 2014 में राजनाथ सिंह संभालने के लिए उतरे और उन्होने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को जबरदस्त टक्कर दी। राजनाथ सिंह को साल- 2014 लोकसभा चुनाव में कुल 5 लाख, 51 हज़ार, 106 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को कुल 2 लाख, 88 हज़ार, 357 वोट मिले थे। वहीं तीसरे नंबर पर बसपा के नकुल दुबे थे। नकुल को कुल 64 हज़ार, 449 वोट मिले।

लोकसभा सीट लखनऊ पर जातीय समीकरण 

लखनऊ संसदीय सीट पर जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां करीब 71 फीसदी आबादी हिंदू है। इसमें से भी 18 फीसदी आबादी राजपूत और ब्राह्मण हैं। ओबीसी 28 फीसदी और मुस्लिम 18 फीसदी हैं। बसपा को प्रदेश की सत्ता चार बार संभालने का मौका मिला। साल- 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हिट रहा। बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। विधानसभा चुनाव के दो साल बाद साल- 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के खाते में 20 सीटें ही आईं। सपा ने 23, भाजपा ने 10, कांग्रेस ने 21, रालोद ने 5 और 1 सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की।  

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