सिल्क्यारा सुरंग हादसे के बाद अबतक क्या-क्या हुआ, 9वें दिन भी मौत से जंग लड़ रहे मजदूर,क्या हैं उम्मीदें
नई दिल्ली। प्राकृतिक आपदाओं और हादसों से उत्तराखंड लगातार चर्चाओं में रहता है।उत्तराखंड में इस समय सुरंग हादसा हुआ है।उत्तरकाशी जिले में सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था। मलबे में पिछले 9 दिनों से 41 मजदूर फंसे हुए हैं। वे सभी जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं। मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने का कोई भी प्रयास अभी सफल होता हुआ नजर नहीं आ रहा है और बचाव अभियान लगातार जारी है।
रेस्क्यू ऑपरेशन में जैसे-जैसे देरी हो रही है वैसे-वैसे उनके परिजनों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। मौके पर सभी मजदूरों के परिजन पहुंचे हैं। सुरंग में फंसे हुए मजदूरों से पाइप के जरिए बातचीत हो रही है, लेकिन अब उनका हौसला जवाब देने लगा है। मजदूरों को बचाने के लिए दिल्ली और इंदौर से मशीनें मंगाई गईं। शुरुआत में सामने से यानी हॉरिजंटल ड्रिलिंग की जा रही थी, लेकिन इसमें खास सफलता न मिलती देख अब वर्टिकल यानी उपर से ड्रिलिंग की जा रही है।
पहुंचाई गईं बड़ी मशीनें…
बचाव अभियान को और तेज करने के लिए आज कई भारी मशीनें सिलक्यारा सुरंग पहुंचाई गईं। इसके पहले इंदौर से एयरलिफ्ट करके आगर मशीन लाई गई थी। घटनास्थल पर आज इंटरनेशनल टनलिंग अंडरग्राउंड स्पेस के अध्यक्ष, प्रोफेसर अर्नोल्ड डिक्स भी पहुंचे। उन्होंने कहा कि कल से बहुत सारा काम किया जा चुका है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम न केवल उन्हें(श्रमिकों) बचाएं बल्कि यह भी जरूरी है कि हम जिन श्रमिकों को बचा रहे हैं वे सुरक्षित रहें।
युद्धस्तर पर चल रहा बचाव कार्य…
सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए पाइप जरिए पोषक फूड सप्लीमेंट और ओआरएस भेजे जा रहे हैं। पाइप के माध्यम से ही दवाईयों और ऑक्सीजन की भी आपूर्ति की जा रही है। उत्तरकाशी के जिलाधिकारी अभिषेक रूहेला दुर्घटनास्थल पर मौजूद हैं और रेस्क्यू ऑपरेशन की निगरानी कर रहे हैं। मजूदरों को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। युद्धस्तर पर बचाव अभियान चलाया जा रहा है।
कितना समय लगेगा अभी…
मिली जानकारी के अनुसार अभी तक मलबे में 24 मीटर छेद किया जा चुका है। इससे ज्यादा छेद किया जाना बाकी है। इसलिए मजदूरों को बचाने में और ज्यादा समय लग सकता है। जिला आपदा प्रबंधन केंद्र भी बचाव अभियान में लगा हुआ है। बता दें कि यह सुरंग महत्वाकांक्षी चारधाम परियोजना का हिस्सा है। यह परियोजना बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए है।