बसपा की संगठनात्मक बैठकों से क्यों दूर दिख रहे मायावती के चाणक्य सतीश चन्द्र मिश्र, क्या सचमुच मायावती ने कर दी पर कतरने की शुरूआत
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का चुनावी रण खत्म हुए तीन महीने से अधिक हो गया हैं। चुनावी रण में बहुजन समाज पार्टी को मिली करारी हार का असर अब नजर आने लगा है। बसपा सूत्रों की मानी जाए तो कभी बसपा मुखिया मायावती के बाद बसपा में नंबर दो की हैसियत रखने वाले पार्टी राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र अब पार्टी की अहम बैठकों में दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं। सूत्रों से खबर है कि पिछली दो महत्वपूर्ण संगठनात्मक बैठकों में सतीश चन्द्र मिश्र नजर नहीं आए। हाल ही में आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के लिए बसपा के स्टार प्रचारकों की सूची से सतीश चन्द्र मिश्र का नाम गायब था। सूबे के सियासी गलियारे में ऐसी अटकलें लगनी शुरू हो गईं हैं कि क्या मायावती ने सतीश चन्द्र मिश्र को एक साइड करना शुरू कर दिया है।
सूत्रों का दावा- तीन बैठकों में केवल एक में ही पहुंचे…
बसपा सूत्रों ने कहा कि मायावती ने 69 वर्षीय सतीश चन्द्र मिश्रा को खासतौर से पार्टी की कानूनी लड़ाई लड़ने और उसके कानूनी प्रकोष्ठ की देखभाल के लिए खुद को समर्पित करने के लिए कहा है। बसपा में ब्राह्मण चेहरा, सतीश चन्द्र मिश्र पार्टी की कानूनी विंग को संभालने के अलावा पार्टी के संगठनात्मक मामलों में मुख्य स्तंभ हुआ करते थे। उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव के चुनावी रण में बसपा पूरी तरह से एक सीट पर सिमट कर रह गई। मायावती ने अब तक लखनऊ में पार्टी के सभी शीर्ष पदाधिकारियों और राज्य पदाधिकारियों की तीन बैठकें की हैं।
सूत्रों से खबर है कि सतीश चन्द्र मिश्र इनमें से पहली बैठक में 27 मार्च को शामिल हुए थे, लेकिन 29 मई और 30 जून को हुई अन्य दो बैठक में नदारद रहे। बसपा नेताओं के एक वर्ग ने इन महत्वपूर्ण विचार-विमर्शों से उनकी अनुपस्थिति के बारे में पूछे जाने पर बताया कि मिश्र की तबीयत ठीक न होने की वजह से बैठकों में नहीं आ रहे हैं। हालांकि बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि मिश्र जी को संगठनात्मक बैठकें नहीं करने के लिए कहा गया है। उन्हें राजनीतिक मामलों से दूर रखा गया है। उन्हें केवल पार्टी के कानूनी प्रकोष्ठ की देखभाल करने के लिए कहा गया है।
क्या बसपा के खराब प्रदर्शन की मिश्र पर गिरी गाज…
बसपा नेता ने हालांकि कहा कि मायावती यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद से ही मिश्र से नाराज हैं। मिश्र ने ही पार्टी के अभियान को संभाला था और पूरे राज्य का दौरा करने के लिए विचार (सम्मेलन) आयोजित करने की बात कही थी। पार्टी के लिए दलितों के साथ ब्राह्मणों का भाईचारा सम्मेलन भी आयोजित किया गया। चुनाव के दौरान मिश्र ने यूपी में 55 जनसभाओं को संबोधित किया था। पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा कि मायावती ने मिश्र का कद कम करके एक बार फिर अपनी पार्टी के मूल आधार दलितों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि बसपा उनकी पार्टी है और वह एकमात्र नेता बनी हुई हैं।
विधानसभा चुनाव में मिश्र की पत्नी और बेटे को सौंपी थी जिम्मेदारी…
उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव से पहले जब बसपा मुखिया मायावती ने महिलाओं और युवाओं के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करने का फैसला किया था तो मायावती ने सतीश चन्द्र मिश्र की पत्नी कल्पना को प्रबुद्ध महिला विचार गोष्ठी (बौद्धिक महिला मिलन) और पार्टी के महिला सम्मेलन आयोजित करने के लिए कहा था। सतीश चन्द्र मिश्र के बेटे कपिल को भी यूपी में बसपा की युवा सभा आयोजित करने के लिए कहा गया था।
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के मिश्र माने जाते हैं,शिल्पकार…
अप्रैल महीने में सतीश चन्द्र मिश्र को पहला बड़ा झटका लगा जब पूर्व मंत्री और उनके करीबी विश्वासपात्र नकुल दुबे को अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में बसपा से निकाल दिया गया। बसपा के एक अन्य मुख्य ब्राह्मण नेता के रूप में दुबे ने सतीश चन्द्र मिश्र के साथ विचार गोष्ठियों को संबोधित किया था।बसपा में सतीश चन्द्र मिश्र को हमेशा पार्टी के दलित-ब्राह्मण सामाजिक इंजीनियरिंग के वास्तुकार के रूप में माना जाता है। सतीश चन्द्र मिश्र साल 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ बसपा को यूपी में सत्ता में पहुंचा दिया था।