राहुल गांधी-अखिलेश यादव:पीएम पद की दावेदारी के नाम पर भिड़े यूपी के दो लड़के
लखनऊ। एक कहावत है कि राजा को पता नहीं वनमानुषों ने वन बांट लिया। उत्तर प्रदेश में ये कहावत चरितार्थ हो रही है। यूपी की सियासत ही दिल्ली के सिंघासन तक पहुंचाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुर्सी से हटाने के पहले ही यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच पीएम बनने की जबरदस्त नूरा कुश्ती शुरू हो गयी है। यह नूरा कुश्ती कांग्रेस और सपा के भविष्य में काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है।सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस और सपा की नूरा कुश्ती से विपक्षी एकता का सपना इंडिया गठबंधन के लिए कब्र खुद रही है।
पहले लखनऊ में सपा के प्रदेश कार्यालय पर पार्टी मुखिया अखिलेश यादव को देश का भावी प्रधानमंत्री बताने का पोस्टर लगाए गए।अब कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय के बाहर राहुल गांधी को 2024 में प्रधानमंत्री बनाने और 2027 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को मुख्यमंत्री बनाने का पोस्टर लगाया गया है। बड़ा सवाल यह है कि इतनी जल्दीबाजी दिखाने के पीछे की आखिरी कारण क्या है,क्या जो पार्टी पहले पोस्टर लगा लेगी उसके नेता की पीएम बनने की संभावना बढ़ जाएगी, या कांग्रेस की सोची समझी रणनीति है कि यूपी में सपा की राजनीति किसी तरह खत्म कर दी जाए।अभी कुछ दिनों से जिस तरह कांग्रेस आक्रामक तरीके से यूपी में सपा के पीछे हाथ धोकर पड़ी है उससे तो यही प्रतीत होता है कि कांग्रेस और सपा के नेता एक दूसरे पर रोज कीचड़ उछालने में जुटे हैं।
जानें किस तरह यूपी में सपा की जगह लेने के लिए छटपटा रही है कांग्रेस …
कांग्रेस ये जान गई है कि अगर हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री की गद्दी पर राहुल गांधी को बैठाना है तो उत्तर प्रदेश में फिलहाल सपा का खत्मा करना होगा। यूपी में मंडल की सियासत के उभार के पहले तक कांग्रेस का एकछत्र राज था। कुछ सियासी पंडितो का मानना रहा है कि नरसिम्हा राव ने 1991 में केंद्र में सत्ता संभालने के बाज जानबूझकर यूपी में कांग्रेस को कमजोर किया। ताकि उन्हें हिंदी बेल्ट के षडयंत्रों से मुक्ति मिल सके। बरहाल ये वो दौर था जब यूपी और बिहार में मंडल की सियासत हावी हो रही थी। कांग्रेस का पूरा वोट बैंक यूपी में सपा और भाजपा के पाले में चला गया। कांग्रेस ये बहुत अच्छी तरह समझ रही है कि सपा को कमजोर किए बिना यूपी में वह अपनी जगह नहीं बना सकती है और यूपी में जगह बनाए बिना भाजपा को केंद्र से हटाया नहीं जा सकता है।
सपा से कांग्रेस चाहती है बड़े भाई की भूमिका …
कांग्रेस और सपा के बीच छिड़े इस वाक युद्ध और पोस्टर युद्ध के पीछे दोनों का अपनी पार्टी को लेकर आत्मविश्वास है। कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने बाद अजय राय कुछ अधिक ही उत्साहित हैं। अजय राय का बड़बोलापन ही है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में सभी 80 सीटों पर चुनावी ताल ठोकेगी। अजय राय इतने मासूम भी नहीं हैं कि उन्हें पता नहीं है कि 80 सीट पर लड़ने के लिए तो कांग्रेस को प्रत्याशी भी नहीं मिलेंगे।
इसी तरह सपा भी 80 सीटों पर चुनाव लड़ जाए तो भाजपा को फिर से सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता है। कांग्रेस 2009 में लगभग 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी,लेकिन तब से गंगा में बहुत पानी बह चुका है। यह सारी कवायद इंडिया गठबंधन में सपा से अधिक से अधिक सीट हथियाने का खेल भर लगता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा में जो गठबंधन हुआ था उसमें बसपा बड़ी भूमिका में थी। गठबंधन में बसपा को 38 तो सपा को 37 सीट मिली थी। कांग्रेस चाहती है कि 2019 में जितनी सीट बसपा को सपा ने दी थी उतनी ही सीट इस बार कांग्रेस को मिले।
कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी…
कांग्रेस ने यूपी में सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है। यही वजह है कि सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान के जेल जाते ही अजय राय सीधे उनसे जेल में मिलने पहुंच जाते हैं और सपा पर तंज कसते हैं। यह सीधे-सीधे दिखावा था कि कांग्रेस मुस्लिम नेताओं की कितनी हितैषी है। अजय राय कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी में हैं और पूरी तैयारी के साथ सपा के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं।
अजय राय ने बिना आजम परिवार से बात किए ही आजम से मिलने पहुंच जाते हैं,हालांकि अजय राय को जो संदेश देना था उसमें वो कामयाब हो गए। यही वजह है कि सपा और अखिलेश दबाव में आ गए हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जमीन से जुड़े हुए तीन नेताओं का कांग्रेस में शामिल कराकर पार्टी ने सपा को संदेश पहले ही दे दिया है। इमरान मसूद ने कांग्रेस में वापसी कर ली है। बागपत जिले के कद्दावर चेहरा रहे पूर्व मंत्री कोकब हमीद के पुत्र हमीद अहमद और सहारनपुर के सपा नेता फिरोज आफताब भी कांग्रेस शामिल हो गए है।
ओबीसी और दलित वोटों के लिए लगातार प्रयासरत है कांग्रेस…
इस बीच कांग्रेस ने केवल मुस्लिम वोट को लेकर ही सपा पर हमला नहीं किया है।कांग्रेस की नजर सपा के ओबीसी वोट बैंक पर भी है।राहुल गांधी ने जिस तर महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान संसद में ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग थी वो केवल एक नमूना भर है।राहुल गांधी हर सभा में जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं।कांग्रेस ने यह वादा किया है कि जिस भी स्टेट में सरकार बनती है पार्ट जाति जनगणना करवाएगी।
केंद्र में भी सरकार बनने पर जाति जनगणना का वादा कांग्रेस ने किया है। इसके साथ ही कांग्रेस यूपी में दलित वोटबैंक के लिए भी लगातार काम कर रही है। कांशीराम की पुण्यतिथि पर नौ अक्तूबर से दलित गौरव संवाद कार्यक्रम शुरू किया गया है। हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव में बिजी होने की वजह से बड़े नेता शिरकत नहीं कर पा रहे हैं पर मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने दलित वोटरों को संदेश दे दिया है।
80 के दशक तक कभी दलित वोटबैंक कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करता था। बसपा के उभार के बाद दलित वोटर कांग्रेस से छिटक गए। कांग्रेस लगातार दलितों के नए नेता के रूप में जगह बना रहे चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण पर भी डोरे डाल रही है। ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि कांग्रेस मायावती से भी गठबंधन कर सकती है। हालांकि कुछ सियासी पंडित कहते हैं कि ऐसा संभव नहीं है। मायावती कभी कांग्रेस के साथ नहीं आएंगी। दरअसल कांग्रेस के साथ आने से बसपा को कोई फायदा नहीं होने वाला है।