योगी के राज में यूपी पुलिस का बड़ा कारनामा, हत्या को दिया आत्महत्या का रूप
लखनऊ। हिरासत में हत्या के दोषी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बख्शी का तालाब थाने में तैनात रहे जिन आठ पुलिसकर्मियों को अदालत ने सजा सुनाई है उन्होंने युवक की मौत में बाद घटना को आत्महत्या दिखाने की कोशिश की। यही नहीं जिस युवक को ये पुलिसकर्मी पकड़कर थाने लाए थे उसे फर्जी केस में भी फंसाया। बीकेटी के नाउवा खेड़ा गांव के विशंभर सिंह ने आरोप लगाया था कि 23 अगस्त 2000 को सिपाही राम प्रभाव शुक्ल, अवध नाथ चौहान, चंद्र किरण राठौर और गुलाब चंद्र, रामपुर बेहटा के बाबू पासी के साथ उनके घर आए और उनके छोटे भाई वीरेंद्र सिंह को अपने साथ ले गए।
वीरेंद्र को सिपाही राम प्रभाव शुक्ल के सरकारी आवास में रखकर पीटा गया था। राम प्रभाव ने वीरेंद्र को छोड़ने के बदले पांच हजार रुपये की मांग की थी। एक हजार रुपये ले लिए थे। बाकी रकम लेकर अगले दिन विशंभर को बुलाया गया। अगले दिन जब विशंभर रुपये लेकर पहुंचे तो पता चला कि उनके भाई की लॉकअप में मृत्यु हो गई है। पुलिस ने बताया कि वीरेंद्र ने आत्महत्या की है पर विशंभर ने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने हवालात के रोशनदान से लटकाकर वीरेंद्र को मार डाला और हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया गया।
सरकारी वकील नवीन त्रिपाठी के अनुसार अगस्त 2000 में 32 वर्षीय वीरेंद्र के भाई विशंभर सिंह के बाग में गांव की रहने वाली फूलमती ने लकड़ी तोड़ी थी। इस पर वीरेंद्र ने उसे डांटा था। इसके 15 दिन बाद फूलमती के पति छोटेलाल ने वीरेंद्र के खिलाफ बाबू पासी के माध्यम से छेड़छाड़ की एक शिकायत बीकेटी थाने में कर दी। 23 अगस्त को जन्माष्टमी थी और इस दिन सुबह सात बजे बीकेटी थाने के पुलिसकर्मी और बाबू पासी उनके घर पहुंचे और वीरेंद्र सिंह को अपने साथ थाने ले गए। इसके बाद थाने में ही वीरेंद्र सिंह की पुलिस अभिरक्षा में मौत हो गई थी। पुलिस कस्टडी में वीरेंद्र की मौत का केस दर्ज कराने वाले विशंभर सिंह की भी मौत हो चुकी है। वीरेंद्र सिंह के परिवार में पत्नी और तीन बेटे हैं, जो गांव में ही रहते हैं।