खूंटा-पगहा, नाली-चकरोड और घर-घर तावे की राजनीति से तंग आ चुकी थी, पट्टी की जनता, इसलिए भगवा लहर में मंत्री मोती सिंह को बुरी तरह शिकस्त देकर पट्टी की जनता ने तय कर दिया कि जनता ही जनार्दन है
वर्ष-2012 से वर्ष- 2017 के कार्यकाल में विधायक राम सिंह के दौर में चारो तरफ शांतिपूर्ण माहौल था, विधायक राम सिंह का नहीं था, गँवई राजनीति से सरोकार…
चुनाव में हार व जीत तो होती ही रहती है और उस हार जीत की समीक्षा भी नेताजी अपने ढंग से करते हैं। विधानसभा चुनाव में इस बार कई दिगग्ज चुनाव में शिकस्त खाकर घर बैठ गए हैं। कुछ तो अभी जनता में दिखने के लिए सक्रिय राजनीति में उछल कूंद मचाये हुए हैं। जनता द्वारा नकारे जाने के पीछे के कारणों को नेताजी बहुत ही खामोशी के साथ मनन करने में लगे हुए हैं। ऐसे ही एक दिग्गज हैं पट्टी के पूर्व विधायक मोती सिंह जो अपनी हार को पचा नहीं पा रहे हैं। जबकि राजनीति का ककहरा भी न जानने वाले मंत्री मोती सिंह की हार की वजह चाय की चुस्कियों के साथ दो मिनट में गपशप करते बयां कर दे रहे हैं। पट्टी क्षेत्र की जनता का मानना है कि पीएम आवास और शौचालय के लिए लाभार्थियों से व्यापक पैमाने पर वसूली हुई, जिसका परिणाम यह रहा कि लाभार्थी ने मोती सिंह को इसका श्रेय नहीं दिया। मोती सिंह की हार की सबसे बड़ी वजह चारों ब्लॉक प्रमुख पद पर मंत्री मोती सिंह का कब्जा होना बताया जा रहा है। पट्टी व मंगरौरा पर अपने बेटे व भतीजो को स्थापित करना तो एक बाहरी ब्यक्ति को आसपुर देवसरा का प्रमुख बनाये जाने से आसपुर देवसरा की जनता भी अनादर ही अन्दर क्षुब्ध थी। ब्लॉक प्रमुख पद पर पूर्व में ब्लॉक प्रमुख बेलखरनाथ धाम कमलाकांत यादव को थोपना लोगों को नागवार गुजरा था। कमलाकांत यादव का आसपुर देवसरा का मूल निवासी न होना देवसरा वालों को ये बात हजम न हो सकी।
प्रधान और ठेकेदारों ने मोती सिंह के साइलेंट वोटर को भी मोती सिंह का विरोधी बना दिया था, मीडिया प्रभारी विनोद पाण्डेय ने मोती सिंह के कई समर्थकों को भी विरोधी बनने के लिए मजबूर कर दिया था। शेषपुर अठगवां के प्रधान आलोक सिंह की ब्लॉक प्रमुख सुशील सिंह द्वारा की गई पिटाई से था ठाकुरों में भी था, काफी आक्रोश, नंदन सिंह की मध्यस्थता के बाद भी आंतरिक गुस्सा शांत नहीं हुआ था। पिछड़ों व दलित प्रधानों में दहशत का माहौल बन गया था। प्रधानों से जबरन वसूली चर्चा का विषय बनी हुई थी। पूर्व ब्लॉक प्रमुख माधुरी यादव को प्रचार करने से रोकना और उसे सुहाग गैंग का नाम देना पट्टी में ओबीसी व एससी में आक्रोश का कारण बना। धनेपुर में राहुल पासी को जबरन प्रधान का चुनाव हराना पासी समाज में विरोध का कारण बना। बेलखरनाथ प्रथम में पवन सरोज को चुनाव जीतने के बाद भी प्रमाण पत्र देने से रोकने की कोशिश करना भी रहा चर्चा का विषय रहा। चुनाव प्रचार के दौर में ही मंत्री मोती सिंह के समर्थक वापस लौटकर आने पर तांडव करने की धमकी देने लगे थे। पाँच वर्ष की सम्पूर्ण कार्यशैली से जनता के मिल रहे विचारों से पट्टी का परिणाम स्पष्ट हो गया था। पट्टी में विपक्षियों को दमन करने का प्रयास मंत्री मोती सिंह की हार का कारण बना।
विधान सभा चुनाव- 2022 में अधिकतर लोगों को भारतीय जनता पार्टी की जीत का विश्वास था। यह अलग बात बात है कि खुलासा इंडिया को जमीनी हकीकत समय से कुछ और ही प्रतीत हुई थी। वर्ष-2017 के चुनाव में जब भगवा की लहर थी, तब भी पट्टी में काटें का मुकाबला हुआ था। वर्ष-2019 में भाजपा सांसद संगम लाल गुप्ता पट्टी विधानसभा में चुनाव हार गए थे। वर्ष- 2022 में पट्टी के सभी विकास क्षेत्र में भाजपा पिछड़ गयी। चुनाव समीक्षा में यह विषय जेहन में आया कि आखिर भगवा लहर में भी पट्टी क्यों पिछड़ जाती है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में पट्टी में विकास की चर्चा प्रदेश स्तर पर होती है। प्रोफेसर वासुदेव सिंह के निधन के बाद राजा अजीत प्रताप सिंह उप चुनाव जीतकर मंत्री बने थे। इस तरह वर्ष 1980 से वर्ष 1989 तक पट्टी ने उत्तर प्रदेश के कैबिनेट में अपना स्थान बनाये रखा। इसके बाद पट्टी विधानसभा से दो बार सपा से राम लखन यादव विधायक निर्वाचित हुए परन्तु वह मंत्री न बन सके। वर्ष-1996 में कांग्रेस से आयातित मोती सिंह पहली बार पट्टी से विधायक निर्वाचित हुए। पहली बार वह मंत्रिमंडल में स्थान न बना सके, परन्तु वर्ष-2002 में वह दूसरी बार विधायक निर्वाचित हुए तो कृषि राज्यमंत्री बने थे।
वर्ष-2007 में किसी तरह चुनाव जीतकर मोती सिंह अपनी व पार्टी की इज्जत तो बचा लिए परन्तु भाजपा ही हासिये पर पहुँच चुकी थी।वर्ष-2012 में मोती सिंह महज 156 मतों से रामसिंह पटेल के हाथों शिकस्त खा गए। पांच वर्ष बहुत चिंतन मनन के बाद वर्ष-2017में जब देश व प्रदेश में भाजपा व भगवा की सुनामी आई तो राजेन्द्र प्रताप उर्फ मोती सिंह किसी तरह चुनाव जीते। फिलहाल मोती सिंह इस बार योगीजी के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का स्थान पा गए। इस तरह राजेन्द्र प्रताप उर्फ मोती सिंह दो बार मंत्री बने। विधान सभा चुनाव वर्ष- 1996 में कांग्रेस से भाजपा में आकर राजेन्द्र प्रताप सिंह ने भाजपा का झंडा बुलंद किया। उन्होंने विजय की हैट्रिक लगायी। वर्ष 2007 में समाजवादी पार्टी ने ददुआ के भाई बालकुमार पटेल को पट्टी से चुनाव लड़ाया था और राजेंद्र प्रताप उर्फ मोती सिंह पांच सौ से भी कम वोट से चुनाव जीत सके थे। वर्ष- 2009 के लोकसभा चुनाव में पट्टी में भाजपा चुनाव हार गयी थी। वर्ष- 2012 के चुनाव में बालकुमार पटेल के बेटे राम सिंह पटेल ने भाजपा के राजेन्द्र प्रताप सिंह को 156 मतों से चुनाव हरा दिया था। वर्ष- 2017 के चुनाव में राजेंद्र प्रताप सिंह 1473 मतों से विजयी होकर राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।
कैबिनेट मंत्री बनने के बाद उन्होंने क्षेत्र में विकास की गंगा बहायी, मगर जो संपर्क उनका क्षेत्र में था, वह धीरे-धीरे कटता गया। क्षेत्र को संभालने और संजोने की जिम्मेदारी उनके मीडिया प्रभारी विनोद पाण्डेय पर आ टिकी। विनोद पाण्डेय ने मंत्री के करीबियों की उपेक्षा करनी शुरू कर दिए और अपनी नई टीम बना ली। टीम के लोगों ने मंत्री के समर्पित लोगों को उपेक्षित करना शुरू कर दिया। जब मंत्री के दो लोग आपस में उलझ जाते तो मामले को सुलझाने की बजाय किसी एक पक्ष की तरफ से खुलकर पैरवी करना शुरू कर दिया। कई स्थानों पर मंत्री के करीबियों को प्रधान का विरोधी होने की सजा दी गयी और प्रधानों ने अपने व्यक्तिगत विरोधियों को मंत्री का शत्रु बना दिया। मंत्री के प्रतिनिधि ने प्रधानों का संरक्षण किया। रही सही कसर ब्लॉक प्रमुख चुनाव ने पूरा कर दिया और कई मुकदमों ने विरोधियों को आपस में संगठित किया। इस तरह चुनाव नजदीक आने पर मंत्री ने सबको एकजुट करने का प्रयास किया लेकिन लोगों को लगा कि विजय का श्रेय सतीश सिंह, सुशील सिंह, देवेंद्र सिंह के साथ-साथ ग्राम प्रधानों व विनोद पाण्डेय व उनकी टीम को मिलेगा। इसलिए मंत्री से लगाव होने के बावजूद भी मंत्री के विरुद्ध भितरघात कर दिया। मंत्री के पुत्र राजीव प्रताप उर्फ नन्दन सिंह जब तक कुछ समझ पाते तब तक चुनाव हाथ से निकल चुका था।
देवसरा प्रमुख चुनाव विवाद में विनोद पाण्डेय द्वारा ग्राम प्रधानों से पूँछकर आरोपियों के नाम डाले गए। प्रधानों ने अपने शत्रु को जो कि घटना से सम्बन्धित ही नहीं थे, उनका भी नाम शामिल करा दिया। ओबीसी और एससी जाति के प्रधानों में दहशत का माहौल व्याप्त हो गया था। उन्हें लगने लगा कि सवर्णों ने सब विकास का मद ही लूट लिया है। ठेकेदारों को लेकर आम नागरिकों में दहशत का माहौल बन गया था। पट्टी में हर एक कि जुबान पर एक ही बात चर्चा में है कि विनोद पाण्डेय, सुशील सिंह, सतीश सिंह और देवेंद्र सिंह के कारण मोती सिंह चुनाव हार गए। गोविंपुर धुई कांड ने पिछड़ों और दलितों को सवर्णो के विरुद्ध लामबंद होने का मौका दिया। पट्टी और देवसरा के कोतवाल रहे नरेंद्र सिंह ने मंत्री मोती सिंह के लोगों को भी प्रताड़ित करने से परहेज नहीं किया। यही वजह रही कि भगवा लहर में भी पट्टी के विकास बनाम पट्टी में पांच वर्ष की शांति में लोगों ने वर्ष- 2012 से 2017 तक की शांति को बेहतर बताया। फिलहाल आसपुर देवसरा में जो विरोध मंत्री मोती सिंह का था, उस लिहाज से वहां तो कम नुकसान हुआ, परन्तु पट्ट, बाबा बेलखरनाथ धाम व मंगरौरा क्षेत्र में मंत्री मोती सिंह का भीतरखाने जमकर विरोध देखने को मिला, जिसका परिणाम यह रहा कि मंत्री मोती को सपा उम्मीदवार रामसिंह पटेल दूसरी बार बड़े अंतराल से चुनाव में शिकस्त देने में कामयाब रहे। चुनाव की समीक्षा मंत्री मोती सिंह के यहाँ हुई तो परन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला ही रहा।