प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा के उम्मीदवार के लिए सारे दल वाक्ओवर देने का बना लिए हैं, मन

मृतप्राय हुए विपक्ष से प्रतापगढ़ के सीटिंग सांसद संगम लाल गुप्ता की पुनः सांसद बनने की राह हो रही है,आसान… 

पहले प्रयास में विधायक और दूसरे प्रयास में विधायक रहते बन गए सांसद और तीसरी पारी खेलने के लिए तैयार सांसद संगम लाल गुप्ता को शिकस्त देने के लिए नहीं दिख रहा कोई चेहरा...
                                      किस्मत के धनी हैं, प्रतापगढ़ के सांसद संगम लाल गुप्ता…

 

प्रतापगढ़। उत्तर प्रदेश में विपक्ष पूरी तरह समाप्त हो गया है। लोकसभा चुनाव सिर पर है। मतदाता सूची से लेकर बूथ तक की तैयारियां जोरों पर है। प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का नेतृत्व पूरी तरह मृतप्राय हो चुका है। फिलहाल जनपद प्रतापगढ़ में तो विपक्ष पूरी तरह समाप्त हो गया है। विपक्ष में प्रमुख रूप से सपा, बसपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी हैं। बसपा और सपा का संगठन तो कहीं दिखता ही नहीं है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता और पार्टी कार्यकर्त्ता कभी-कभी दिख जाते हैं, परन्तु उनके पास स्थानीय मुद्दे ही नहीं होते। सिर्फ पार्टी शीर्ष नेतृत्व के द्वारा किये जा रहे कार्य को प्रतापगढ़ में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता ज्ञापन देने तक ही सिमट गए हैं। 

लोकसभा चुनाव- 2024 के मद्देनजर कुछ माह पहले प्रतापगढ़ जनपद के कार्यकर्ताओं में जान फूँकने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत प्रतापगढ़ के समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं पार्टी पदाधिकारियों में सामंजस्य बैठाने की कोशिश की गई, परन्तु वह पूरी तरह से फेल रही। राजकीय इंटर कॉलेज प्रतापगढ़ में समाजवादी पार्टी के आयोजित कार्यक्रम में पता नहीं इतने जेब कतरे आ गए कि उनके प्रकोप से खाकी भी न बच पाई। ड्यूटी पर तैनात कई इंस्पेक्टर की जेब साफ हो गई। इस घटना की कई दिनों तक चर्चा रही कि आखिर सपा के आयोजन में इतने जेब कतरे कहाँ से आ गए ?

चूँकि जनपद प्रतापगढ़ में इतने जेब कतरे तो नहीं हैं कि वह इंस्पेक्टर की जेब साफ कर दें। यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर ये जेब कतरे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ आये थे अथवा सपा को बदनाम करने के लिए कोई षड्यंत्र था। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने के लिए डाक बंगले पहुँचे उनकी ही पार्टी के पूर्व विधायक श्याद अली को डाक बंगले में ही हर्ट अटैक आ गया था और अस्पताल ले जाने पर चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। यानि सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए। परंतु किसी तरह मामले को मैनेज किया गया। अखिलेश यादव अपने पूर्व विधायक श्याद अली के मिट्टी में शामिल हुए। फिर विगत दो वर्षों में मृतक हुए पार्टी के पदाधिकारियों के परिजनों से मिलने उनके घरों पर अखिलेश यादव पहुँचे और उन्हें सांत्वना दी। पार्टी के प्रति अपने नेता के समर्पण भाव को मृतक के परिजनों संग याद करके साथ में रहे पार्टी पदाधिकारियों को एक तरह से नसीहत भी दी।

बसपा की तर्ज पर सपा भी अपनी पार्टी में जिलाध्यक्ष पद पर सबसे पहले यादव को बैठाने की परंपरा डाल दी है। चाहे उस यादव में पार्टी को आगे ले जाने की कला और गुण हो या न हो। ऐसा ही जनपद प्रतापगढ़ है, जहाँ समजवादी पार्टी कई वर्षों से पार्टी की कमान कुंडा के छविनाथ यादव के हाथों में दे रखी है। जबकि छविनाथ यादव एक आपराधिक छवि के ब्यक्ति हैं। कुंडा प्रतापगढ़ मुख्यालय से 70 किमी दूर है। वहाँ से जो भी अध्यक्ष नियुक्त होगा वह जिला मुख्यालय पर प्रतिदिन नहीं आ सकेगा। जबकि जिलाध्यक्ष वही सफल रहता है जो प्रतिदिन मुख्यालय तक पार्टी कार्यालय पहुँच कर अपने कार्यकर्ताओं में जोश भर सकता हो।

वैसे प्रतापगढ़ जनपद में समाजवादी पार्टी में बहुत ऐसे चेहरे हैं जिनके हाथ मे कमान मिले तो वह समाजवादी पार्टी को बेहतर ढंग से नई ऊंचाई पर ले सकते हैं। परन्तु सबसे बड़ी समस्या है कि वह यादव जाति के नहीं है। कुर्मी/पटेल/वर्मा विरादरी से सपा ने जब भी जिलाध्यक्ष बनाया तो वोट बैंक की लालच में ही बनाया। मुस्लिम वर्ग से समाजवादी पार्टी को उनका वोट तो चाहिये, परन्तु उन्हें पार्टी की कमान और विधानसभा व लोकसभा का टिकट नहीं मिल सकता। ब्राह्मण तो समाजवादी पार्टी में अल्पसंख्यक है। राजा भईया के अलग होने के बाद से ठाकुर भी सपा से अपनी दूरी बना ली। वर्तमान में ठाकुर जाति से जो भी राजनीति कर रहा है वह या तो भाजपा में है अथवा राजा भईया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक में जुड़ा है। 

जनता से वोट की उम्मीद सभी राजनीतिक दल करते हैं, परन्तु जनहित की बात कोई नहीं करता। विपक्ष के कई नेता दबी जुबान से कहते हैं कि राजनीति करने आये हैं, मुकदमें लेने नहीं आये हैं। सत्ताधारी दल भाजपा और शासन सत्ता की गलत नीतियों का विरोध करिए तो बदले की भावना से शासन व प्रशासन काम करने लगता है और विपक्षी नेताओं का मुंह बंद करने फेंक मुकदमा लिखाया जाता है, इसलिए विपक्षी नेता भी सहम गए हैं। विपक्ष का शीर्ष नेतृत्व कहता  है कि जो मोदी का विरोध करता है, उसके पीछे सीबीआई और ईडी लगवा दी जाती है। विपक्ष के स्थानीय कहते हैं कि वह शासन सत्ता का विरोध करेंगे तो उन्हें फेंक मुकदमों में फंसा कर पुलिस जेल में ठूस देगी। सपा के जिलाध्यक्ष रहे छविनाथ यादव का उदहारण देकर सपाई चुप रहने में अपनी भलाई समझ रहे हैं। ऐसे में एक तरह से लोकसभा चुनाव-2024 भले ही सिर पर सवार है, परन्तु विपक्षी दलों में कोई उत्सुकता नहीं है। इससे लगता है कि भाजपा के उम्मीदवार के लिए सारे दल वाक् ओवर देने का मन बना लिए हैं।    

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