लाशों पर मत नाचो मुलायम और अंधेर नगरी चौपट राजा जैसे शीर्षक ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के उड़ा दिए थे, होश
राष्ट्र का आक्रोश, राष्ट्र की आकांक्षा, राष्ट्र की भाषा में हिंदी मासिक पत्रिका विचार मीमांसा माह-दिसम्बर, 2005 वर्ष-9 अंक 10 में कवर पेज पर “लाशों पर मत नाचो मुलायम” और “अंधेर नगरी चौपट राजा” शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। संयोग से उस समय सूबे में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। पत्रिका भोपाल से प्रकाशित होती थी। पत्रिका का यह अंक जैसे ही बुक स्टॉल पर आया वैसे ही समूचे उत्तर प्रदेश में तूफान खड़ा हो गया। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने बुक स्टॉल से सभी पत्रिकाओं को पुलिस के सहयोग से जबरन उठवा लिया था।
मुलायम सिंह यादव राजनीति में माफियाराज और अपराधीकरण का बीजारोपण कर यूपी को कर दिया बर्बाद
फ़िलहाल उस वक्त सच का गला स्वयं मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के द्वारा घोंटने का प्रयास किया गया, परन्तु पूर्ण रूप से घोंटा नहीं जा सका था। एक अंक मेरे पास सुरक्षित पड़ा था। वर्त्तमान का समय भी उत्तम है। इसलिए इस पत्रिका के संपादक और लेखकों के जज्बे को सलाम करते हुए डिजिटल इंडिया के इस दौर में आज के युवाओं को खुलासा इंडिया की तरफ से इसे पढ़ने और समझाने के लिए यहाँ पोस्ट किया जा रहा है। क्योंकि इस स्टोरी के दोनों पात्र अब इस दुनिया में नहीं है। साल- 2005 से साल 2024 तक उत्तर प्रदेश कितना बदल चुका है। आईये स्वयं आंकलन करें कि 19 वर्ष पहले विचार मीमांसा पत्रिका की सम्पादकीय टीम ने भविष्यवाणी कर दी थी।
आखिर मुस्लिम समुदाय से खूंखार अपराधी की मौत पर ही मातम क्यों होता है ?
लोकसभा चुनाव- 2024 का शंखनाद हो चुका है और राजनीतिक कुरूक्षेत्र में राजनीतिक दलों के नेता शब्द भेदी बाण छोड़ रहे हैं। माफियाओ के जनक सपा संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और उनके सहयोगियों द्वारा उत्तर प्रदेश के योगी राज में कानून ब्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। समूचे उत्तर प्रदेश की कानून ब्यवस्था को तार-तार कर अपने कार्यकाल में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव सूबे में माफियाओं द्वारा जंगलराज कायम करा दिया था। आज भी समाजवादी पार्टी माफियाओं की मौत पर मातम मनाया करती है।
मुस्लिम माफियाओं की मौत पर सेक्युलर नेता क्यों करते हैं, विधवा विलाप
ताज़ा उदाहरण जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह माफिया डॉन मुख़्तार अंसारी की मौत के बाद जिस तरह से सपा और कांग्रेस सहित अन्य कथित सेक्युलर दल के नेता विधवा विलाप कर मातम मना रहे हैं, वह चिंताजनक है। मुख़्तार अंसारी के ख़ास शूटर मुन्ना बजरंगी जिसने भाजपा विधायक कृष्णानन्द राय सहित सात लोंगों का नर संहार किया और विधायक कृष्णानन्द राय की चोटी काटकर समाज को आतंकित किया। बागपत जिला जेल में बंद गैंगस्टर सुनील राठी द्वारा 9 जुलाई, 2018 को मुन्ना बजरंगी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मुन्ना बजरंगी के लिए तो कोई मातम नहीं मनाया गया।
गैंगेस्टर विकास दुबे और दुर्दांत अपराधी मुन्ना बजरंगी की मौत पर पसरा था, सन्नाटा
कानपुर के बिकरू काण्ड आज भी लोग नहीं भूल पाये हैं। गैंगेस्टर विकास दुबे द्वारा सीओ देवेन्द्र मिश्र सहित आधा दर्जन से अधिक दरोगा व सिपाहियों की जघन्य हत्या के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के हाथ पैर फूल आये थे और उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने कुछ ही दिनों में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को मार गिराया था तो किसी ने विधवा विलाप नहीं किया था। परन्तु माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस अभिरक्षा में हत्या के बाद पूरे प्रदेश में मातम छा गया था। बांदा जेल में बंद माफिया डॉन मुख़्तार अंसारी की मौत के बाद तो कथित सेक्युलर राजनीतिक दल और मुस्लिमों द्वारा उसे मसीहा बनाने का जो प्रयास किया जा रहा है, वह चिंतनीय है। एक अपराधी के मरने पर मातम नहीं मनाना चाहिए।