यूपी में लोकसभा चुनाव परिणाम के डेढ़ माह बाद भी हार पर मंथन जारी, एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने की हो रही कोशिश 

लोकसभा चुनाव में यूपी में मिली करारी शिकस्त की असल वजह उन उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा गया, जिनकी क्षेत्र में फिजा बहुत ख़राब थी, एक तरह से शीर्ष नेतृत्व ने उम्मीदवारों को जनता के सामने थोपा गया और जनता ने उन्हें नकार दिया, शीर्ष नेतृत्व को एक तरह से जनादेश के जरिये सन्देश भी दिया कि लोकतंत्र में असल मालिक जनता ही है… 

भाजपा की हार पर मंथन जारी, जेपी नड्डा के बाद अब PM मोदी से मिले प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी

न‌ई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव- 2024 में भारतीय जनता पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद लगातार सियासी हलचल बनी हुई है। यूपी के भाजपा नेताओं का पार्टी के केंद्रीय नेताओं से मुलाकात दौर जारी है। यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने आज बुधवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। ये मुलाकात लगभग एक घंटे चली। चुनाव हारने के बाद शीर्ष नेतृत्व से मुलकात का सिलसिला जारी है, परन्तु शीर्ष नेतृत्व भी निर्णय ले पाने में स्वयं को असमर्थ मान लिया है। प्रथम दृष्टया प्रदेश संगठन के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और प्रदेश के संगठन महामंत्री धर्मपाल सैनी को अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए था, जो अभी तक नहीं दिए हैं।

पार्टी आलाकमान और पीएम मोदी से अभी भी हार की असल वजह छिपाकर स्थानीय प्रशासन के जरिये शासन को किया जा रहा है, टारगेट 

भूपेंद्र चौधरी ने पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन को लेकर कारणों की जानकारी दी। पीएम के साथ मुलाकात के दौरान भूपेंद्र चौधरी ने यूपी में खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी ली है। इससे पहले भूपेंद्र चौधरी ने कल मंगलवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व यूपी में हार के कारणों की तलाश में जुटा है। ऐसा नहीं कि भाजपा जो विश्व की सबसे बड़ी राजनेतिक पार्टी है और उसके शीर्ष नेतृत्व को अपने सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अपनी विफलता की असल वजह न पता हो ! शीर्ष नेतृत्व को सारी बातें पता है, परन्तु शीर्ष नेतृत्व अपनी कमी का ठीकरा किसके सिर फोड़े, बस इसी बात की उसे तलाश है।

लोकसभा चुनाव में भितरघातियों को नहीं किया जा सका चिन्हित, जबकि उम्मीदवारों से बंद लिफाफे में माँगी गई थी, भितरघातियों की सूची 

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी कल मंगलवार जेपी नड्डा से मुलाकात कर खराब प्रदर्शन पर फीडबैक दिया। बताया जा रहा है कि यूपी से जुड़े अन्य प्रमुख नेताओं से भी अलग-अलग मुलाकात के जरिए केंद्रीय नेतृत्व फीडबैक लेगा। कल मंगलवार यूपी से आए दोनों नेताओं ने भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से अलग-अलग मुलाकात की। राजधानी लखनऊ में आयोजित कार्य समिति में खुले मंच से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ही मुख्यमंत्री पर निशाना साधा और उसी मंच पर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मौजूद रहे। फिर भी उन्हें फीडबैक चाहिए। जो जगजाहिर है कि पिछले सात सालों से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सहित कई नेताओं से योगी जी की नहीं जम रही है, फिर भी उनके कार्यों में विघ्न डालने के लिए उन्हें प्रदेश में स्थापित किया गया है। ताकि योगी आदित्यनाथ के कार्यों में वो खलल पैदा कर सकें और विफलता के लिए योगी को दोषी ठहराया जा सके।

पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व यूपी में हार के कारणों की तलाश में जुटा है, परन्तु वह करारी हार से भी सबक नहीं ले रही है। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में 90 फीसदी सीटों पर पोस्टल बैलट की गिनती में भाजपा चुनाव हारी है, इससे यह तय हो गया कि सरकार और भाजपा से कमर्चारी नाराज रहा, तभी पोस्टल बैलट में उसे हार का सामना करना पड़ा… 

शीर्ष नेतृत्व को अभी भी गुमराह किया जा रहा है, पार्टी कार्यकर्ताओं को पार्टी से नाराजगी रही, न कि स्थानीय प्रशासन 

सूत्रों के मुताबिक मुलाकात के दौरान नड्डा को दिए अपने रिपोर्ट में पार्टी की हार के लिए उनकी ओर से चुनाव के दौरान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और स्थानीय प्रशासन द्वारा भाजपा के खिलाफ काम को बताया गया। साथ ही रिपोर्ट में बताया गया कि यूपी प्रशासन की कार्यशैली से पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई है। साथ ही पार्टी के उम्मीदवारों ने भी पार्टी कार्यकर्त्ताओं की उपेक्षा की थी। बूथ प्रभारी और पन्ना प्रमुख को न उम्मीदवारों ने पूंछा और न ही संगठन के पदाधिकारियों ने पूंछा। पार्टी के उम्मीदवार अपने दम पर अपने स्तर से लोकसभा चुनाव लड़ा और उन्हें इस बात का घमंड था कि वह चुनाव मोदी की गारंटी पर जीत जायेंगे, इसलिए किसी कार्यकर्त्ता को वह तेल क्यों लगाये ? यही फार्मूला उन्होंने क्षेत्र की जनता के साथ अपनाया। उम्मीदवारों से क्षेत्र की जनता इस कदर नाराज थी कि उनके खिलाफ नारे लगाने लगी कि योगी मोदी से बैर नहीं और कंडीडेट का नाम लिखकर कहती थी कि उसकी तो खैर नहीं।

विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल भाजपा, अपने मतदाता का नाम मतदाता सूची में रखा न सका 

यही वजह है कि कार्यकर्ता चुनाव के दौरान सक्रिय नहीं दिखे। साथ ही यह भी शिकायत की गई कि प्रशासन द्वारा समर्थक वोटर्स के नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया। इस पूरे मामले में प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं की गई। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने केंद्रीय नेतृत्व को बताया कि एक खास पैटर्न के तहत हर सीट पर पार्टी का वोट कम किया गया। विश्व की सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा अपने मतदाता का नाम मतदाता सूची में रखा न सकी। विधानसभा चुनाव कई विधानसभाओं में मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काटकर बाहर कर दिए गए थे और वह नाम जो काटे गए थे, उनमें 90 फीसदी भाजपा के ही मूल वोटर रहे, फिर भी भाजपा संगठन के पदाधिकारी और लोकसभा के उम्मीदवारों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। आखिर इस कार्य की जिम्मेदारी के लिए कौन जिम्मेदार है, सरकार या संगठन अथवा उम्मीदवार ?

पार्टी कार्यकर्ताओं को भाजपा संगठन अपना बंधुआ मजदूर समझती है और पार्टी उम्मीदवार उसे नहीं देते, तवज्जों 

सच बात यह है कि मतदाता सूची में लगाये गए कर्मी शिक्षा जगत से रहे और उनकी नाराजगी मोदी और योगी सरकार से थी और वह अपना काम बहुत ही सुनियोजित तरीके से कर गई, जिसकी जानकारी होते हुए भी भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार और संगठन के पदाधिकारी और कार्यकर्ता अपने घमंड में मदमस्त हाथी की तरह पागल थे। भाजपा शीर्ष नेतृत्व भी अपने संगठन पर नाज करता था कि वह अपना कार्य बड़ी इमानदारी से निर्वाहन करेंगे, भले ही शीर्ष नेतृत्व उसकी पाँच साल सुध न ली हो, परन्तु पार्टी कार्यकर्ता अपने बूथ पर अपने कार्य के प्रति तटस्थ रहेगा, भाजपा शीर्ष नेतृत्व की यही भूल भाजपा को ले डूबी। एक कार्यकर्ता अपने बलबूते अपने क्षेत्र में मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में वोट दिलाने के प्रति  संकल्पित रहता है और चुनाव परिणाम बाद जीता हुआ उम्मीदवार उसे पहचानता तक नहीं ! मजेदार बात यह भी है कि जिस संगठन के लिए वह कार्यकर्ता समर्पित होता है, वहाँ भी उसकी कोई पूँछ होती है।

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