उम्र के अंतिम पड़ाव में भी नगरपालिका कोष पर गिद्ध रूपी नजर रखते हैं, नपाध्यक्ष हरि प्रताप सिंह
PRATAPGARH : नगरपालिका अध्यक्ष के आसन पर कुंडली मारकर बैठे अध्यक्ष जी की विकास गाथा से नगर पालिका क्षेत्र की चारो दिशाएं गवाह है। खडंजा हो या इंटरलॉकिंग, बिजली के खंभे हों या नाला नाली का निर्माण। ऐसे कार्यों पर खर्च अगर दिखता है तो उक्त कार्ययोजना की तख्ती पर ही सबसे ज्यादा नजर जाती है।
प्रतापगढ़ शहर को नरक बनाने वाला इकलौता कलयुग का देवदूत…
शहर के स्टेशन रोड पर स्थिति सज्जन गली हो या भुलियापुर की कोई कोलिया का काम। ऐसे मुहल्ले में कराये गए विकास कार्य को रतौंधी रोग का शिकार आदमी भी अमावस की रात को आसानी से देख सकता है। भाग्य के प्रबल नगरपालिका अध्यक्ष जो एक जमाने में अपने कर्मो की वजह से बर्खास्त हो चुके हैं, विधायकी के लिए पार्टी से बगावत करने के बाद घर वापसी और फिर सपत्नी नगरपालिका अध्यक्ष पद पर आसीन रहते हुए भाजपा नेता हरि प्रताप सिंह जी ने जो साम्राज्य स्थापित किया है, वह अब जिले का हर समझदार होता बच्चा भी जान रहा है। जो बच्चा 1995 से लेकर 2005 के बीच पैदा हुआ, वह हरि प्रताप सिंह को ही अपना भाग्य विधाता माना और उन्हें ही अपना वोट दिया। फिर भी प्रतापगढ़ नगर आज भी नरक बना हुआ है।
आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के हफ्ते बाद तक चालू रही और अभी एक दीवाल निर्माण के साथ पिछले दिनों समाप्त हुई है। नगरपालिका क्षेत्र का भदरी हाउस, अजीत नगर और सदर बाजार इलाका पुराने समय से शांतिप्रिय, शिक्षित और रिहायशी इलाकों में से एक है। ऐसे में मोती महल रेस्टोरेंट से सदर मोड़ तक नए लाइट पोल लगाने, नाली और नाला बनाने का काम नगरपालिका के चहेते ठेकेदारों की जिम्मेदारी में कराए गए। जिसमें वर्षो बाद कुछ सार्थक होता दिखने की एवज में कुछ न कुछ होना बेहतर वाली नीति पर लोगो ने मौन समर्थन देते हुए विकास कार्य होते देखा और विकास के नाम पर जो प्राप्त हुआ उसे स्वीकार किया। किसी की हिम्मत नहीं कि दो शब्द नगरपालिका के इस संगठित लूट पर बोल सके।
कलेक्ट्रेट के सामने ट्रेजरी चौराहा से गाँजी चौराहा और राजपाल चौराहा के पास भी नाला अभी जीर्णशीर्ण दशा में ही है। नगरपालिका में नाला-नाली और इंटरलॉकिंग सड़क बनती नजर तो आती है, परन्तु वह कब टूटकर नष्ट हो जाती है, यह पता ही नहीं लगता। नगरपालिका के गठन के बाद संभवतः डीआईओएस कार्यालय से जीआईसी तक का नाला पहली बार बना, जो बनते ही धाराशाही हो गया। वजह कोई बताने को तैयार नहीं। पर हकीकत यह है कि नगरपलिका के निर्माण कार्य में 40 प्रतिशत कमीशन का चालन है और 60 प्रतिशत में काम कराया जाता है, जिसमें ठेकेदार के बचत और कराये गए कार्य के पत्थर जड़ाने से लेकर उद्घाटन के सारे खर्च शामिल रहते हैं। फ़िलहाल ये खर्च इस्टीमेट में शामिल नहीं होता।
प्रतापगढ़ शहर को कचड़ पट्टी बनाने वाले नपाध्यक्ष हरि प्रताप सिंह पूरे शहरियों को ऐसी जन्मघुट्टी पिलाई है कि शहर में पैदा होने वाले एवं शहर में रहने वाले शहरी मानसिक रूप से हरि प्रताप सिंह के गुलाम बन गए हैं। शहर में कुछ स्थानों पर सड़क के किनारे पटरी दुकानदारों से वसूली करने के लिए उन्हें इंटरलॉकिंग की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। स्टेट बैंक से केपी कॉलेज को जोड़ने वाली सड़क पर ठेले खुमचे और वाहनों की पार्किंग व्यवस्था को लेकर पालिका प्रशासन कितना गंभीर हैं, वह दिखलाई पड़ जाता है। यही स्थिति मान्यवर कांशीराम कालोनी के सामने कुछ दिन पहले एक पार्किंग बोर्ड लगाया गया है। उसका अमल कितना होगा, ये एक सवालिया निशान है। पूरे शहर में पार्किंग की कोई ब्यवस्था नहीं है।
नगरपालिका से बिजली का कार्य पहले कराये जाते हैं, ताकि मिल सके सबसे अधिक कमीशन
राजापाल चौराहे से सदर मोड़ तक जो लाइट पोल लगाए गए, उसमें सुंदरता बढ़ाने के लिए नारंगी रंग की झालर एलईडी लगाई गई है, जो टीवी अस्पताल के पहले तक सीमित हो गई। लाइट लैंप आगे बढ़ा तो मार्ग में अजीत नगर वार्ड के स्टार हॉस्पिटल पर रुक गया। उसके आगे ही वॉर्ड सभासद का आवास है और पुराना शंकर मंदिर है। चिर-परिचित तेलिया चौराहा और सदर बाजार प्राइमरी स्कूल भी है। बिजली के खंभे के बीच की दूरी बिल्कुल उसी तरह बढ़ती गई, जैसे अजीत नगर वार्ड सभासद और नगर पालिका अध्यक्ष के बीच में है। राजनीति में रुचि रखने वाले पाठक इस रिश्ते के हर उतार चढ़ाव से वाकिफ होंगे। नपाध्यक्ष का जो सभासद विरोध करता है, उसके वार्ड में कोई कार्य नहीं होने दिया जाता। इसलिए कोई विरोध नहीं करता।
सवाल ये उठता है कि नगरपालिका क्षेत्र का विकास रथ वॉर्ड के सभासद से बने रिश्ते के आधार पर होना उचित है या बिना किसी भेदभाव के, यह तो जनता जनार्दन ही तय करेगी। भीषण गर्मी के मौसम में किसी जमाने में लगे वाटर एटीएम शहर की मुख्य बाजारों में अतिक्रमण से लगने वाला जाम, जिसमे स्वयं नगरपालिका अध्यक्ष जी का आवास भी शामिल है। इस दिशा में आजादी के अमृत महोत्सव काल में कुछ बेहतर होगा या नहीं यह तो जनपद की जनता के भाग्य रेखा पर निर्भर है। क्योंकि जिले ही नहीं देश की राजनीति में समाए राम भरोसे न जाने कितनो की राजनीतिक नैया बिना जरूरी कर्तव्यों की पतवार चलाए ही पार हो जाएगी। नपाध्यक्ष हरि प्रताप सिंह भ्रष्टाचार और पद के दुरूपयोग के मामले में दो बार अपने पद से बर्खास्त हो चुके हैं।
देश में मोदी की गारंटी का ट्रेडमार्क और रामनामी दुशाला ओढ़ने के बाद भेड़िया भी जनता को मेमना ही दिखाई दे रहा है। जनपद की वास्तविक स्थिति से हर बच्चा वाकिफ है। परन्तु 25 मई को लोकसभा चुनाव-2024 का मतदान होना है। प्रतापगढ़ नगर क्षेत्र की जनता का वोट कहां पड़ेगा और 4 जून का परिणाम क्या होगा ? यह कह पाना जल्दबाजी होगा। फिलहाल परिणाम सबको लगभग-लगभग अभी से पता है। ऐसे में भाजपा का नगरपालिका अध्यक्ष, भाजपा का विधानसभा सदस्य और लोकसभा सदस्य होने के बाद भी जनपद प्रतापगढ़ की दशा बद से बद्तर है। नपाध्यक्ष की कुर्सी पर 28 वर्षों से हरि प्रताप सिंह का कब्जा है। जनता को क्या और कितना मिला है, इसके लिए शायद ऊंट के मुंह में जीरा वाली कहावत सटीक बैठेगी।