लोकसभा चुनाव:भाजपा के ब्राह्मण कार्ड की सपा ने कुर्मी के जरिए निकाली काट,अखिलेश ने ऐसे की जातीय चक्रव्यूह की रचना
लखनऊ। पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2014 से एक के बाद एक गठबंधन कर राजनीति का प्रयोग करने में जुटे हुए हैं,मगर अभी तक भारतीय जनता पार्टी को अखिलेश यादव शिकस्त देने में फेल रहे हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव पीडीए के सहारे नया राजनीतिक समीकरण साधने में जुटे हैं। सपा स्थापना से लेकर अब तक हुए चुनावों में मुस्लिम-यादव कॉबिनेशन पर ही चुनाव लड़ती रही है, मगर इस बार सपा यादव-मुस्लिम की जगह कुर्मियों को तवज्जो देकर भाजपा के खिलाफ जबरदस्त तरीके से जातीय चक्रव्यूह की रचना की है।अब देखना है कि अखिलेश यादव का कांटे से कांटा निकालने का दांव कितना सफल रहता है।
यूपी में भाजपा ने एक नई सोशल इंजीनियरिंग के सहारे अपने राजनीतिक वनवास को ही खत्म नहीं किया बल्कि एक के बाद एक चुनावी जंग में जीत का परचम लहरा कर अपनी जड़ों को भी मजबूत करने का काम किया है।भाजपा ने अपने सवर्ण खासकर ब्राह्मण वोट बैंक को साधकर रखते हुए गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित समुदाय को जोड़ने में कामयाब रही।यूपी में ओबीसी जातियों में यादव समाज के बाद सबसे अधिक आबादी कुर्मी समाज की मानी जाती है, जो भाजपा का कोर वोट बैंक बना चुका है।सपा इसी कुर्मी समाज को भाजपा से दूर करने और अपने साथ जोड़ने के लिए कड़ी मशक्कत कर रही है।सपा ने भाजपा के ब्राह्मण कार्ड को काउंटर करने के लिए कुर्मी दांव चला है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव कुर्मी समाज को अपने पाले में लाने और बनाए रखने की लामबंदी में जुटे हैं।इसके लिए सपा ने यूपी की 9 लोकसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं, जो पार्टी में किसी एक समुदाय के सबसे ज्यादा प्रत्याशी हैं।अखिलेश यादव ने कुर्मी समाज से लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट पर उत्कर्ष वर्मा, बांदा लोकसभा सीट पर शिवशंकर पटेल, अंबेडकर नगर लोकसभा सीट पर लालजी वर्मा, बस्ती लोकसभा सीट पर रामप्रसाद चौधरी, प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर डॉ. एसपी सिंह पटेल, गोंडा लोकसभा सीट पर श्रेया वर्मा, पीलीभीत लोकसभा सीट पर भगवत सरन गंगवार, श्रावस्ती लोकसभा सीट पर राम शिरोमणि वर्मा और फतेहपुर लोकसभा सीट पर डॉ. अशोक पटेल को प्रत्याशी बनाया है।
सपा ने 9 लोकसभा सीटों में पांच पर कुर्मी प्रत्याशी को भाजपा के ब्राह्मण समुदाय के प्रत्याशी के खिलाफ उतारे हैं। इसके अलावा सपा ने भाजपा के एक लोकसभा सीट पर ठाकुर, एक लोकसभा सीट पर मल्लाह और एक लोकसभा सीट पर वैश्य समुदाय के खिलाफ कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी को उतारा है। सपा ने बांदा लोकसभा सीट पर भी कुर्मी दांव चला है, जहां भाजपा ने भी कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी को उतार रखा है।सपा ने ब्राह्मणों के खिलाफ कुर्मी दांव पांच सीटों पर चले हैं, जिसमें खीरी लोकसभा सीट पर भाजपा के अजय मिश्रा टेनी, अंबेडकरनगर लोकसभा में रितेश पांडेय, बस्ती लोकसभा सीट पर हरीश द्विवेदी, श्रावस्ती लोकसभा सीट पर साकेत मिश्रा और पीलीभीत लोकसभा सीट पर जितिन प्रसाद की सीट शामिल है।
सपा ने जबरदस्त मंथन करने के बाद भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशियों के खिलाफ अपने कुर्मी प्रत्याशी को उतारा है,क्योंकि यूपी में कुर्मी और ब्राह्मण दोनों ही भाजपा के कोर वोट बैंक हैं। सपा ने बांदा लोकसभा सीट को छोड़कर किसी भी ऐसी लोकसभा सीट पर कुर्मी प्रत्याशी नहीं दिए, जिस पर भाजपा या फिर अपना दल के कुर्मी प्रत्याशी हों।कुर्मी समाज के वोटिंग पैटर्न को देखें तो पार्टी से ज्यादा उसके लिए अपने जाति के प्रति झुकाव दिखता है।इसके चलते ही अखिलेश यादव ने इस बार यादव से ज्यादा कुर्मी प्रत्याशी दिए हैं और ब्राह्मणों के खिलाफ ब्राह्मण बनाम कुर्मी की राजनीतिक बिसात अखिलेश यादव ने बिछाने की कवायद की है,जिसका काउंटर करना भाजपा के लिए आसान नहीं है।
यूपी में अब सीधी लड़ाई की ओर बढ़ रहे लोकसभा चुनाव में जीत के लिए 40 फीसदी से 45 फीसदी वोट जरूरी है।वह भी तब जब कोई चुनाव को कुछ हद तक त्रिकोणीय बनाए। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को 51 फीसदी वोट मिले थे।अखिलेश यादव यह समझ चुके हैं कि लगभग 27-28 फीसदी यादव-मुस्लिम वोटरों के भरोसे वह लड़ाई में दिख तो सकते हैं,लेकिन जीत हासिल नहीं कर सकते हैं।इसलिए अपने वोट बेस के विस्तार पर फोकस किया है और अखिलेश यादव ने एम-वाई समीकरण के बजाय पीडीए यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला दिया है।इसलिए सपा ने इस बार यादव और मुस्लिम से ज्यादा कुर्मी और अन्य ओबीसी को चुनावी मैदान में उतारा है।
2022 के विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन को 37 फीसदी के लगभग वोट मिला था,जिसमें 10 फीसदी वोट अकेले सपा का बढ़ा था।सीएसडीएस के सर्वे की मानें तो 2017 की अपेक्षा 2022 में सपा को कुर्मी को 9 फीसदी अधिक वोट मिला था।इसलिए सपा ने इस बार ओबीसी में सबसे ज्यादा भरोसा कुर्मी समाज पर किया है, जो फिलहाल भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है।सपा ने इस बार कुर्मी समुदाय के प्रत्याशी 2019 के चुनाव की तुलना में दोगुना उतारे हैं।
सपा ने रणनीति के साथ कुर्मी प्रत्याशी उतारे हैं ताकि भाजपा के कुर्मी प्रत्याशी के साथ किसी तरह की टकराव की स्थिति न बन सके।सपा इस बात को जानती है कि भाजपा के कुर्मी बनाम सपा की कुर्मी के बीच फाइट होने में कुर्मियों का झुकाव भाजपा की तरफ हो सकता है।इसीलिए अखिलेश यादव ने भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशियों के खिलाफ कुर्मी प्रत्याशी उतारे हैं, जिसके चलते कुर्मी समुदाय का वोट सपा को मिल सकता है। कुर्मी समुदाय के लिए पार्टी ज्यादा पसंद अपनी सजातीय प्रत्याशी की होती है। 2022 में ओबीसी समाज से जीतने वाली कुर्मी समुदाय के सबसे ज्यादा विधायक थी। सपा और कांग्रेस से भी जीत दर्ज की थी।
यूपी में पिछड़ी जातियों में यादव समाज के बाद सर्वाधिक आबादी कुर्मी समाज की मानी जाती है।माना जाता है कि पिछड़ी जातियों में कुर्मी लगभग आठ फीसदी हैं।प्रदेश में लोकसभा की लगभग 35 सीटों को कुर्मी मतदाता प्रभावित करते हैं, जबकि यूपी की 25 से अधिक ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां से कभी न कभी कुर्मी सांसद निर्वाचित हुए हैं।मौजूदा समय में 41 कुर्मी विधायक हैं, जिसमें से 27 भाजपा से हैं, 13 सपा और एक कांग्रेस से है।पांच विधान परिषद सदस्य भी कुर्मी हैं। 80 में आठ सांसद भी कुर्मी समाज से हैं।योगी सरकार में तीन कैबिनेट और एक राज्य मंत्री कुर्मी समाज से ही हैं। सपा के प्रदेश अध्यक्ष कुर्मी हैं, जबकि भाजपा के स्वतंत्र देव सिंह पहले अध्यक्ष रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज को पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा जैसे उपनाम से जाना जाता है। रुहेलखंड में कुर्मी गंगवार और वर्मा से पहचान है तो कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कुर्मी, पटेल, कटियार, निरंजन और सचान कहलाते हैं। अवध में कुर्मी समाज के लोग वर्मा, चौधरी और पटेल नाम से जाने जाते हैं। रामपूजन वर्मा, रामस्वरूप वर्मा, बरखू राम वर्मा, बेनी प्रसाद और सोनेलाल पटेल यूपी की राजनीति में कुर्मी समाज के दिग्गज नेता माने जाते थे, लेकिन सभी की पकड़ अपने-अपने इलाके में ही थी।
कुर्मी समाज की उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर, महाराजगंज, कुशीनगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में ज्यादा आबादी है।इन क्षेत्र की लोकसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय को लोग जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की ताकत रखते हैं।यूपी में कुर्मियों का कोई एक नेता नहीं बल्कि हर इलाके अपने-अपने क्षत्रप हैं।इन्हीं क्षत्रपों के सहारे राजनीतिक दल अपने राजनीतिक समीकरण को साधने का दांव चलते हैं। इसीलिए सपा ने इस बार कुर्मी पर बड़ा दांव खेला है, लेकिन देखना है कि क्या सपा की नैया पार लगाते हैं।