बरेली लोकसभा सीट पर BJP का बर्चस्व कायम रखने में संतोष गंगवार की महती भूमिका, बरेली की सीट पर अब तक 8 बार जीत चुके, संतोष गंगवार
बरेली संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालें तो यह सीट संतोष कुमार गंगवार के नाम से जानी जाती है। खास बात यह है कि यहां पर अब तक सपा और बसपा का खाता तक नहीं खुला है। वहीं कांग्रेस को साल- 1984 के बाद से अगले 6 चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा था। फिलहाल राजनीतिक तौर पर बरेली संसदीय सीट प्रदेश में खास पहचान रखती है। यह सीट संतोष कुमार गंगवार के नाम से जानी जाती है जो यहां से 8 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। साथ ही वह केंद्र में लंबे समय तक मंत्री भी रहे हैं।
बर्फी और झुमका से फेमस हुई बरेली
सिनेमाई जगत में बरेली का नाम खूब चर्चा में रहता है। ‘झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में’ जैसे चर्चित गाने या फिर फिल्म ‘बरेली की बर्फी’ की वजह से बरेली जिला हमेशा में सुर्खियों में बना रहा है। यह शहर सिर्फ फिल्मों से ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी बेहद अहम माना जाता है। आजादी की जंग में भी बरेली का अहम योगदान रहा है। कांग्रेस के खिलाफत आंदोलन में बरेली का भी योगदान रहा। महात्मा गांधी ने 2 बार बरेली यात्रा की थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन का बरेली में खासा असर देखा गया। आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में यहां पर कई सभाएं की गई। पंडित जवाहर लाल नेहरू, रफी अहमद किदवई और महावीर त्यागी आजादी की जंग में बरेली की जेल में रहे हैं।
पौराणिक महाभारत के अनुसार बरेली में हुआ था, द्रौपदी का जन्म
बरेली में ऐतिहासिक रूप से कई नायाब चीजें मिली हैं, जिसमें गुप्तकालीन दौर के सिक्के भी शामिल हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि यहां का इतिहास दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 11वीं शताब्दी के बीच रहा है। पौराणिक महाभारत के अनुसार द्रौपदी का जन्म बरेली में हुआ था। यह भी कहा जाता है कि महात्मा बुद्ध ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार के दौरान बरेली के अहिछत्र क्षेत्र का भ्रमण किया था।
सतीश चंद्रा के दम पर बरेली में कांग्रेस ने जीता था, पहला आम चुनाव
बरेली संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालें तो यह सीट संतोष कुमार गंगवार के नाम से जानी जाती है। खास बात यह है कि यहां पर अब तक सपा और बसपा का खाता तक नहीं खुला है। वहीं कांग्रेस को साल- 1984 के बाद से अगले 6 चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा था। साल- 1952 में हुए पहले चुनाव में यहां पर कांग्रेस ने सतीश चंद्रा के दम जीत के साथ शुरुआत की थी, वह साल- 1957 में भी विजयी रहे। सतीश चंद्रा नेहरू कैबिनेट में मंत्री भी रहे। हालांकि साल- 1962 और साल- 1967 के चुनाव में कांग्रेस को यहां से हार मिली और यहां से जनसंघ के खाते में जीत गई। लगातार 2 चुनाव में हार के बाद सतीश चंद्रा ने फिर से वापसी की और साल- 1971 में यहां से फिर चुने गए।
जनता पार्टी ने कांग्रेस को पहली बार इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में डुबाया
हालांकि देश में इस दौरान इमरजेंसी लगा दी गई, जिसको लेकर कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी देखी गई और बरेली संसदीय सीट पर भी करारी हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी के टिकट पर स्वतंत्रता सेनानी राममूर्ति विजयी हुए। साल- 1980 में भी यह सीट जनता पार्टी के खाते में ही रही। जबकि साल- 1981 में कराए गए उपचुनाव में पूर्व राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम अबीदा अहमद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं और विजयी रहीं। साल- 1984 के चुनाव में भी वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रही। कांग्रेस के लिए अबीदा अमहद की यह जीत आखिरी जीत साबित हुई।
लोकसभा सीट बरेली में हैं, पांच विधानसभा सीटें
बरेली संसदीय सीट के तहत यहां पर 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें बरेली, बरेली कैंट, मीरगंज, भोजीपुरा और नवाबगंज सीटें शामिल हैं। साल- 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां पर बीजेपी का प्रदर्शन जोरदार रहा था और भोजीपुरा को छोड़कर शेष चारों सीटों पर कब्जा जमा लिया था। लोकसभा चुनाव-2019 में बरेली संसदीय सीट पर कुल 17 लाख, 60 हजार, 865 वोटर्स थे, जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या- 9 लाख, 61 हजार, 116 थी तो महिला वोटर्स की संख्या- 7 लाख, 99 हजार, 668 थी। इसमें से कुल 10 लाख, 68 हजार, 342 (60.9%) वोटर्स ने वोट डाले। NOTA के पक्ष में 3,824 (0.2%) वोट गए।
बरेली की सीट पर अब तक 8 बार जीत चुके, संतोष गंगवार
देश में राम मंदिर आंदोलन शुरू हो चुका था और इसका फायदा बीजेपी को चुनाव में हो रहा था। साल- 1989 के चुनाव के समय बरेली सीट पर तब बीजेपी की ओर से संतोष कुमार गंगवार ने जीत हासिल की और फिर वह यहां से लगातार अजेय बने रहे। साल- 1989 में पहली बार जीत हासिल करने के बाद संतोष गंगवार ने साल- 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में बरेली से जीत हासिल की। हालांकि साल- 2009 के चुनाव में संतोष गंगवार को कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन के हाथों कड़े मुकाबले के बाद 9 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।
साल-2019 के चुनाव में दो गंगवार हुए थे, आमने-सामने
साल- 2019 के लोकसभा चुनाव में बरेली संसदीय सीट पर हुए चुनाव को देखा जाए तो बीजेपी के संतोष कुमार गंगवार चुनाव से पहले ही जीत के प्रवल दावेदार माने जा रहे थे। संतोष गंगवार के सामने समाजवादी पार्टी ने भगवत सरन गंगवार को मैदान में उतारा। चुनाव के दैरान सपा और बसपा के बीच चुनावी तालमेल था, जिस वजह से सपा को यह सीट मिली और भगवत सरन को मौका दिया। हालांकि संतोष कुमार गंगवार के आगे विपक्ष की एक न चली और भाजपा प्रत्याशी संतोष कुमार गंगवार ने 1 लाख, 67 हजार, 282 मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया। भाजपा के संतोष गंगवार को 5 लाख, 65 हजार, 270 वोट मिले तो सपा के भगवत सरन गंगवार के खाते में 3 लाख, 97 हजार, 988 वोट आए। कांग्रेस के प्रवीण सिंह को 74 हजार, 206 वोट ही मिले।
साल- 2014 के चुनाव में भाजपा ने सपा को बड़े अंतराल से हरा दिया, कांग्रेस के उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहे
साल- 2019 के चुनाव में भी यही परिणाम रहा, क्योंकि संतोष गंगवार ने सपा-बसपा के साझा उम्मीदवार भागवत सरन गंगवार को 1 लाख, 67 हजार, 282 मतों के अंतर से हराकर अपनी आठवीं जीत हासिल की। रुहेलखंड क्षेत्र में पड़ने वाली बरेली संसदीय सीट के जातिगत समीकरण को देखें तो यहां पर भी मुस्लिम वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है और करीब 35 फीसदी लोग रहते हैं। हिंदू समाज के करीब 63 फीसदी लोग रहते हैं। चुनाव में जातीय समीकरण खास मायने नहीं रखते, क्योंकि यहां पर साल- 1989 के बाद से संतोष कुमार गंगवार का दबदबा कायम रहा है और उन्हें बरेली संसदीय पर सिर्फ एक बार हार मिली और वह भी महज 10 हजार से भी कम वोटों से हार का समाना करना पड़ा था। ऐसे में यहां पर जातिगत समीकरण कुछ खास काम नहीं आते हैं।