ज्ञानवापी मस्ज़िद के रहस्य से छट गए बादल, नंदी की प्रतीक्षा खत्म, तहखानों में खण्डित मूर्तियां, हवनकुंड और दीवारों की वास्तविक पहचान मिटाने के पुख्ता सबूत मिले
देवो के देव महादेव का शिवलिंग वजूखाने से मिला है, वजूखाना वो होता है, जहां नमाजी हाथ-पैर धोते हैं, मुखारी करते हैं, यह अपमान ऐसा है, जिसे हिंदू समाज सृष्टि के अंत तक नहीं भूल पाएगा…
प्रथम नायक माननीय जज साहब हैं…
किसी भी कार्य का एक नायक होता है और उस नायक के सहयोग में काम करने वाले उसके सहयोगी भी सह नायक कहे जाते हैं। ज्ञानवापी कथित मस्जिद के सर्वेक्षण हेतु सिविल जज सीनियर डिवीजन, वाराणसी के जज रवि कुमार दिवाकर एक सुलझे हुए न्यायाधीश की भांति कार्य किया, न कि किसी एक्टिविस्ट की भांति व्यवहार किया। माननीय ने इस अति दुसाध्य कार्य को साध्य करके दिखा दिया। जज साहब भारी दवाब के मध्य संविधान को कसकर पकड़े रहे और हर सुनवाई में ऐसे निर्णय सुनाए कि प्रजा का विश्वास आंखों में पट्टी बांधे खड़ी न्यायपालिका पर बना रहा। जज साहब को दवाब में लाने के लिए इकोसिस्टम ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन पुष्पा स्टाइल में “झुकेगा नहीं साला” कहकर एक छोटे से कोर्ट के जज ने सर्वोच्च अदालत को भी कटघरे में खड़ा कर दिया।
द्वितीय नायक कोर्ट द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर रहे…
सिविल प्रक्रिया में किसी प्रकरण के विवाद के निस्तारण तभी संभव हो सकता है, जब उस प्रकरण की भौगोलिक स्थिति स्पष्ट हो ! कथित मस्जिद ज्ञानवापी के विवाद में सबसे पहले दायर वाद में ज्ञानवापी कथित मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण कार्य करने के लिए एक कमिश्नर नियुक्त किया गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि कोर्ट ने इस सर्वे के पूर्व भी दो बार कमिश्नर नियुक्त किए, लेकिन वे सभी सुरक्षा के डर से भाग खड़े हुए। जब कोर्ट ने वर्तमान कमिश्नर से पूछा तो वे बोले, उन्हें कोई डर नहीं है। वे जान पर खेलकर सर्वे करने के लिए तैयार हैं। इसलिए विरोधी पक्ष ने इन्हें हटाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए, लेकिन असफल रहे, यदि ये कमिश्नर भी जज के आगे मना कर देते तो सर्वे पुनः टल जाता।
तीसरे नायक योगी जी रहे…
बाबा नगरी वाराणसी में जब दो बार कोर्ट के आदेश हुआ, उसके बाबजूद सर्वे का कार्य सम्पन्न नहीं हुआ, तब योगी सरकार की भी जमकर किरकिरी हुई, जिस योगी सरकार की पहचान ही कानून व्यवस्था थी, वह कोर्ट के आदेश का पालन तक नहीं करवा सकी। योगी जी ने जब मामले की रिपोर्ट मंगवाई तो पता चला कि वाराणसी प्रशासन ने सर्वेक्षण कार्य में भारी लापरवाही बरती है। तब योगी आदित्यनाथ ने खुद सर्वे के एक दिन पहले 13 तारीख को काशी आकर डेरा जमा लिए। उनके आते ही प्रशासन ऐसा चुस्त दुरुस्त हुआ, जिसका परिणाम आज का सर्वे बिना किसी बाधा के संपन्न हो गया और पुख्ता प्रमाण के साथ यह सिद्ध हो गया कि अयोध्या में रामजन्म भूमि की तरह बाबा की नगरी वाराणसी में भोलेनाथ बाब विश्वनाथ धाम में भी खेल किया गया था। मंदिर तो तहस नहस कर कथित ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया गया था।
चौथे नायक मोदी जी रहे…
वर्ष-2014 में जब भाजपा के घोषित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का चेहरा नरेन्द्र भाई दामोदरदास मोदी का आया और वह गुजरात के साथ-साथ अपना संसदीय क्षेत्र भोलेनाथ बाबा विश्वनाथ धाम एवं सबको तन मन को पवित्र करने वाली माँ गंगा की नगरी को चुना तो लोगों को यह एहसास भी नहीं हुआ होगा कि पहले माँ गंगा के घाटों का जीर्णोद्धार होगा और साथ ही साथ बाबा विश्वनाथ धाम का कायाकल्प होगा। नरेन्द्र मोदी जब वर्ष-2014 में वाराणसी पहुँचे और माँ गंगा की गोंद में स्नान करने के लिए अपने तन मन को डुबाया तो उन्होंने यही कहा कि मुझे तो माँ गंगा ने वाराणसी बुलाया है। बाबा विश्वनाथ धाम का कॉरिडोर बनते ही मानो स्वयं माँ गंगा पुकार रही हैं। मेरे जल से मूल स्थान का जलाभिषेक किया जाए। मानो स्वयं भोले बाबा जागृत हो गए हो। जब स्वयं देश का राजा पूर्ण विधि विधान से विश्व सम्राट भोलेनाथ का पूजन करें तो मंगल होना ही होता है।
पांचवें नायक वकील विष्णु जैन रहे…
प्रत्येक कार्य में कोई न कोई माध्यम बनता है। इस कार्य में भी अधिवक्ता के रूप में वकील विष्णु जैन को भोले बाबा ने चुना और उन्हें अपनी शक्ति प्रदान की और वकील विष्णु जैन उस शक्ति को पाकर ये लड़ाई लड़ गए। आज जो परिणाम बाबा भोलेनाथ की नगरी में देखने को मिल रहा है, वह वकील विष्णु जैन के साहस का परिणाम है। आज यह मुकदमा जो इस मुकाम तक पहुंच सका, ये वही वकील हैं, जिन्होंने कुतुबमीनार से मूर्ति हटाने के ASI फतवे पर रोक लगाई, यही वकील वक्फ बोर्ड के खिलाफ भी कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे।
छठे नायक वे पांच महिलाएं है…
ये वो पांच मातृत्व शक्तियां हैं, जिन्होंने कथित मस्जिद में पूजा की लड़ाई लड़ी, पांच शक्तियों ने पंच मक्कार इकोसिस्टम को उन्हीं के सिस्टम से चुनौती देकर साबित कर दिया कि शक्तियां ही शक्तिपुंज हैं, याचिकाकर्ता महिलाओं पर मुकदमा वापिस लेने के लिए भारी दवाब बनाया गया, लेकिन श्रृंगार गौरी की पूजा का मन में विश्वास लिए शक्तियां अपने दृढ़ संकल्प से टस से मस न हुई, ये लड़ाई पंच शक्तियों की शक्ति (श्रृंगार गौरी) की पूजा करने के अधिकार पाने की लड़ाई है।
अंतिम नायक वो रहस्यमयी शक्ति है…
बाबा भोलेनाथ की महिमा बड़ी निराली है, वास्तव में जिसका कोई आदि नहीं है, वे स्वयं “बाबा विश्वनाथ” हैं, जिन्होंने पहले वाराणसी में मोदी को बुलाया, फिर योगी को, बाबा विश्वनाथ स्वयं बाहर निकल कर आना चाहते हैं, जैसे स्वयं श्रीराम आये। बस, अब शेष सभी बाधाएं निर्विघ्न दूर हो जाएं, ताकि नंदी की प्रतीक्षा समाप्त हो जाए, जो इस कार्य के “मौन नायक” है।