प्रतापगढ़ की सदर तहसील में एसडीएम कोर्ट की बद से बद्तर होती जा रही स्थिति का जिम्मेदार कौन ?
एसडीएम सदर की कोर्ट का संचालन बाहरी ब्यक्तियों से कराना, नियम विरुद्ध…
प्रतापगढ़। सदर तहसील में उप जिला मजिस्ट्रेट सदर, प्रतापगढ़ की कोर्ट में सुबह का नजारा देखते ही बन रहा था। ठीक 10 बजे कोर्ट का दरवाजा खुला। वादकारी और उनके अधिवक्ता कोर्ट में पहुँचे। राजस्व मामले के पेशकार सुरेंद्र पांडेय अपनी सीट पर नहीं दिखे। फौजदारी के अहलमद रामकुमार रावत अपनी सीट पर मिले। कोर्ट में हाकिम यानि उप जिला मजिस्ट्रेट सदर साहेब नहीं दिखे। कल शाम को ही तय हो गया था कि आज कचेहरी और तहसील सदर में कंडोलेंस रहेगा। दो अधिवक्ता दिवंगत हुए थे। इसलिए सुबह ही सब लोग अपनी अपनी पेशी पर पहुँच कर अगली तिथि लेना चाहते थे।
राजस्व मामले के पेशकार सुरेंद्र पांडेय के न रहने पर अगली डेट लोगों को नहीं मिल पा रही थीं। इसलिए वादकारी और अधिवक्ता अगली डेट लेने के लिये हो हल्ला शुरू किए। क्योंकि बात अगली तिथि तक ही नहीं थी। असल वजह यह रही कि कई ऐसे वादकारी और अधिवक्ता को रजिस्टर में उनकी मुकदमा दर्ज ही नहीं था। जबकि अधिवक्ता और मुवक्किल दावा कर रहे थे कि पत्रावली में आज की तिथि 12 फरवरी लगाई गई थी। पत्रावली पर उन्होनें हस्ताक्षर किए थे, तब डेट लिए थे। एसडीएम सदर महोदय कोर्ट के पीछे बने विश्राम कक्ष में सबकुछ सुनते रहते हैं। जब बहुत असहनीय हो जाता है तो उठकर चल देते हैं।
एसडीएम सदर कोर्ट की दशा मछली मंडी जैसी हो चुकी है। वादकारी और अधिवक्ता का जब सब्र का बाँध टूट जाता है, तब दोनों डायस की ओर जाकर पेशकार से झगड़ने लगते हैं। राजस्व पेशकार सुरेंद्र पांडेय की कार्यशैली से सभी नाराज रहते हैं। चूँकि अधिवक्ता जब उनसे कोई पत्रावली माँगते हैं तब वह पत्रावली नहीं दे पाते। जबकि पत्रावली जब पेशी वाली तारीख पर नहीं मिलेगी तो उस दशा में विवाद होना स्वाभाविक है। आखिर एसडीएम सदर कोर्ट से पत्रावली कौन गायब करता है ? इसका जवाब किसी के पास नहीं होता। आज 10:45 मिनट पर जब एसडीएम सदर साहेब सदर तहसील पहुँचे तो तारीख लेने के लिए हंगामा हो रहा था। एसडीएम साहेब चुपचाप अपने विश्राम कक्ष में जाकर बैठ गए।
किसी भी न्यायालय से पत्रावली का गायब होना समूचे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर देता है। अदालत की पत्रावली यदि अदालत में नहीं है तो उसकी जवाबदेही फाइल कस्टोडियन यानि पेशकार की होती है। सूत्रों के अनुसार जो पत्रावली गायब रहती हैं वह कोर्ट से बाहर सैर के लिए जाती हैं। चूँकि हाकिम और पेशकार के बीच हाकिम के प्राइवेट स्टेनो जो ऑर्डर टाइप करते हैं, उनके साथ फाइल सैर सपाटे के लिए जाती है। कभी-कभी पत्रावली हाकिम के बंगले पर सैर करने जाती है। पहले भी पत्रावली जब आदेश के लिए हाकिम के बंगले जाती थी तो अधिवक्ता और मुवक्किल दोनों को पता रहता था। पर जो पत्रावली सुनवाई में रहती हो वह अदालत के बाहर सैर के लिये नहीं जाती। यह सिर्फ वर्तमान परिवेश में ही सम्भव है।
जिलाधिकारी प्रतापगढ़ से अधिवक्ताओं और वादकारियों का अनुरोध है कि एसडीएम सदर की दशा और दिशा दोनों पटरी से उतर चुकी है, जिसे पटरी पर लाना अति आवश्यक है। वर्तमान में एसडीएम सदर कोर्ट की साख समाप्त हो चुकी है। कोर्ट का वजूद वापस लाने के लिए हाकिम और पेशकार दोनों को अविलंब हटाना होगा। अन्यथा एसडीएम सदर कोर्ट की बदनामी के साथ समूचे जिले की बदनामी होगी। शासन की बदनामी अलग से होगी। एसडीएम सदर कोर्ट से गायब पत्रावली के सम्बंध में जिलाधिकारी महोदय को स्वतः संज्ञान लेना चाहिये। एक दिन बिना सूचना दिए उन्हें एसडीएम कोर्ट का मोयना करना चाहिये। अन्यथा सीसीटीवी से लैश एसडीएम कोर्ट की रिकॉर्डिंग अवश्य देखनी चाहिए। तभी उन्हें असलियत का पता चल सकेगा।