वैसे तो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर देश के लोगों की नजर हमेशा रहती है, लेकिन जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजता है तो लोग खास नजर से देखते हैं। दिल्ली में विधानसभा चुनाव का बिगुल मंगलवार को बज चुका है। विधानसभा की सभी 70 सीटों पर पांच फरवरी को मतदान और मतगणना आठ फरवरी को होगी। इस बार का दिल्ली विधानसभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी इस बार तीसरी बार जीत की आस लगाए हुए है। अगर आम आदमी पार्टी इस बार जीत दर्ज करती है तो अपने बलबूते वह तीसरी जीत हासिल कर हैट्रिक लगाएगी। कांग्रेस को भी वापसी की आशा है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती भारतीय जनता पार्टी के लिए है, जो जीत के लिए पूरा जोर लगाने को तैयार है।
अगर भाजपा को जीत मिलती है तो इस बार दिल्ली में उसका 27 साल का वनवास खत्म हो जाएगा। हालांकि उत्तर प्रदेश में भाजपा 15 सालों में ही वनबास काटकर सत्ता प्राप्त कर ली थी। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में भाजपा शीर्ष नेतृत्व मुख्यमंत्री बदल-बदलकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी और अपनी दशा ख़राब की थी। इसलिए उसे वनबास काटना पड़ा। यूपी का वनबास तो खत्म हो गया, परन्तु दिल्ली का वनबास अभी कायम है।
भाजपा सत्ता पाते ही मदमस्त हो जाती है और अपने ही नेताओं का काटने लगती है, पर
भाजपा इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव पूरी ताकत के साथ चुनाव के मैदान में उतरी है। भाजपा हर हाल में चुनाव जीतना चाहती है। दिल्ली में 1993 में भाजपा की सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना बने थे। लेकिन भाजपा के लिए जीत को बरकरार रखने में बहुत मुश्किलें आईं थीं। तब भाजपा को 49 विधानसभा सीटों पर बड़ी जीत मिलने के बाद भी पांच साल में तीन बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा था। पहले मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा फिर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
दिल्ली की मुख्यमंत्री पद पर शीला दीक्षित मारी थी, हैट्रिक
साल- 1993 के बाद दिल्ली में भाजपा को कभी जीत नहीं मिली। इस बार भाजपा को उम्मीद है कि 27 साल का वनवास खत्म होगा। साल- 1993 के बाद साल- 1998 में विधानसभा चुनाव में दिल्ली की पूरी सियासी तस्वीर बदल गई। भाजपा ने सुषमा स्वराज के चेहरे पर चुनाव लड़ा, लेकिन मतदाताओं ने कांग्रेस की शीला दीक्षित को चुन लिया और शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद तो कांग्रेस का साल- 1998 से लेकर साल- 2013 तक दिल्ली की सत्ता पर कब्जा रहा और शीला दीक्षित सीएम के पद पर काबिज रहीं। इस बार विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए भी अहम है, क्योंकि कांग्रेस को वापसी का भरोसा है।
साल- 2013 के विधानसभा चुनाव में नई नवेली पार्टी आप ने शीला दीक्षित की सत्ता छीन ली और उन्हीं से समर्थन लेकर मुख्यमंत्री बन बैठा
साल- 2013 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। साल- 2013 के विधानसभा चुनाव में नई नवेली पार्टी आम आदमी पार्टी ने शीला दीक्षित की सत्ता छीन ली। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 31 सीटें जीती, लेकिन बहुमत से दूर रही। आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को 8 सीटें मिलीं थी। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाई और पहली बार आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्डतोड़ 67 सीटें जीतकर साल-2015 में रच दिया इतिहास
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सियासी दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और साल- 2013 में कांग्रेस के समर्थन से बनी आम आदमी पार्टी की सरकार सिर्फ 49 दिन ही टिक सकी। अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से सियासी दोस्ती तोड़कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया। साल- 2015 में दिल्ली में फिर से विधानसभा चुनाव हुए और इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्डतोड़ 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया और अरविंद केजरीवाल लगातार दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।
दिल्ली में कुल 1.55 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें पुरुष मतदाता 83.89 लाख हैं, महिला मतदाता 71.74 लाख हैं और 13033 पोलिंग स्टेशन हैं
साल- 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 8 फरवरी को हुआ था और मतगणना 11 फरवरी को हुई थी। साल- 2015 में मिली जीत के बाद साल- 2020 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। इस बार का विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के लिए अग्नि परीक्षा जैसे है, क्योंकि आम आदमी पार्टी के नेताओं पर कई तरह के आरोप लगे हैं और इन सभी आरोपों का जवाब चुनाव के नतीजे से देने वाली है। अगर इस बार भी आम आदमी पार्टी जीत हासिल करती है तो उसके लिए हैट्रिक होगी।