आईये जाने कि कौन है यूपी की सबसे बड़ी लोकसभा, जिसकी एक छोर से दूसरे छोर की दूरी 250 किमी, जिसे तय करने में लगते हैं, सात घंटे
लखनऊ। रॉबर्ट्सगंज लोकसभा से चुनाव लड़ना आसान काम नहीं है।पांच राज्यों तक फैली इसकी सीमाएं नापने में उम्मीदवारों को छींके आ जाती हैं। उत्तर प्रदेश की यह सबसे बड़ी लोकसभा है।एक छोर से दूसरे छोर की दूरी लगभग ढाई सौ किलोमीटर है।भौगोलिक रूप से जटिल संरचनाओं की वजह से कई गांवों तक उम्मीदवार नहीं पहुंच पाते हैं। इन गांवों में लोगों को उम्मीदवार का चेहरा देखे बगैर ही वोट देना पड़ता है।
रॉबर्ट्सगंज लोकसभा पहले मिर्जापुर की हिस्सा थी। 1962 में परिसीमन के बाद रॉबर्ट्सगंज का उदय हुआ तो इसमें मिर्जापुर जिले की चुनार, मझवां, राजगढ़ और दुद्धी, रॉबर्ट्सगंज विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। साल- 2009 में नए परिसीमन ने इस लोकसभा का परिदृश्य बदल दिया। इस परिसीमन में ओबरा और घोरावल दो नए विधानसभा क्षेत्र बने। साथ ही पड़ोसी चंदौली जिले की चकिया विधानसभा सीट को भी इसमें शामिल करते हुए राॅबर्ट्सगंज लोकसभा सीट का पुर्नगठन किया गया।
नए परिसीमन के बाद रॉबर्ट्सगंज उन लोकसभा में शामिल है, जिनका क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। इसका छोर मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से लगता है तो दूसरा छोर चंदौली जिले के मुख्यालय के पास तक है। इनके बीच की दूरी करीब ढाई सौ किलोमीटर है।झारखंड और छत्तीसगढ़ सीमा से भी दूसरे क्षेत्र की दूरी करीब इतनी ही है।
ऐसे में उम्मीदवारों को पूरा लोकसभा क्षेत्र घूमने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जिनके नाम पहले से तय हैं, वह तो फिर भी किसी तरह एक-एक गांव में पहुंच जाते हैं, लेकिन नामांकन के बाद उम्मीदवारों को मतदाताओं तक पहुंचना ही संभव नहीं हो पाता। लिहाजा मतदाता भी कइयों से अनभिज्ञ रहते हैं। इसमें भी चोपन, म्योरपुर, कोन और नगवां ब्लॉक के कई गांवों की बसावट इतनी दुरुह है कि वहां चाहकर भी उम्मीदवार पहुंच नहीं पाते।
बड़े राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं और बूथ समितियों के जरिए फिर भी मतदाताओं तक पहुंच जाते हैं, लेकिन अन्य छोटे दलों के पास बूथ स्तरीय संगठन के अभाव में प्रत्याशियों के सामने चुनौती बनी रहती है। मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थिति शक्तिनगर और बीजपुर की चकिया विधानसभा क्षेत्र के अंतिम छोर कांटा विशुनपुरा से आगे तक की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। इसी तरह छत्तीसगढ़ सीमा पर सागोबांध, झारखंड सीमा पर छतरपुर, धोरपा की घोरावल विधानसभा क्षेत्र के अंतिम छोर मूर्तिया से भी दूरी करीब 250 किलोमीटर है।