नाबालिक पीड़िता का मुकदमा दर्ज न करना इस्पेक्टर को पड़ा भारी, मुकदमा न दर्ज करने पर इंस्पेक्टर राजकिशोर को कोर्ट ने भेजा जेल
बेगुनाह और निअपराध लोगों को जेल भेजने वाला जगलर इंस्पेक्टर जेल जाने से बचने की बहुत कोशिश की, परन्तु हर कोशिश रही नाकाम…
प्रतापगढ़। सूबे में प्रतापगढ़ जिले की अदालत में 22 सितंबर, 2022 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवेचना के दौरान पैसे के बल पर खेल करने वाले इंस्पेक्टर को जेल भेज दिया है। यह मामला जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में सुर्खियों में आ गया है। लोग अदालत के इस फैसले की खुलकर तारीफ कर रहे हैं। पॉक्सो कोर्ट के न्यायाधीश पंकज श्रीवास्तव ने इंस्पेक्टर राजकिशोर की जमानत खारिज करते हुए जेल भेजने का हुक्म दे दिया तो इंस्पेक्टर राजकिशोर के अधिवक्ता वीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मानिक सिंह को पसीने आ गए। कोर्ट में खड़ा इंस्पेक्टर राजकिशोर को तो कुछ देर के लिए मूर्छा आ गई।
आरोपी इंस्पेक्टर राजकिशोर के अधिवक्ता ने अंतिम दांव चलते हुए कोर्ट के समक्ष अंतरिम जमानत के लिए प्रार्थना पत्र दिया, जिसे पॉक्सो कोर्ट के पंकज श्रीवास्तव ने को खारिज कर दिया। इंस्पेक्टर राजकिशोर के अधिवक्ता की एक भी दलील जज साहेब ने नहीं सुनी। अधिवक्ता ने इंस्पेक्टर राजकिशोर के बचाव में कोर्ट में स्वास्थ्य खराब होने का हवाला तक दिया और कोर्ट को बताया कि उनका मुवक्किल दिल के रोग से ग्रस्त है। लेकिन कोर्ट ने अधिवक्ता की दलील स्वीकार न करते हुए इंस्पेक्टर राजकिशोर को जेल भेजने का निर्णय सुना दिया।
निर्दोष ब्यक्ति को जेल भेजने वाले इंस्पेक्टर राजकिशोर जो जनपद प्रतापगढ़ के कई थानों और पुलिस चौकियों में इंचार्ज रहे। राजकिशोर कोतवाली नगर में एसएसआई भी रहे। 22 सितंबर, 2022 को उन्हें थाना बाघराय में वर्ष-2017 में पॉक्सो एक्ट के प्रकरण में मुकदमा न दर्ज करने के प्रकरण में आज प्रतापगढ़ की पॉक्सो अदालत ने उन्हें जेल भेजने का फरमान सुना दिया। थाना-बाघराय में 28 दिसंबर, 2016 को नाबालिग पीड़िता दुष्कर्म का प्रयास और मारपीट की FIR दर्ज कराने थाने पहुंची थी। तत्कालीन बाघराय एसओ राजकिशोर ने एफआईआर दर्ज नहीं की थी। उसके बाद पीड़ित परिवार ने न्यायलय में परिवाद दाखिल किया था। आरोपी इंस्पेक्टर राजकिशोर फतेहपुर जिले में रिट सेल प्रभारी हैं।
मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर, 2022 को कोर्ट में फिर होगी। दर्शल इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। परन्तु इंस्पेक्टर राजकिशोर ने अपने पद का दुरूपयोग किया और पीड़िता को न्याय दिलाने के बजाय उसे थाने से भगा दिया, जिसके बाद वह सीधे न्यायालय में अपना परिवाद दाखिल कर इंस्पेक्टर राजकिशोर को भी पार्टी बना दिया था।
जमानत अर्जी खारिज होने के बाद इंस्पेक्टर राजकिशोर के अधिवक्ता ने अंतिम दांव चलते हुए उनके स्वास्थ्य का हवाला दिया। बताया कि इंस्पेक्टर राजकिशोर हर्ट रोगी हैं, फिर भी अदालत ने किसी दलील को स्वीकार नहीं किया और जेल भेजने का हुक्म दे दिया। आजकल मुकदमों की विचेचना करने वाले विवेचनाधिकारी अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल करते हैं। मुक़दमें की विवेचना में धनार्जन के चक्कर में विवेचनाधिकारी उल्टी सीधी विवेचना करते हैं। कई विवेचक तो विवेचना की केस डायरी ही गायब कर देते हैं। जगलर किस्म के विवेचक जो घाघ किस्म के होते हैं, वह केस डायरी को अपने पिता की जागीर समझते हैं। माननीय अदालतें ऐसे ही विवेचकों को दण्ड देती रही तो विवेचकों की कार्यशैली में निश्चित बदलाव होगा।