चित्रकूट में है एशिया का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय,यहां के बच्चों के आगे नहीं आया कभी बेरोजगारी का संकट
चित्रकूट। प्रभु श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट में बने जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय एशिया का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय में दूर-दूर से दिव्यांग बच्चे पढ़ने आते हैं और पढ़ाई कर अपने जीवन को स्वावलंबी बन रहे है। 27 जुलाई 2001 को जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
इसे जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग शिक्षण संस्थान नामक एक संस्थान द्वारा संचालित किया जाता है,जो समस्त योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी है। 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने इसका शिलान्यास किया था। दिव्यांग विश्वविद्यालय में देशभर से दिव्यांग छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। यहां से पढ़कर निकलने वाले लगभग हजारों से ज्यादा दिव्यांग छात्र छात्राएं सरकारी नौकरी और अन्य बड़े पदों पर नौकरी पाकर खुद स्वावलंबी बन गए है।
दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति सिशय पांडे ने बताया कि इस विद्यालय में भारत के कोने-कोने से और हर जगह के बच्चे आते हैं। यहां शिक्षा ग्रहण करके समाज के मुख्य धारा में अपना योगदान दे रहे है। कुलपति ने बताया कि जगतगुरु ने इस विश्वविद्यालय को अपने स्वरूप और दिव्यांगता में एक वरदान के रूप में लिया है और वह स्वयं 32 कंप्यूटर का ज्ञान अपने मस्तिष्क में रखते हैं।
कुलपति ने बताया कि यहां के बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाती है कि यहां का कोई भी बच्चा बेरोजगार नहीं रह पाता है।वह कहीं ना कहीं सरकारी नौकरी कर रहा है या तो अपना व्यापार कर रहा है।