गुलामी की जंजीरों से निकलने के बाद भी विभाजन की दोधारी तलवार से समस्त हिंदु समाज को काटने की रणनीति के चलते ही 1947 के बाद इस विभाजन को और गहरा ही किया गया। अन्यथा यह कैसे संभव है कि तुम लंबे समय तक राज भी करो और विदेशी नेक्सस के फैलाए जाल में फंसकर विक्टिज़्म भी बन जाओ और राजा बनने के बाद भी क्या आपके स्वजातीय राजा अपनी जात/बिरादरी के साथ ऐसा ही करते रहे कि वो अनपढ़/गंवार/मूर्ख/पिछड़ा/दबा/कुचला ही बना रहे…
सैकड़ों वर्षो तक अखंड भारत पर राज करने के बाद भी तुम अपनी जाति का उद्धार नहीं कर सके तो इसमें दोष ब्राह्मण और हिन्दू धर्मशास्त्र को क्यों देते हो, एक बार स्वयं की ओर झांक कर भी देखो…
भारत में किस समय किसका राजवंश किस भूभाग पर रहा, यह जानना बहुत आवश्यक हो चुका है। भारतीय इतिहास शौर्य गाथाओ में अंतिम हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य उर्फ़ हेमू का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। एक साधारण व्यापारी से विक्रमादित्य की पदवी तक का सफर उनके अद्भुद साहस, कुशाग्र बुद्धि एवं प्रेरक रणकौशल का प्रमाण है। महाराजा विक्रमादित्य हेमराज यानि हेमचन्द्र तेली के वंशज आज पिछड़े हैं, जिन्होंने अखंड भारत पर राज किया।
हेमचन्द्र विक्रमादित्य का जन्म 1501 ई. में राजस्थान के अलवर जिले के एक समृद्ध धूसर भार्गव परिवार में हुआ था। हेमचन्द्र ने अपना सैनिक जीवन शेरशाह शूरी के दरबार से शुरू किया। शेरशाह के पुत्र इस्लाम शाह के दरबार में हेमू अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे। साल- 1545 में शेरशाह शूरी की मृत्यु के बाद इस्लाम शाह ने उत्तरी भारत का राज सम्भाला।
यदि हम अपने भीतर के भ्रम से ऊपर उठ पाते हैं और अपनी सच्चाइयों को समझ पाते हैं तो हम अखंड भारत का निर्माण करने में सक्षम हो पायेंगे अन्यथा विनाश तो हो ही रहा है…
300 वर्ष तक भारत के बड़े भूभाग पर राज करने वाले होलकर की जाति से आने वाले धनगर और सिंधिया के कुनबे वाले आज पिछड़े हैं। होल्कर वंश भारत में इन्दौर के मराठा शासक रहे हैं। इन्हें मूलरूप से एक चरवाहा जाति या कृषक वंश के रूप में जाना जाता था, जो मथुरा जिले से आकर दक्कन के गाँव ‘होल’ या ‘हल’ में बस गये थे। इसी गाँव के निवासी होने के कारण इनका पारिवारिक नाम ‘होल्कर’ हो गया। होलकर राजवंश के संस्थापक मल्हार राव होलकर थे।
मल्हार राव ने साल- 1721 में पेशवा की सेवा में शामिल होकर जल्दी ही सूबेदार का पद हासिल कर लिया था। मराठा संघ कमज़ोर पड़ने के बाद, होलकरों ने खुद को मध्य भारत में इंदौर का शासक घोषित कर दिया। साल- 1818 तक इंदौर मराठा संघ का एक स्वायत्त सदस्य रहा। बाद में, उनका राज्य ब्रिटिश संरक्षण के तहत एक रियासत बन गया। इंदौर की होलकर रियासत के अंतिम शासक यशवंत राव होलकर थे, जिनका जन्म 6 सितंबर, 1908 को हुआ था। 17 साल की उम्र में ही उन्हें शासन की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी थी।
सनातनियों को इस गौरवशाली इतिहास का बोध हो और विधर्मियों द्वारा हमें आपस में लड़वाने का जो कृत्य सदियों से चला आ रहा है, उस पर पूर्ण विराम लग सके…
प्राचीन भारत में कई महत्वपूर्ण साम्राज्य विकसित हुए। उनमें से एक मौर्य साम्राज्य था। चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित, मौर्य साम्राज्य हमारे इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजवंश था। वह मौर्य साम्राज्य आज पिछड़ा है, जिनके वंशजों ने पीढ़ियों तक बंगाल की खाड़ी से लेकर पर्शिया की सीमा तक अखंड भारतवर्ष पर राज किया।
मगध के नंद वंश के सम्राट महापद्मनंद के 9 पुत्र थे, जिन्हें “नवनन्द” कहा जाता था। इनमें धनानंद अंतिम नौवां पुत्र था, जो महापद्मनंद की दासी से उत्पन्न हुआ था। धनानंद ने धोखे से अपने पिता का वध कर दिया और आगे चलकर नंद वंश का उत्तराधिकारी बना। महापद्मनंद और धनानंद का वंशज नाई समुदाय आज पिछड़ा है। जो भारत के सबसे शक्तिशाली राजे होते थे।
महर्षि वेद व्यास की माता व मछुआरा समुदाय से आने वाली रानी सत्यवती और हस्तिनापुर महाराज शांतनु के वंशज भी आज पिछड़े हैं…
मत्स्यगंधा, देवी सत्यवती का नाम था, जो हस्तिनापुर महाराज शांतनु की पत्नी थी। जिनके बच्चे हस्तिनापुर पर राज करने वाले कौरव और पांडव अखंड भारत के सबसे महान योद्धा और चक्रवर्ती सम्राट थे। देवी सत्यवती के तीन पुत्र थे, महर्षि पराशर की कृपा से वेदव्यास और महाराज शांतनु से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए थे। महर्षि वेद व्यास की माता व मछुआरा समुदाय से आने वाली रानी सत्यवती के वंशज भी आज पिछड़े हैं।
उस आदिवासी कन्या शकुंतला का समुदाय भी आज अनुसूचित जनजाति में काउंट होता है, जिनके पुत्र “भरत” के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। महर्षि वेद व्यास, महर्षि वाल्मीकि, आचार्य विदुर, सम्राट चंद्रगुप्त, सम्राट अशोक जैसे और भी अनेका अनेक उदाहरण हैं, जिनके वंशज/स्वजातीय लोग आज स्वयं को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग का बताकर अपने साथ शोषण, दमन और अत्याचार हुआ बताते हैं।
यक्ष प्रश्न यह है कि क्या आपके स्वजातीय राजा अपनी जात/बिरादरी के साथ ऐसा ही करते रहे कि वो अनपढ़/गंवार/मूर्ख/पिछड़ा/दबा/कुचला ही बना रहे…
अब सवाल ये उठता है कि क्या इतने लंबे समय तक राज करने वाले इन वर्गों के राजाओं ने अपनी ही जात, बिरादरी वालों पर स्वयं ही अत्याचार किया अथवा होने दिया या उनको पढ़ने और बढ़ने नहीं दिया। उन्हें हजारो वर्षों से अनपढ़, गंवार व शोषित बनाये रखा। सबसे बड़ा सवाल है कि भगवान कृष्ण के वंशज होने का दावा करने वाले, आज भी बड़ी-बड़ी जमीन जायदाद वाले, हर तरह से संपन्न यदुवंशी अंततः पिछड़े कैसे हो गए ?
गौर, गुर्जर, मीणा, जाट, वर्मा, गोंड आदि वर्ग के राजा सब बड़े लम्बे समय तक शासक रहे हैं। मध्यकाल में बहराइच से नेपाल तक बड़े भूभाग पर राज करने वाले पासी आखिर दलित कैसे हो गए ? मध्यकाल में प्रसिद्ध पाल वंशी राजाओं के वंशज कैसे पिछड़े हो गए ? इतिहास में चंवर वंशी राजाओं का जिक्र है, जो आज दलित कहे जाते हैं।
आखिर क्यों मुगल आक्रांताओं के शासन काल व उसके बाद अंग्रेजी शासन काल की गुलामी के बाद ये सारे वर्ग विभाजित होकर वंचित, शोषित और पीड़ित कहलाने लगे ?
देश के इतिहास में इनकी छाप है। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि मुगल आक्रांताओं के शासन काल व उसके बाद अंग्रेजी शासन काल की गुलामी के बाद ये सारे वर्ग विभाजित होकर वंचित, शोषित और पीड़ित कहलाने लगे। क्या किसी ने यह विचार किया कि कहीं विदेशी आक्रांताओं ने ही हिंदू सनातन समाज में फूट डालने के लिए ये अंकुरण तो नहीं किया ?
आरक्षण की भीख के लिए कब तक खुद को पिछड़ा, दलित, शोषित, कमजोर, मंदबुद्धि बताकर अपने पूर्वजों की कीर्ति धूमिल करते रहोगे, लज्जित करते रहोगे, अपने संतति के भविष्य से खेलते रहोगे, उनके मन में हीनभावना, कमतरी का एहसास और निरर्थक आक्रोश भरते रहोगे, अब देखते हैं कि राम के वंशज कब समझते हैं ?