Loksabha_Election_2024: आईये जाने आंवला लोकसभा सीट का इतिहास, वहां का जातिगत समीकरण और चुनावी आंकड़ों की गुणा-गणित

Loksabha_Election_2024: लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ता जा रहा है यहां सभी प्रमुख दल अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। रुहेलखंड क्षेत्र में पड़ने वाले बरेली जिले में भी हलचल बनी हुई है। जिले में 2 लोकसभा सीटें आती हैं। जिसमें आंवला लोकसभा सीट भी शामिल है। यह क्षेत्र अपने आंवले की खेती के लिए जाना जाता है, यहां पर बड़ी संख्या में आंवले के पेड़ पाए जाते हैं। आंवला लोकसभा सीट पर अभी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। प्रदेश की सियासत में आंवला सीट हमेशा से चर्चा में रहा है। समाजवादी पार्टी समेत विपक्षी दलों की कोशिश है कि बीजेपी का गढ़ बनती जा रही इस सीट पर सेंधमारी की जाए।

आंवला संसदीय सीट का जातिगत समीकरण

आंवला संसदीय सीट पर मुस्लिम और दलित वोटर्स अहम भूमिका में हैं। ठाकुर वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं। कहा जाता है कि रुहेलों ने 17वीं सदी की शुरुआत में यहां राज किया और बेशुमार दौअलत हासिल किये और मस्जिदें एवं कुएं खूब बनवाए। उस वक्त यह खूबसूरत शहरों में गिना जाता था। लेकिन बाद में लखनऊ के नवाबों फिर अंग्रेजों ने इस शहर को खूब लूटा।

मास लीडर में शुमार हैं, भाजपा उम्मीदवार धर्मेन्द्र कश्यप

आईये जाने आंवला संसदीय सीट का इतिहास

यूपी में 24वें नंबर के आंवला संसदीय क्षेत्र का अपना प्राचीन इतिहास रहा है। उत्तरी पंचाल की राजधानी अहिछत्र के अवशेष बरेली आंवला तहसील के रामनगर गांव में मिले हैं। यहीं पर गुप्तकालीन दौर के सिक्के भी मिले। माना जाता है महात्मा बुद्ध ने भी अहिछत्र क्षेत्र का दौरा किया था। आंवला लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां से इंदिरा गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी भी चुनाव जीत चुकी हैं।

आंवला लोकसभा सीट बरेली जिले का ही हिस्सा है। इस सीट पर मुस्लिम वोटरों का खासा प्रभाव है, हालांकि मुस्लिम वोटरों की संख्या 35 फीसदी और हिंदू वोटरों की संख्या 65 फीसदी है। फिर भी मुस्लिम वोटर ही निर्णायक साबित होते है। इस सीट पर पहली बार चुनाव साल- 1962 में हुआ था, लेकिन सबको चौंकाते हुए हिंदू महासभा ने इस सीट पर जीत दर्ज। हिंदू महासभा के स्व. ब्रजराज सिह उर्फ आछूबाबू यहां के पहले सांसद थे।

फिर साल- 1967 में कांग्रेस को यहां से जीत मिली और सावित्री श्याम यहां की सांसद बनीं। वह साल- 1971 में भी यहीं से चुनी गईं। लेकिन साल- 1977 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और हैट्रिक लगाने से चूक गईं। साल- 1977 में सत्ता विरोधी लहर में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कब्जा जमाया, लेकिन 1980 में जनता पार्टी के प्रत्याशी जयपाल सिंह कश्यप ने इस सीट को लोकदल से छीन लिया। साल- 1984 में कांग्रेस के प्रत्याशी कल्याण सिंह सोलंकी सांसद रहे को यहां से जीत मिली। साल- 1984 में राजीव लहर के दौरान इस सीट पर कांग्रेस आखिरी बार जीती। फिर कांग्रेस का खाता नहीं खुला।

आंवला संसदीय सीट का संसदीय इतिहास

भाजपा अब तक हुए 17 बार के लोकसभा चुनाव में आंवला संसदीय सीट पर छः बार फहरा चुकी है, भगवा ध्वज का पताका 

साल- 1989 में आंवला सीट पर बीजेपी के राजवीर सिंह सांसद चुने गए। उसके बाद यह सीट साल- 1989 और साल- 1991 में बीजेपी के पास रही। साल- 1996 में सपा प्रत्याशी के रूप कुंवर सर्वराज सिंह सांसद बने। दो साल बाद साल- 1998 में हुए चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर से इस पर जीत दर्ज की थी। भाजपा के राजवीर ने तीसरी बार बीजेपी के लिए जीत हासिल की। लेकिन 1 साल बाद साल- 1999 में हुए चुनाव में सपा के कुंवर सर्वराज सिंह ने ये सीट फिर से बीजेपी से छीन ली।

साल- 2004 में उन्होंने भाजपा व जदयू गठबंधन में कुंवर सर्वराज सिंह ने यह सीट जीती थी। साल- 1989 से भारतीय जनता पार्टी ने यहां पर पहली जीत हासिल की और तब से लेकर अब तक भाजपा 6 चुनाव में जीत हासिल कर चुकी है। साल- 2009 के चुनाव में मेनका गांधी यहां से चुनाव लड़ने आईं और बीजेपी के टिकट पर शानदार जीत हासिल की।

आंवला संसदीय सीट पर अभी तक नहीं पायी है, किसी की हैट्रिक

लोकसभा सीट आंवला की पांच विधानसभाएं

आंवला संसदीय क्षेत्र के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें शेखुपुर, दातागंज, फरीदपुर (SC के लिए रिजर्व), बिथारी चैनपुर और आंवला सीट शामिल है। इसमें फरीदपुर, बिथारी चैनपुर और आंवला सीट बरेली जिला में पड़ता है, शेष दोनों सीट बदायूं में आती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें से यहां सभी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। सपा, बसपा समेत दूसरे क्षेत्रीय दलों का यहां से सूपड़ा साफ हो गया था। साल- 2022 के विधानसभा चुनाव में शेखुपुर सीट पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी, शेष चारों सीट बीजेपी के खाते में गए थे।

साल- 2004 के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर डाले एक नजर 

साल- 2004 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कुंवर सर्वराज सिंह ने जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सर्वराज सिंह ने सपा के राजवीर सिंह को हराया था। सर्वराज सिंह को कुल 1 लाख, 53 हज़ार, 322 वोट मिले थे। जबकि सपा के राजवीर सिंह को 1 लाख, 46 हज़ार, 451 वोट मिले थे। वहीं तीसरे नंबर पर बसपा के सुधीर कुमार मौर्य थे। सुधीर को कुल 1 लाख, 42 हज़ार, 198 वोट मिले थे।

मेनका गांधी आंवला संसदीय सीट से साल-2009 में हुई थी, निर्वाचित

साल- 2009 के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर डाले एक नजर 

इंदिरा गांधी की बहू मेनका गांधी की बात करें तो साल-2009 में अपनी परम्परागत सीट पीलीभीत संसदीय सीट से बेटे वरुण गांधी के लिए खाली कर स्वयं आंवला संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के टिकट से मेनका गांधी बरेली जनपद की आंवला संसदीय सीट पर अपनी किस्मत आजमाने पहुँची थी। हालांकि भाजपा उम्मीदवार मेनका गांधी आंवला संसदीय सीट से निर्वाचित हुई थीं। मेनका गांधी ने सपा के धर्मेंद्र कश्यप को हराया था। मेनका गांधी को कुल 2 लाख, 16 हज़ार, 503 वोट मिले थे। वहीं सपा के धर्मेंद्र कश्यप को 2 लाख, 8 हज़ार, 822 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर बसपा के कुंवर सर्वराज सिंह रहे। कुंवर सर्वराज सिंह को 1 लाख, 74 हज़ार, 353 वोट मिले थे।

धमेंद्र कश्यप मोदी लहर में साल-2014 में आंवला संसदीय सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे

साल- 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर डाले एक नजर 

साल- 2014 के चुनाव में मोदी लहर पूरे देश में छाया रहा और बीजेपी ने मेनका गांधी की जगह सपा से आयातित धर्मेंद्र कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा। साथ ही मेनका गांधी अपनी परम्परागत सीट पीलीभीत वापस चली गई और वरुण गांधी को सुल्तानपुर से चुनाव में उतारा गया। भाजपा ने धर्मेंद्र कश्यप को कुल 4 लाख, 9 हज़ार, 907 वोट मिले थे। भाजपा के धर्मेंद्र कश्यप ने पूर्व सांसद और सपा के कुंवर सर्वराज सिंह को 1 लाख, 38 लाख से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया। जबकि सपा के कुंवर सर्वराज सिंह को कुल 2 लाख, 71 हज़ार, 478 वोट मिले थे। वहीं तीसरे नंबर पर बसपा की सुनीता शाक्य थी। सुनीता को कुल 1 लाख, 90 हज़ार, 200 वोट मिले थे। सबसे ख़राब दशा कांग्रेस के प्रत्याशी व पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम इकबाल शेरवानी की रही, वह चौथे स्थान पर रहे।

साल-2019 में भी धर्मेन्द्र कश्यप आंवला संसदीय सीट से मार लिए थे, बाज़ी

साल- 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर डाले एक नजर 

साल- 2019 के आंवला लोकसभा सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। बीजेपी ने धर्मेंद्र कश्यप को चुनाव मैदान में उतारा तो सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन की वजह से यहां से बसपा ने रुचिवीरा को टिकट दिया। धर्मेंद्र कश्यप को चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। धर्मेंद्र कश्यप ने 5लाख,  37 हजार, 675 वोट हासिल किए जबकि रुचि वीरा के खाते में 4 लाख, 23 हजार, 932 वोट गए। बीजेपी ने चुनाव में साझा उम्मीदवार रुचि वीरा को 1 लाख, 13 हजार, 743 मतों के अंतर से हरा दिया।

खास बात यह है कि धर्मेंद्र कश्यप पहले सपा में थे और साल- 2009 के चुनाव में आंवला सीट से अपनी किस्मत आजमाई थी। लेकिन तब उन्हें बीजेपी की मेनका गांधी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। आंवला संसदीय सीट पर कुल 17 लाख, 70 हज़ार, 446 वोटर अपने मत का प्रयोग करेंगे। जिनमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 9 लाख 68 हज़ार 996 है। जबकि महिला वोटरों की संख्या 8 लाख 1 हज़ार 342 है। वहीं ट्रांस जेंडर वोटरों की संख्या 108 है।

आंवला संसदीय सीट पर जनसभा को संबोधित करते हुए सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ

साल- 2024 के चुनाव में क्या विपक्ष रोक पाएगा BJP का रथ…?

झुमका सिटी बरेली की दूसरी संसदीय सीट जिसे आंवला के नाम से जाना जाता है। यहाँ से दो बार से सांसद निर्वाचित होने वाले धर्मेन्द्र कश्यप भाजपा से तीसरी बार चुनावी मैदान में कुलाचे मार रहे हैं। उनके पक्ष में सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ जनसभा कर मतदाताओं से उन्हें तीसरी बार जितने की मांग कर चुके हैं। वर्तमान सांसद धर्मेन्द्र कश्यप के सामने सपा और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में नीरज मौर्या ताल ठोंक रहे हैं तो वहीं बसपा से आबिद अली इस बार जीत की हुंकार भर रहे हैं। हालांकि आंवला संसदीय सीट पर अभी तक बसपा की बोहनी नहीं हो सकी है। इस चुनाव में कुल 9 प्रत्याशी हैं। परन्तु लड़ाई भाजपा व सपा के उम्मीदवार के बीच होती नजर आ रही है।

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