आगामी लोकसभा चुनाव में मायावती का दलित वोट बैंक बनेगा विनिंग फॉर्मूला,जानें किस स्ट्रेटेजी पर हो रहा काम
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 की धमक शुरू हो गई है। सभी पार्टियों का सबसे अधिक फोकस दलित वोटरों पर नजर आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी दलित सम्मेलन करने जा रही है तो वहीं कांग्रेस दलित गौरव संवाद अभियान,समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव दलित के घर खाना खा रहे हैं तो बहुजन समाज पार्टी भी इस अभिय़ान में पीछे नहीं है। अब सवाल उठता है कि आखिर एकाएक सभी पार्टियां दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए क्यों जुटी हैं। अहम सवाल यह है कि ये होगा कैसे और कौन सी पार्टी किस रणनीति के तहत ऐसा कर रही है।
भाजपा पूरे यूपी में दलित सम्मेलन करने जा रही है।इसमें पार्टी के आला नेता भी शामिल होंगे। इसके पीछे बड़ा मकसद ये है कि बसपा से टूटकर दलित वोट बैंक का जो हिस्सा उसके पाले में आ गया है वो बरकरार रहे। उसमें कोई और पार्टी सेंधमारी न करने पाये। हाल ही में मऊ जिले की घोसी सीट पर हुए विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों ने उसके कान खड़े कर दिये हैं। घोसी में भाजपा की हार के पीछे बड़ा कारण यही मानी जा रहा है कि दलित वोट बैंक सपा की ओर चला गया।
बसपा ने चुनाव नहीं लड़ा था। जाटवों के अलावा दूसरी दलित जातियों ने भाजपा का दामन पिछले चुनावों में थाम लिया था। अब घोसी के नतीजे के बाद पार्टी को अपना ये वोट बैंक सहेजने की चिन्ता दिख रही है। चुनावी राजनीति पर काम करने वाली संस्था गिरि इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवेलपमेंट स्टडीस में असिस्टेण्ट प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक डॉ शिल्पशिखा सिंह का कहना है कि मायावती के कमजोर होने से दलित वोट बैंक नेतृत्वविहीन होता जा रहा है। भाजपा उन्हें प्रतिनिधित्व दे रही है जिससे वे उसके हो जायें।
समाजवादी पार्टी भी कोशिश में लगी है कि यदि दलित वोट बैंक उसके साथ पूरे मन से जुट जाये तो उसे कोई हरा नहीं सकता है। सपा को मालूम है कि सिर्फ यादव और मुस्लिम वोट बैंक से काम नहीं बनने वाला है। इन दोनों के साथ यदि दलित भी आ जायें तो उसकी बल्ले-बल्ले हो जायेगी। इसीलिए अखिलेश यादव ने बसपा के कई दलित नेताओं को अपने साथ लिया। सपा मिशन कांशीराम अभियान चला चुकी है। रायबरेली में अखिलेश यादव ने कांशीराम की मूर्ति का अनावरण किया। अखिलेश लगभग अपनी हर रैली में ये कहते सुने जा सकते हैं कि भाजपा आरक्षण को खत्म कर रही है। आरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा मुखर दलित समुदाय रहता है।
अब बात बसपा की।बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने वोट बैंक को सहेजे रखना है। ये भी है कि जिस वोट बैंक ने उसका साथ छोड़ दिया है वे फिर से घर वापसी कर लें। मायावती को मिल रही लगातार हार के बावजूद जाटव वोट बैंक उनके पाले में बना हुआ है। उससे अलग होने वाला हिस्सा गैर जाटवों का है। मायावती को उसे सहेजना है।मायावती की एक और चिन्ता है जिसकी झलक घोसी के उपचुनाव में दिखी। मायावती को मालूम है कि यदि उनका कैण्डिडेट लड़ाई में नजर नहीं आयेगा तो उनके वोट बैंक में तगड़ी सेंधमारी हो जायेगी।घोसी में यही तो हुआ।
इन सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि कांग्रेस आखिर क्यों दलितों पर डोरे डालने में जुटी है। यूपी में कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जिसका अपना कोई कोर वोटर अब नहीं बचा। किसी जमाने में कांग्रेस दलितों और मुसलमानों की बदौलत वो सत्ता में बनी रहती थी। समय के साथ दोनों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। अब कांग्रेस की कोशिश ये है कि जो वोटर सभी पार्टियों से खफा चल रहे हों उन्हें अपने पाले में किया जाये। इसीलिए दलित वोट बैंक को साधने के लिए पार्टी दलित गौरव संवाद अभियान चलाने जा रही है। कारण ये भी है कि यदि इंडिया गठबंधन में चुनाव लड़ना हुआ तो उसे सपा के कोर वोटरों के अलावा दूसरे वोट बैंक की भी जरूरत पड़ेगी। यदि वो ऐसे अभियान नहीं चलायेगी तो दलित वोट बैंक को क्या कहकर एड्रेस करेगी।
साल 2011की जनगणना के मुताबिक यूपी में 20 फीसदी दलित रहते हैं। वोटर का ये बहुत बड़ा सेगमेंट है।इस वोट बैंक की बदौलत कांग्रेस सत्ता में रही। फिर जब दलित उससे अलग हुए तो मायावती समय के साथ दूसरी पार्टियों ने भी अपना स्टैण्ड बदला और अपने परम्परागत वोट बैंक के साथ दलितों को साधने की शुरुआत की। इस वोट बैंक में सेंध भी लगी। इसी उम्मीद में फिर से सभी पार्टियां दलित वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए लालायित हो उठी हैं।