प्रो.शिवकांत ओझा ने सपा छोड़ फिर से पहना भगवा चोला, दिल्ली भाजपा मुख्यालय पहुँचकर भाजपा में हुए शामिल, रानीगंज से उम्मीदवार बनाये जाने की संभावना
सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव द्वारा टिकट वितरण में अनदेखी किये जाने के बाद बढ़ी प्रोफेसर शिवाकांत ओझा की नाराजगी, राजनीति की जहाँ से शुरुवात किये थे, उस घर में वापस लौटे प्रोफेसर शिवाकांत ओझा
नई दिल्ली। यूपी के प्रतापगढ़ जिले से पूर्व मंत्री प्रो. शिवाकांत ओझा ने समाजवादी पार्टी छोड़ दिया है। 27 जनवरी, 2022 को उन्होंने दिल्ली में भाजपा ज्वाइन कर लिया। भाजपा के यूपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने प्रो. शिवाकांत ओझा को भाजपा की सदस्यता दिलाई। प्रो. शिवकांत ओझा के भाजपा में शामिल होने के बाद समझा जा रहा है कि भाजपा उन्हें रानीगंज से उम्मीदवार बना सकती है। प्रो. ओझा रानीगंज से चार बार विधायक रह चुके हैं। इनमें से तीन बार वह भाजपा के ही टिकट पर विधायक चुने गये थे। वर्ष-2012 में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये थे और सपा के टिकट पर विधायक चुने गये थे।
वर्ष-2009 में भाजपा से एकमात्र लोकसभा उम्मीदवार बनने की संभावना के बाद भी प्रो. शिवकांत ओझा बसपा में चले गए। भाजपा को लक्ष्मी नारायण पाण्डेय उर्फ गुरूजी को सपा से भाजपा में शामिल कराना पड़ा और वर्ष-२००९ में उम्मीदवार बनाना पड़ा था। प्रो. शिवकांत ओझा वर्ष-2007 में बसपा उम्मीदवार राम शिरोमणि शुक्ल से विधानसभा चुनाव हार गए थे। वर्ष-लोकसभा चुनाव-2009 में बसपा उम्मीदवार बने और चुनाव में मुंह की खा गए। बसपा से लोकसभा चुनाव परिणाम बाद बसपा से प्रो. शिवकांत ओझा सपा में साइकिल की सवारी कर लिए और उन्हें सपा ने वर्ष-2012 में अपना उम्मीदवार बनाया। एक तरह से बीरापुर से परिवर्तित होकर रानीगंज विधानसभा से प्रो. शिवकांत ओझा पहले विधायक बने। अखिलेश सरकार में प्रो. शिवकांत ओझा कैबिनेट मंत्री बने।
समाजवादी पार्टी से टिकट कटने के बाद प्रो शिवकांत ओझा 24 घण्टे के भीतर भाजपा मुख्यालय दिल्ली पहुँच गए और घर वापसी कर लेने में अपना राजनैतिक भविष्य सुरक्षित समझा। अब भाजपा विधायक धीरज ओझा के लिए सबसे बड़ा खतरा प्रो. शिवकांत ओझा बनकर उभरे हैं। फिलहाल प्रो. शिवाकांत ओझा के भाजपा में शामिल होने के बाद उनके समर्थकों में खुशी की लहर देखी जा रही है। 25 जनवरी, 2022 की शाम समाजवादी पार्टी ने प्रो. शिवाकांत ओझा को दरकिनार कर आपराधिक छवि के विनोद दुबे को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। 26 जनवरी, 2022 को प्रो. ओझा ने अखिलेश यादव से लखनऊ में मिलकर आपत्ति भी जताई थी। पर अखिलेश यादव ने उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दी थी। इससे वह काफी नाराज थे।
अंतत: भाजपा ने मौके की नजाकत को देखते हुए प्रो. शिवकांत ओझा को पार्टी ज्वाइन करा दी। प्रो. शिवाकांत ओझा के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद प्रतापगढ़ की सियासी गुणा-गणित में बडा बदलाव देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से प्रो. शिवकांत ओझा के बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। कल्याण सिंह ने प्रो. शिवकांत ओझा को कलराज मिश्र के समकक्ष नेता बनाना चाहते थे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से प्रो. शिवकांत ओझा के सम्बन्ध भाजपा से बाहर होने के बाद भी बना रहा। भाजपा से बाहर होते हुए भी संघ में गुरु दक्षिणा आदि कार्यक्रम में प्रो. शिवकांत ओझा भाग लेते रहे।
प्रतापगढ़ जनपद में भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं में प्रो. शिवकांत ओझा का नाम आता था। स्वर्गीय कल्याण सिंह जी के बहुत करीबी नेता थे और राममंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे। जब स्वर्गीय कल्याण सिंह जी ने स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी से मतभेद के चलते मुख्यमंत्री पद और भारतीय जनता पार्टी छोड़ी थी तो बीबीसी के संवाददाता ने स्वर्गीय कल्याण कल्याण सिंह जी से पूंछा कि अब बीजेपी से मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? इस पर स्वर्गीय कल्याण सिंह जी का जवाब था कि यह तो किसी पार्टी के हाई कमान या विधायक दल का निर्णय होता है। अतः इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है, लेकिन बात योग्यता की हो तो भारतीय जनता पार्टी को प्रोफेसर शिवाकांत ओझा को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए।
उस समय तब स्वर्गीय राम प्रकाश गुप्ता जी मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद राजनाथ सिंह जी मुख्यमंत्री बने। प्रो. शिवकांत ओझा पहली बार वर्ष-1991 में पट्टी विधानसभा से भाजपा से ही विधायक बने थे। वर्ष-1993 का चुनाव हार गए थे। वर्ष-1996 के विधानसभा चुनाव में प्रोफेसर शिवाकांत ओझा को पट्टी से हटाकर बीरापुर भेज दिया गया था। वर्ष-1996 के चुनाव में बीरापुर से विजयी रहे और कल्याण सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। वर्ष-2002 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा से बीरापुर से विधायक बने। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के आगे वर्ष-2007 में बसपा उम्मीदवार राम शिरोमणि शुक्ल से प्रोफेसर शिवाकांत ओझा विधानसभा चुनाव हार गए थे।
नए परिसीमन में बीरापुर सीट खत्म हो गयी थी, उसी का नाम रानीगंज हो गया। बसपा में जो सोचकर प्रोफेसर शिवाकांत ओझा शामिल हुए थे, वह उनके विचार से मेल नहीं खाया और वह सार्वजनिक रूप से स्वीकार किये कि वह उनकी पहली राजनैतिक भूल थी। भाजपा का जनाधार कहीं से बढ़ नहीं रहा था। इसलिए प्रोफेसर शिवाकांत ओझा सपा में शामिल हो गए और वर्ष-2012 में सपा के टिकट से पुनः विधायक बने और अखिलेश सरकार में मंत्री भी बने। बीच में अखिलेश यादव ने प्रोफेसर शिवाकांत ओझा को अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था। वर्ष-2016 में प्रोफेसर शिवाकांत ओझा दोराहे पर खड़े हो गए। उनके सामने ऐसा दौर आया कि एक तरफ उन्हें सपा सरकार में मंत्री बनना था, दूसरी तरफ बीजेपी में शामिल होंने का अवसर मिल रहा था।
वह राजनीतिक निर्णय लेने में दूसरी बार भूल कर दी और वह फिर अखिलेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बन गए। वर्ष-2017 का विधानसभा चुनाव लड़ने का उन्हें भाजपा ने ऑफर किया, मगर वह तीसरी बार चूक कर गए। अन्यथा भाजपा से वर्ष-2017 का चुनाव जीतकर मंत्री बनते। प्रोफेसर शिवाकांत ओझा की राजनैतिक समझ यह थी कि धीरज ओझा यदि भाजपा से उनके सामने लड़ते हैं तो वह चुनाव जीत जायेंगे। प्रोफेसर शिवाकांत ओझा इस बार भी गलत आंकलन कर बैठे और सपा से चुनाव लड़कर बीजेपी लहर में चुनाव हार गए। विधायक धीरज ओझा रानीगंज से विधायक बन गए।
पहली बार भाजपा के टिकट से विधायक बने धीरज ओझा युवा नेताओं में से एक हैं और मिलनसार भी हैं। फिर भी कुछ आदत उनकी ऐसी रही जिससे विधानसभा क्षेत्र में उनकी छवि जन विरोधी होती गई। विधानसभा चुनाव-२०२२ की अधिसूचना से पहले रानीगंज से विधायक धीरज ओझा का टिकट कटने की आशंका ब्यक्त की जाने लगी। मीडिया में यह बात आने लगी कि प्रोफेसर शिवाकांत ओझा की घर वापसी हो सकती है और वह भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं। इसी बीच प्रोफेसर शिवाकांत ओझा के रानीगंज विधानसभा क्षेत्र में एक जनसभा में मंच पर ही पूर्व विधायक श्याद अली से मारपीट हो गई। जिसके बाद पूर्व विधायक श्याद अली और उनके समर्थकों सहित बृजेश यादव के कुछ समर्थक सपा सुप्रीमों से शिकायत किये कि प्रोफेसर शिवाकांत ओझा को टिकट दिया गया तो वह लोग उनका पुरजोर विरोध करेंगे। इस मुहिम में शकील अहमद भी शामिल हो गए। जब रानीगंज विधानसभा के लिए टिकट देने की बारी आई तो बाजी तीसरा ब्यक्ति मार ले गया।
प्रोफेसर शिवाकांत ओझा वाच एंड वेट की स्थिति में टिकट की घोषणा का इंतजार करने लगे। वर्ष-2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने उनका टिकट काट दिया तो वह मानो पेड़ से गिर गए हों ! प्रोफेसर शिवाकांत ओझा अपने पुत्र श्यामू ओझा के साथ आज नई दिल्ली पहुँचकर भाजपा में शामिल होकर राजनीति की जहाँ से शुरुवात किये थे, उस घर में लौट आए। अभी प्रोफेसर शिवाकांत ओझा के तमाम सहयोगी भाजपा में जाने के लिए वेताब हैं। परन्तु सबकी नजर रानीगंज विधानसभा से भाजपा के उम्मीदवार पर टिकी हुई है। मजे की बात यह है कि सपा, बसपा और कांग्रेस से जितने नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, वह सब दिल्ली जाकर ही भगवाधारी हो रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि उत्तराखंड के गंगोत्री से पवित्र गंगाजल लाकर भाजपा मुख्यालय रखा हुआ है। दूसरे दल के जो भी नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उन्हें भगवा धारण करने से पहले पवित्र गंगा जल से नहला धुलाकर पवित्र किया जा रहा है।