हाईकोर्ट खंडपीठ लखनऊ ने सदर एसडीएम उदय भान सिंह को ब्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करके कोर्ट में उपस्पथित होने के लिए किया है, तलब
एसडीएम सदर उदय भान सिंह स्वयं को मानते हैं, खुदा ! इसलिए उल्टे सीधे करते हैं, आदेश…!!!
प्रतापगढ़। एसडीएम सदर के न्यायालय में दाखिल होने वाले राजस्व मामले में जो देखने व सुनने को मिल रहा है, उस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है। परन्तु जब अभिलेखीय साक्ष्य सामने हो तो आँखों और कानों सहित मन को भी मानना ही पड़ता है। वैसे तो प्रतापगढ़ में पाँच तहसील हैं और उनमें पाँच SDM हैं। फिर भी एसडीएम सदर उदय भान सिंह स्वयं को हिटलर से कम नहीं मानते। मनमाने ढंग से सदर तहसील का संचालन कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके जैसा विद्वान इस धरती पर दूसरा कोई नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि उनके द्वारा अदालती आदेश में भी संसोधन आदेश किये जा रहे हैं। ऐसा आदेश कम मिलता है जिसमें सबकुछ दुरुस्त हो।
ऐसा ही एक प्रकरण सदर तहसील का सामना आया है जिसमें पीड़ित मजबूर होकर हाईकोर्ट खंडपीठ लखनऊ का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ता सहबाज खान के वकील अमर नाथ दुबे जो याचिका हाईकोर्ट के समक्ष दाखिल की, उसमें आरोप है कि सदर तहसील में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा-80 के अंतर्गत वाद संख्या- 5258/2022 (RST/5258/2022), कम्प्यूटरीकृत वाद संख्या- T202202570305258 में प्रतिवादी संख्या-2 यानि उप जिला मजिस्ट्रेट सदर प्रतापगढ़ द्वारा पारित आदेश दिनांक- 22.9.2022 के साथ-साथ 5.1.2024 को रद्द करना।
याचिकाकर्ता के विद्वान वकील ने धारा- 80 के तहत दायर किए गए आवेदन की ओर इशारा किया है, जिससे पता चलता है कि यह दिनांक- 16.08.2022 को दायर किया गया है। उपजिलाधिकारी ने उक्त आवेदन पर तहसीलदार को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। उपजिलाधिकारी द्वारा तहसीलदार को किया गया पृष्ठांकन भी दिनांक- 16.08.2022 का है, फिर भी उपजिलाधिकारी ने आक्षेपित आदेश में दिनांक- 27.03.2022 को लेखपाल द्वारा किये गये स्थलीय निरीक्षण का उल्लेख किया है। राजस्व निरीक्षक ऐसी निरीक्षण रिपोर्ट दिनांक- 29.03.2022 को अग्रसारित करते हैं तथा तहसीलदार सदर अपनी रिपोर्ट दिनांक 09.04.2022 को भेजते हैं।
हल्का लेखपाल ने इस पर 09.09.2022 को हस्ताक्षर किए हैं और उसी दिन राजस्व निरीक्षक ने इसे तहसीलदार को भेज दिया है और तहसीलदार ने दिनांक-10.09.2022 को इस पर हस्ताक्षर किए हैं। उनका कहना है कि दिनांक- 22.09.2022 के आदेश को पारित करने में मुद्रण संबंधी त्रुटि हो सकती है। सब डिविजनल मजिस्ट्रेट एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करेंगे कि उन्होंने किस तरह से लेखपाल की रिपोर्ट दिनांक- 27.03.2022, राजस्व निरीक्षक की रिपोर्ट दिनांक- 29.03.2022 और तहसीलदार की रिपोर्ट दिनांक- 09.04.2022 को अग्रेषित किया है। आदेश का विरोध किया गया। इस मामले को अगली पेशी दिनांक- 20.02.2024 को नये सिरे से सूचीबद्ध करें। लिस्टिंग की अगली तारीख तक, दिनांक- 22.09.2022 का विवादित आदेश स्थगित रहेगा।
अमूमन सदर तहसील का कार्यभार डायरेक्ट पीसीएस वाले अफसर को दिया जाता है, परन्तु प्रमोटी पीसीएस जब जुआड़ वाला हो तो वह डायरेक्ट वाले पीसीएस पर भारी पड़ता है। ऐसा ही मामला प्रतापगढ़ के सदर तहसील में वर्तमान व्यवस्था में देखा जा सकता है। डायरेक्ट पीसीएस को दरकिनार करते हुए प्रमोटी पीसीएस को चार्ज देकर कार्य कराया जा रहा है। सदर एसडीएम उदय भान सिंह का सितम्बर, 2024 में रिटायर्मेंट है और कुछ माह की नौकरी में अधिक धन लाभ के चक्कर में तहसील सदर में रात 10 बजे तक कार्यालय खोलकर ऐसे कार्य कर रहे हैं, जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। एसडीएम सदर उदय भान सिंह अपने प्राइवेट आदमियों से शहरी क्षेत्र के उन मकानों की सूची तैयार की गई है जो नजूल भूमि पर बने हैं।
अदालती मामलों में भी एसडीएम सदर अपने उन्हीं प्राइवेट आदमियों से पत्रावली की छटनी कराते हैं, जिसमें धन की वसूली आसानी से की जा सके। एसडीएम सदर पर आरोपों की इस कदर बौछार हो रही है कि एक सामान्य ब्यक्ति भी लज्जा वश शर्म से डूब मरता, परन्तु एसडीएम सदर उदय भान सिंह पर साक्ष्य सहित आरोपों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। एसडीएम सदर अपनी आदत में तनिक भी बदलाव नहीं ला रहे हैं, बल्कि और लूट खसोट में ब्यस्त होते जा रहे हैं। उन्हें अपनी इज्जत का भी कोई ध्यान नहीं है। अदालत में सुनवाई हेतु जितनी पत्रावलियां विचाराधीन हैं, सबको टटोला जा रहा है कि किस्में कितना धन मिल सकता है ? इसके लिए एसडीएम सदर अपने प्राइवेट आदमियों से पत्रावलियों की छटनी कराते हैं और छटनी के दौरान कुछ पत्रावली गायब भी हो जाती हैं।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा-80 के मामले में तहसीन बानो बनाम सरकार के वाद में दहिलामऊ बाहर की गाटा संख्या- 351 के हिस्सेदारों में दासी पत्नी सहाबुद्दीन और लैला पत्नी अबुल हसन की मौत बहुत पहले हो चुकी है। साथ ही सहबाज पुत्र इफ्तेखार हुसाम पुत्र अब्दुल जब्बार के हस्ताक्षर हलफनामें में फेंक हैं। इसलिए धारा-80 की पत्रावली में सहमति पत्र और हलफनामा में हस्ताक्षर फेंक बनाकर एसडीएम सदर के न्यायालय से आदेश करा लिया गया और जब उन लोगों को जानकारी हुई तो वाद पुनर्स्थापना के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु एसडीएम सदर उदय भान सिंह सभी साक्ष्यों को अनदेखा कर उसमें पूर्व आदेश को बहाल कर दिया। जबकि राजस्व टीम की रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि सहमति पत्र पर निशानी अंगूठा लगाने वाली दासी पत्नी सहाबुद्दीन और लैला पत्नी अबुल हसन की मौत बहुत पहले हो चुकी है।
यक्ष प्रश्न यह है कि जो पत्रवाली तैयार होकर उप जिला मजिस्ट्रेट सदर के न्यायालय में दाखिल हुई, उसमें ऐसे लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं जो इस धरती से परलोक सिधार गए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि एसडीएम सदर का न्यायालय परलोक गया अथवा परलोक सिधार गए लोग हस्ताक्षर करने एसडीएम कोर्ट तक आये या उनके हस्ताक्षर जाली बनाकर पत्रवाली तैयार की गई। इस खेल में कौन-कौन लोग शामिल हैं ? यह तो वादी मुकदमा और एसडीएम सदर उदय भान सिंह एवं उनके अधीनस्थ ही बता सकते हैं। ये दावा खुलासा इंडिया नहीं बल्कि राजस्व विभाग द्वारा जो रिपोर्ट लगाई गई है, उसमें इसका उल्लेख किया गया। यदि ये बात सही है तो एसडीएम सदर के कार्यालय से लेकर कोर्ट तक सबकुछ दुरुस्त नहीं है। योगीराज के रामराज्य पर सवालिया निशान एसडीएम सदर उदय भान सिंह लगा रहे हैं।