नीतीश और तेजस्वी यादव को बराबर का टेंशन, बिहार में विधायकों के निर्णायक नंबर गेम में उलझी फ्लोर टेस्ट की कहानी

पटना। बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान निर्णायक नंबर गेम का काफी महत्व है। विधायकों की संख्या मायने रखती है। राजनीतिक जानकार वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कहते हैं कि सबसे बड़ी बात इस बार देखने में ये आ रही है कि राजनीतिक दलों के अंदर विश्वसनीयता की कमी हो गई है। किसी भी दल को अपने विधायकों के ऊपर विश्वास नहीं रहा। पार्टियों को भोज, प्रशिक्षण और देशाटन के बहाने विधायकों को अलग-थलग रखना पड़ा रहा है। ये राजनीति का संक्रमण काल है। यहां विश्वास मायने नहीं रखता। अब मैनेजमेंट मायने रखता है। पहले व्हिप जारी होता था। ये काफी होता था, विधायकों को एकजुट करने के लिए। अब ऐसा नहीं है। विधायक कहीं भाग न जाएं और दूसरे के संपर्क में नहीं हो जाएं। इसलिए कई तरह के उपाय किये जाते हैं। इस दौरान उन्हें कभी प्रदेश से बाहर ले जाया जाता है। कभी अपने आवास पर शरण दिया जाता है। ये बिहार की राजनीति में पहले कभी नहीं देखा गया है। अब इन दिनों हो रहा है। सवाल ये है कि इतनी सक्रियता रखने का क्या मतलब है। यदि तेजस्वी खेला करने जा रहे हैं। तो उन्हें खुलकर इसके बारे में बोलने की जरूरत नहीं थी।

नंबर गेम पर अटकी सियासत…

सियासी जानकार मानते हैं कि बिहार में जो नंबर गेम की स्थिति है। उसमें नीतीश कुमार के साथ तेजस्वी यादव भी तनाव में हैं। सभी की निगाहें सोमवार (12 फरवरी) को बिहार में होने वाले फ्लोर टेस्ट पर टिकी हैं, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना बहुमत साबित करना होगा। कांग्रेस अपने विधायकों को तेजस्वी यादव के हाथों में सौंप चुकी है। उधर, बीजेपी ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पीएम से मुलाकात होते ही अपने विधायकों को गया के एक रिसॉर्ट में शिफ्ट किया। बीजेपी टूट और खरीद-फरोख्त से निश्चिंत हो गई है। उधर, कांग्रेस पूरी तरह विधायकों को सहेजकर रखे हुए हैं। तेजस्वी के आवास पर लगातार गजल संध्या चल रही है। यानी आरजेडी के विधायक भी एकजुट हैं। सियासी जानकार पूछ रहे हैं कि दिक्कत है कहां। कौन टूटने जा रहा है। किस पार्टी के टूटने की आशंका है। खेला क्या होगा। कौन खेला करेगा। इस बात को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

निर्णायक नंबर किसके पास…

बिहार विधानसभा की कुल ताकत 243 है। बहुमत का आंकड़ा 122 है। एनडीए के पास 128 का आंकड़ा मौजूद है। जिसमें भाजपा के पास 78 सीटें, जेडीयू के पास 45 सीटें, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के पास 4 सीटें और निर्दलीय विधायक सुमित सिंह साथ हैं ही। विपक्ष के पास 114 सीटें हैं – राजद के पास सबसे ज्यादा 79, कांग्रेस के पास 19, सीपीआई (एमएल) के पास 12, सीपीआई (एम) के पास 2, सीपीआई के पास 2 सीटें हैं। कांग्रेस विधायक पूरी तरह राजद के साथ हैं। वे तेजस्वी यादव के बंगले से सीधे एक बार विधानसभा परिसर ही पहुंचेंगे। उनके इधर-उधर होने का कोई चांस नहीं। उधर, शनिवार को लंच के बाद से ही राजद विधायक तेजस्वी के यहां डेरा डाले हुए हैं। सोशल मीडिया पर उनके संगीत के साथ अलाव का आनंद लेने का वीडियो सबने देख लिया है। जेडीयू के विधायकों को कहीं शिफ्ट नहीं किया गया है। श्रवण कुमार के यहां भोज में उपस्थिति कम रहने पर नीतीश कुमार नाराज हुए। आज मंत्री विजय चौधरी के यहां भोज में सभी विधायकों को उपस्थित कराने का प्रयास किया गया है। इस तरह जेडीयू के विधायक भी अभेद किले में हैं।

विश्वासमत में होगा क्या होगा…

एनडीए को विश्वास है कि वो शक्ति परीक्षण में पास हो जाएगी। उसके बाद बहुमत का पूरा आंकड़ा मौजूद है। उधर, HAM ने एक व्हिप भी जारी कर अपने सभी चार विधायकों को फ्लोर टेस्ट में उपस्थित रहने के लिए कहा है। जीतन राम मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी नीतीश कुमार सरकार के पक्ष में वोट करेगी। विपक्ष का हिस्सा सीपीआई (एमएल) नेता मेहबूब आलम ने हाल ही में जीतन राम मांझी से मुलाकात की, जिससे अटकलें शुरू हो गईं कि क्या महागठबंधन मांझी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहा है। महबूब आलम ने कहा कि ये एक शिष्टाचार मुलाकात थी क्योंकि मांझी की तबीयत ठीक नहीं थी। सियासी जानकार मानते हैं कि पता ही नहीं चल रहा है कि कौन खेला करने वाला है। खेला करने के हिसाब से देखें, तो तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों टेंशन में हैं। सभी दलों के एक दो या तीन विधायक संपर्क से दूर हैं। इसका मतलब थोड़े हैं कि खेला होगा। उधर, बीजेपी ने तेजस्वी के यहां विधायकों के ठहरने की बात पर हमला बोला है। बीजेपी का कहना है कि आरजेडी नेतृत्व को विधायकों पर भरोसा नहीं है।

खेला का क्या मतलब…

हालांकि, बिहार विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने इस्तीफा देने से पहले ही इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वह विधानसभा की कार्यवाही नियमानुसार चलाएंगे। सत्र की शुरुआत सेंट्रल हॉल में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर के दोनों सदनों के संयुक्त संबोधन से होगी, जिसके बाद स्पीकर के खिलाफ अविश्वास नोटिस पर चर्चा होगी। फिर नीतीश सरकार अपना विश्वासमत साबित करेगी। ध्यान रहे कि बिहार में खेला शब्द को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। तेजस्वी ने जब से ये बात कही। उसके बाद से सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा शुरू हो गई, जैसे सरकार अपना विश्वासमत नहीं साबित कर पाएगी। अटकलें लगाई जा रही हैं कि तेजस्वी के पिता और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद विश्वास मत के दौरान राजग की बाजी पलटने के लिए अपनी कुशलता का इस्तेमाल करेंगे। हालांकि, सियासी जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं है। लालू यादव को इस बात का पता है कि नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। उनसे निपटने के लिए प्लानिंग टाइट रखनी होगी।

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