ममता बनर्जी, जेपी का विरोध कर सुर्खियों में आईं थीं, विपक्ष-एकजुटता के लिए उसी आंदोलन को बनाना चाहती थीं, अपना हथियार 

 

तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमों ममता बनर्जी का दोहरा चरित्र हुआ उजागर…

 

कोलकता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किस मिट्टी की बनी हैं, यह कहना बहुत सहज नही है। क्योंकि ममता बनर्जी जब कांग्रेस में थी और पश्चिम बंगाल की राजनीति में अपनी राजनेतिक पारी की शुरुआत की तब पश्चिम बंगाल की जमीन पर राजनीति में अपना पाँव जमाना आसान कम नहीं था। सो ममता बनर्जी नया तरीका खोजा। साल 1975 में कलकत्ते की एक सड़क पर 80 वर्ष के वृद्ध नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कार रोकने के बाद उनकी कार की छत और बोनट पर एक कांग्रेसी लड़की चिल्लाते नाचने कूदने लगी थी और अखबारों की सारी सुर्खियां बटोर ले गई थी। इंदिरा गांधी उस लड़की से बेहद खुश हुई, उसे लड़की को दिल्ली बुलाया और उस लड़की को कांग्रेस सरकार में मंत्री बना दिया, जबकि उस लड़की की एकमात्र उपलब्धियां थी कि उसने जयप्रकाश नारायण के कार के छत पर डांस किया था। वो लड़की कोई और नहीं आज की ममता बनर्जी ही थी।

नितीश कुमार और ममता बनर्जी की अगुवाई में विपक्षी दलों की पटना में बैठक होनी थी, बैठक

ममता बनर्जी अपनी उस उद्दंडता और अराजकता के साथ राजनीतिक यात्रा प्रारंभ करने वाली ममता बनर्जी शायद भूल गयी है कि वर्तमान संचार क्रांति के युग में ऐसे हथकंडों की न ज्यादा उम्र होती है, न ज्यादा असर होता है। करीब 50 साल बाद जय प्रकाश नारायण (जेपी) एक बार राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की मुलाकात में जेपी का नाम नए सिरे से उभरा। ममता ने देश में सत्ता परिवर्तन के लिए जेपी मूवमेंट को याद किया और विपक्षी नेताओं की अगली बैठक जेपी आंदोलन की भूमि बिहार में बुलाने का प्रस्ताव दिया। परन्तु यह तरीका भी बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने फेल कर दिया और एक बार बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को इंडिया गठबंधन से तोड़कर एनडीए में शामिल कर लिया और राजद व कांग्रेस को एक बार धूल चटाते हुए बिहार में भाजपा और जेड (यू) यानि एनडीए की सरकार बना डाली।

आज उसी जेपी की दुहाई देकर पटना में विपक्षी बैठक की दी थी, सलाह

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की सलाह पर विपक्षी नेताओं की अगली बैठक बिहार में होने वाली थी। पटना में इसकी तैयारियां भी आकार लेने लगी हैं। नीतीश कुमार जेपी मूवमेंट की याद ममता बनर्जी द्वारा दिलाने पर खासा उत्साहित भी हुए थे। इसलिए कि नितीश खुद ही जेपी मूवमेंट की उपज हैं। ममता बनर्जी का भी तार जेपी से जुड़ता है, लेकिन दूसरे संदर्भों में। वह तब जेपी मूवमेंट की विरोधी थीं। उन्होंने आंदोलन का विरोध इसलिए किया कि तब वे कांग्रेस में थीं और आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ ही था। उस वक्त ममता बनर्जी ने जेपी के विरोध का अनोखा तरीखा अख्तियार किया था। इसके बाद से वो और मशहूर होती चली गईं। वही ममता बनर्जी कांग्रेस को लात मारकर तृणमूल कांग्रेस दल का रजिस्ट्रेशन कराया और पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका और स्वयं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गई।

ममता को जेपी आंदोलन याद है, पर अपना कारनामा नहीं

साल 1955 में कोलकाता में जन्म लेने वाली ममता बनर्जी शुरू से राजनीति में सक्रिय रहीं। वे जब 15 साल की थीं तो एक ऐसा कारनामा किया कि रातोंरात सुर्खियों में आ गई थीं। तब वह कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज में पढ़ रही थीं। पढ़ते समय उन्होंने कांग्रेस (आई) के स्टूडेंस विंग छात्र परिषद की स्थापना की। उनका राजनीतिक करियर 1970 के दशक में कांग्रेस से शुरू हुआ। साल 1975 की बात है। उन्होंने समाजवादी कार्यकर्ता और राजनेता जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन का विरोध अपने अंदाज में किया। जेपी की कार के बोनट पर चढ़ कर उन्होंने अपना विरोध जताया। जयप्रकाश नारायण कोलकाता के दौरे पर पहुंचे थे। जेपी अन्य आंदोलन समर्थक नेताओं के साथ कोलकाता में एक सभा को संबोधित करने वाले थे। जैसे ही उनका काफिला शहर में पहुंचा, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने रास्ता रोक दिया। इसी दौरान ममता बनर्जी जेपी की कार के बोनट पर चढ़ गईं। उन्होंने जमकर नारेबाजी की। कहते तो हैं कि उन्होंने जेपी की कार के बोनट पर चढ़ कर डांस भी किया। उसके बाद ममता बनर्जी मीडिया में छा गईं।

जनता पार्टी के पीएम मोरारजी को दिखाया था, काला झंडा

कांग्रेस में रहते ममता बनर्जी का यह पहला कारनामा था। जेपी मूवमेंट की वजह से 1977 में कांग्रेस के पांव उखड़ गए। जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार में पीएम बने मोरारजी देसाई। मोरारजी भाई जब कोलकाता आए तो उन्हें काला झंडा दिखाने की कांग्रेसियों ने योजना बनाई। कड़ी सुरक्षा के बीच यह संभव नहीं था। इसका जिम्मा ममता बनर्जी को सौंपा गया। रास्ता बदल कर बदले लिबास में ममता बनर्जी अचानक रेड रोड पर पीएम की कार के सामने प्रकट हो गईं। उनके हाथ में काला झंडा था। उन्होंने लहराना शुरू किया। फिर तो बाकी कांग्रेसी भी सामने आ गए थे। ममता के चर्चा में आने का यह दूसरा मौका था। उसके बाद तो ममता बनर्जी सियासत में दनादन पांव बढ़ाने लगीं। राजनीतिक जीवन में हर समय एक जैसी स्थिति नहीं रहती। कभी गलत निर्णय भी किस्मत बदल कर रख देता है। ममता बनर्जी का ये निर्णय समय से पहले ही हवा में उड़ गया, क्योंकि नितीश कुमार अब विपक्ष को लात मारकर सत्ताधारी घटक (एनडीए) का हिस्सा बन चुके हैं।

जिस जेपी का ममता बनर्जी ने विरोध किया था, उसी जेपी आंदोलन की जमीन ममता बनर्जी को आज बहुत पसंद है

ममता बनर्जी ने भले ही जेपी का विरोध किया, लेकिन उनके आंदोलन की सफलता को वे शिद्दत से स्वीकारती हैं। तभी तो उन्होंने नितीश कुमार से मुलाकात के दौरान कहा कि बिहार आंदोलन की भूमि है। सत्ता के खिलाफ जेपी का आंदोलन पटना से ही शुरू हुआ था। आंदोलन सफल भी हुआ। इसलिए विपक्षी दलों की अगली बैठक पटना में ही बुलाई जानी चाहिए। नितीश ने ममता का प्रस्ताव मान लिया था। पटना में बैठक आयोजित करने की तैयारी भी शुरू हो गई थी। जेपी ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को एक किया था। जेपी ने साल 1977 के लोकसभा चुनाव के पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ विपक्ष को एक मंच पर ला दिया था। वामपंथियों को छोड़ सभी विपक्षी दल जेपी के आह्वान पर अपनी पहचान को तिलांजलि दे, एक मंच पर जमा हो गए थे। जनता पार्टी का गठन हुआ। जनता पार्टी सरकार के पहले पीएम मोरारजी देसाई बने थे। हालांकि जनता पार्टी की सरकार दोहरी सदस्यता के सवाल पर अधिक दिन तक टिक नहीं पाई। दो साल में ही सरकार गिर गई। साल 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौट आई थीं।

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