Loksabha Election Result 2024: UP के नतीजों में सियासी उलटफेर, जानें क्या रही वजह ?
उत्तर प्रदेश के नतीजे चौंकाने वाले हैं। देश के सबसे राज्य में लोकसभा की 80 सीटें हैं। बीजेपी मिशन 80 के साथ चुनाव में उतरी थी। राजनीतिक जानकार भी उससे अच्छी खास सीट मिलने की संभावना जता रहे थे, लेकिन सारे दावे धरे के धरे रह गए। यहां पर बीजेपी 40 का आंकड़ा भी नहीं पा कर पाई।
विपक्ष का झूठ जनता ने स्वीकारा और मोदी की गारंटी को नकार दिया
लोकसभा चुनाव-2024 में उत्तर प्रदेश के नतीजे चौंकाने वाले हैं। एक ओर बीजेपी मिशन 80 के साथ यूपी में उतरी थी तो वहीं इंडिया गठबंधन ने उसके इस प्लान को फेल करने के लिए पूरा दम लगा दिया था। वो इसमें कामयाब भी रहा। अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने तमाम एग्जिट पोल के अनुमानों को गलत साबित करते हुए देश के सबसे बड़े राज्य में इंडिया गठबंधन को मजबूत कर दिया। विपक्ष का झूठ जनता ने स्वीकार कर लिया और मोदी की गारंटी को जनता ने नकार दिया।
सपा 37 पर और कांग्रेस 6 सीटों पर जीती तो भाजपा 33 सीटों पर दर्ज की जीत
यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं। यहां पर सपा ने सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। सपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, कांग्रेस के खाते में 6 सीटें आईं। बीजेपी ने 33 सीटों पर दर्ज की। उसकी सहयोगी आरएलडी को 2 सीटों पर जीत मिली। एक सीट पर आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और एक पर अपना दल (सोनेलाल) को जीत मिली। अहम् सवाल है जो भाजपा के बडबोले नेता 80 में 80 सीटें जीत रहे थे, वह चुनाव परिणाम में शिकस्त खाने के बाद कैमरे के सामने एक बार भी न दिखे।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा
समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद लोकसभा चुनावों में यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। साल- 2019 में बसपा से गठबंधन के बावजूद वो सिर्फ पांच सीटें जीती थी। सपा ने इस बार अकेले (यादव) परिवार में ही पांच सीटें हासिल कर ली हैं। वर्ष- 2019 में अकेले 62 सीट पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार यूपी में 33 सीटों पर ही सिमट गई। आखिर मोदी का मैजिक उत्तर प्रदेश में क्यों फ्लॉप हुआ ? क्या यूपी की जनता मोदी से नाराज थी या योगी से नाराज थी अथवा उम्मीदवारों से नाराज थी ? क्योंकि कई जगह यह नारा सोशल मीडिया में वायरल होता दिखा कि मोदी और योगी से बैर नहीं और उम्मीदवार की खैर नहीं…
अखिलेश यादव का पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फार्मूला काम कर गया
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह पहला आम चुनाव था। अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी ने साल- 2004 से भी बेहतर प्रदर्शन किया है। साल- 2004 के चुनाव में सपा ने 36 सीट जीती थीं। प्रचार के दौरान मोदी अक्सर अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दो लड़कों की जोड़ी बताकर तंज कसते थे। ऐसा लगता है कि अखिलेश के पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फार्मूले ने पार्टी के लिए काम किया। अखिलेश यादव को पता था कि उन्हें सवर्ण वोट नहीं मिलेगा, इसलिए वह पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फार्मूले अख्तियार कर चुनवे वैतरणी पार करने की कोशिश की और उसमें वह सफल हुए।
सवर्ण समाज की नाराजगी भाजपा की हार की वजह बनी
भाजपा भी सवर्ण समाज को 10 सालों में हासिये पर लाकर खड़ा किया और सपा, बसपा और कांग्रेस ने भी सवर्ण समाज को नजरंदाज किया। सवर्ण समाज को लगा कि उसे किसी राजनीतिक दलों द्वारा कोई तवज्जों नहीं मिल रही है, इसलिए वह इस चुनाव में शांत बैठ गए और मतदान करने भी नहीं निकले। जिसकी वजह से मतदान प्रतिशत में गिरावट आई और उत्तर प्रदेश में सियासी उलटफेर हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा का सवर्ण वोटर घर से नहीं निकला, जिसकी वजह से भाजपा की हार हुई है। लोकसभा चुनाव में पिछड़ी जाति, मुस्लिम और दलित मतदाताओं ने एक मुश्त मतदान कर इतिहास रच दिया।
भाई, भतीजा और परिवारवाद को सूबे की जनता ने स्वीकार किया और भाजपा के उम्मीदवारों को नकार दिया
उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़े अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव और तीन चचेरे भाईयों के लिए समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश ने बीजेपी को अपने विमर्श को बदलने के लिए मजबूर किया और कुछ हद तक उसे बैकफुट पर भी धकेल दिया। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के भाई-भतीजावाद के आरोप पर पलटवार करते हुए कहा कि जिनका कोई परिवार नहीं है, उन्हें दूसरों को दोष देने का कोई अधिकार नहीं है। यूपी की जनता का मिजाज भी अजीब है। एक तरफ सैफई के यादव परिवार को स्वीकार करना और भाजपा के उम्मीदवारों को नकार देना समझ के परे रहा।
साल-2017 से सपा सुप्रीमों ने भाजपा को परास्त करने के लिए सभी दलों से गठबंधन का प्रयोग किया, जो साल-2024 में जाकर सफल हुआ
सपा के प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि राज्य की मुस्लिम आबादी का भी उसे मजबूत समर्थन मिला है, जो कुल आबादी में एक बड़ा हिस्सा है। चुनाव नतीजे दर्शाते हैं कि अपने पूर्व सहयोगी बहुजन समाज पार्टी से अलग होने से सपा को कोई नुकसान नहीं हुआ। अखिलेश यादव ने साल- 2017 से लगातार गठबंधन का प्रयोग किया। विधानसभा चुनाव- 2017 में सबसे पहले कांग्रेस से गठबंधन किया, पर फेल रहे। उप चुनाव- 2018 में सपा का बसपा के साथ गठबंधन सफल रहा। गोरखपुर और फूलपुर की दोनों सीटें लोकसभा की जीत लिए। इसलिए लोकसभा चुनाव-2019 में पुनः बसपा और सपा गठबंधन हुआ और अखिलेश यादव का यह गठबंधन बुरी तरह उनके लिए फेल साबित हुआ।