आइये जाने कि भगवान भोलेनाथ महादेव की प्रतिमा के सामने ही विराजमान रहते हैं, नंदी
शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों को चिंता सताने लगी। मुनि योग और तप में व्यस्त रहने के कारण ग्रहस्थ आश्रम नहीं अपनाना चाहते थे। मगर अपने पितरों की चिंता भी उनसे नहीं देखी जा रही थी। शिलाद मुनि ने अपने तप से इंद्र देवता को प्रसन्न करके उनसे जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा। परन्तु इंद्र ने यह वरदान देने में असर्मथता प्रकट की और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा।
भोलेबाबा ने शिलाद मुनि के तप से प्रसन्न होकर स्वयं शिलाद पुत्र के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि की जोताई करते वक्त शिलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे, जिन्होंने नंदी के अल्पायु होने की भविष्यवाणी की। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया।
दिन रात तपस्या करने के बाद नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिवजी ने नंदी से उसकी इच्छा पूछी, तो नंदी ने कहा कि मैं पूरी उम्र सिर्फ आपके साथ ही रहना चाहता हूं। शिवजी ने उसे गले लगा लिया। शिवजी ने नंदी को बैल का चेहरा दिया और उसे अपने वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तम रूप में स्वीकार कर लिया। भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। अभिषेक होने के बाद नंदी बन गए नंदीश्वर। तभी से हर शिव मंदिर में भोलेबाबा की प्रतिमा के सामने नंदी महाराज अवश्य विराजते हैं।