Delhi First Assembly Election: दिल्ली में विधानसभा चुनाव-2025 का बिगुल बज गया है। मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच बताया जा रहा है। कांग्रेस भी खुद को लड़ाई में लाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था, जब कांग्रेस के अलावा दिल्ली में दूर-दूर तक कोई पार्टी नहीं दिख रही थी। हम बात कर रहे हैं, दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव की। आईए जान लेते हैं, दिल्ली के पहले चुनाव की कहानी…
दिल्ले में 6 सीटों पर जीते थे 12 विधायक, जानें कौन था, एक्सीडेंटल CM
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए शंखनाद हो चुका है। पांच फरवरी को वोट डाले जाएंगे और आठ को नतीजे भी आ जाएंगे। मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच बताया जा रहा है। कांग्रेस भी खुद को लड़ाई में लाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था, जब कांग्रेस के अलावा दिल्ली में दूर-दूर तक कोई पार्टी नहीं दिख रही थी। हम बात कर रहे हैं, दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव की। आईए जान लेते हैं दिल्ली के पहले चुनाव की कहानी।
दिल्ली में निर्वाचित पहली सरकार को भंग कर विधानसभा का ही कर दिया गया था, उन्मूलन
दिल्ली विधानसभा का गठन 17 मार्च, 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम-1951 के तहत पहली बार किया गया था। इसके बाद विधानसभा चुनाव हुआ और सरकार भी बनी। हालांकि, एक अक्तूबर, 1956 को विधानसभा का उन्मूलन कर दिया गया। इसके बाद सितम्बर, 1966 में विधानसभा की जगह एक मेट्रोपोलिटन काउंसिल बना दी गई, जिसमें 56 निर्वाचित और पांच मनोनीत सदस्य होते थे। इसके साथ ही दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बंद हो गए। साल- 1991 में संविधान में 69वां संशोधन कर दिल्ली के लिए विधानसभा की व्यवस्था की गई। साल- 1992 में दिल्ली में परिसीमन हुआ और साल- 1993 में विधानसभा चुनाव के बाद निर्वाचित सरकार बनी। तब से दिल्ली में चुनाव होते आ रहे हैं।
साल- 1952 में हुआ था, दिल्ली का पहला चुनाव
दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव साल- 1952 में हुआ था। आज भले ही वहां विधानसभा की 70 सीटें हैं, पर तब इनकी संख्या 48 थी। तब भाजपा भी अस्तित्व में नहीं आई थी और केवल कांग्रेस का बोलबाला था। कांग्रेस ने पहले चुनाव में 48 में से 36 सीटें अपने नाम की थीं। तब कुल 58.52 फीसदी मतदाताओं यानि 521766 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इनमें से आधे से ज्यादा 52 फीसदी वोट केवल कांग्रेस को मिले थे।
दिल्ली में छः सीटों पर बने थे, दो-दो विधायक
दिल्ली के पहले चुनाव में छह सीटें ऐसी थीं, जिन पर दो-दो विधायक जीते थे। रीडिंग रोड, रहगर पुरा देवनगर, सीताराम बाजार तुर्कमान गेट, पहाड़ी धीरज बस्ती जुलाहा, नरेला और मेहरौली सीट से दो-दो सदस्य विधानसभा पहुंचे थे। इनमें से रीडिंग रोड ऐसी सीट ऐसी थी, जहां से जनसंघ के उम्मीदवार अमीन चंद जीते थे और कांग्रेस के प्रत्याशी प्रफुल्ल रंजन भी विधानसभा पहुंचे थे। पहले चुनाव में 6 सीटों पर 12 विधायकों के जीतने की बात चौंकाती है, लेकिन पहले चुनाव में यह प्रयोग देखने को मिला था।
चौधरी ब्रह्म प्रकाश बने थे, दिल्ली के एक्सीडेंटल सीएम
पहले चुनाव में कांग्रेस को भारी भरकम जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मिली थी। बताया जाता है कि साधारण पृष्ठिभूमि के चौधरी ब्रह्म प्रकाश का आजादी की लड़ाई में योगदान था, पर मुख्यमंत्री की कुर्सी उनको एक्सीडेंटली मिली थी। कांग्रेस पहले देशबंधु गुप्ता को सीएम बनाना चाहती थी। एक हादसे में उनकी मौत के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने करीबी चौधरी ब्रह्म प्रकाश को सीएम बनाने का फैसला किया था।
सरकारी बस से सफर करते थे, पूर्व मुख्यमंत्री
ब्रह्म प्रकाश मूल रूप से हरियाणा में रेवाड़ी के रहने वाले थे और काफी सरल जीवन व्यतीत करते थे। दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कभी सीएम आवास में नहीं रहे। ज्यादातर जनता के बीच ही रहते थे। वह कहते थे कि जनता की समस्याएं सुनना और उन्हें सुलझाना ही उनका धर्म है। मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद वह सरकारी बस में सफर करते मिल जाते थे। इसी सादगी के कारण चौधरी ब्रह्म प्रकाश को शेर-ए-दिल्ली और मुगल-ए-आजम की उपाधि दी गई थी।
राजधानी दिल्ली में पहली बार साल- 1993 में बनी थी, भाजपा की सरकार
लंबे इंतजार के बाद साल- 1993 में चुनाव हुए तो दिल्ली में भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई थी। भाजपा ने मदनलाल खुराना को अपना सीएम बनाया। हालांकि कुछ ही दिनों में भाजपा ने अपना सीएम बदला और दूसरे सीएम साहिब सिंह वर्मा हुए। साहिब सिंह वर्मा भी अपना कार्यकाल पूरा न कर सके और भाजपा ने दिल्ली की कमान भाजपा के तेज तर्रार नेत्री व प्रवक्ता सुषमा स्वराज के हाथ में सौंप दी। उस समय दिल्ली में प्याज के दाम ढाई सौ रूपये पार हो गये तब भाजपा और दिल्ली सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी और प्याज के दम ने दिल्ली की सत्ता ही बदल डाली।
दिल्ली में हैट्रिक मारने वाली पहली महिला सीएम बनी थी, शीला दीक्षित
पूरे देश में कांग्रेस का जहाँ तेजी से ग्राफ गिर रहा था, वहीं देश की राजधानी दिल्ली में साल- 1998 के चुनाव में शीला दीक्षित की अगुवाई में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई। शीला दीक्षित सीएम बनी और वह लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी और एक इतिहास कायम किया। दिल्ली में शीला दीक्षित ने बहुत कुछ बदला। साल- 1998 से साल- 2013 तक दिल्ली की कुर्सी पर शीला दीक्षित काबिज रही।
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आदमी पार्टी की ओर से पहली बार 28 दिसंबर, 2013 को अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। तब उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल सकी और अरविंद केजरीवाल को AK-49 कहा जाने लगा। फ़िलहाल साल-2015 में फिर से चुनाव हुआ तो आम आदमी पार्टी ने सभी दलों को धूल चटाते हुए दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाई और स्वयं 14 फरवरी, 2015 को केजरीवाल दोबारा सीएम बने।
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए जे जाने वाले देश के पहले सीएम बने अरविंद केजरीवाल
साल- 2020 में एक बार फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी और अरविंद केजरीवाल पुनः दिल्ली के सीएम बने। हालांकि इस बार अरविंद केजरीवाल सहित उनके कई मंत्री जेल गए और सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमानत की वजह से अरविंद केजरीवाल को सीएम पद से त्यागपत्र देना पड़ा और अपने विश्वासपात्र विधायक अतिशी को दिल्ली का सीएम बनाया।
मुफ्त की रेवड़ी बाँटने और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के बीच हो रहा है, दिल्ली का चुनाव
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का मुद्दा अक्सर चुनावों में उठता रहा है। हालांकि, अब तक ऐसा नहीं हो पाया है और कई मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार दिल्ली विधानसभा के पास नहीं है। वैसे इस बार दिल्ली में चुनावी मुद्दे कुछ अलग ही हैं। अब एक बार फिर से दिल्ली में चुनावी दंगल शुरू हो चुका है। 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 फरवरी को मतगणना होगी।