पंचवटी का अर्थ है: पांच प्रकार के दिव्य वृक्षों का समूह, इसे कहां और कैसे लगाएं, जानें इसका धार्मिक महत्व और वास्तु नियम

पंचवटी का अर्थ है पांच प्रकार के दिव्य वृक्षों का समूह। आम तौर पर ऋषि और मुनुस इन देव वृक्षों को अपने आश्रमों और पर्णशालाओं के आसपास उगाते थे। रामायण की कथा से ज्ञात होता है कि भगवान राम अपने वनवास के दौरान भारद्वाज और अगस्त्य ऋषियों के जिन आश्रमों में गए थे, वे पंचवटी पर्णशालाएँ थीं। ये देव वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इसके अलावा आयुर्वेद और पुराण ग्रंथों में भी इन वृक्षों की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।

कई मनीषियों ने साबित किया है कि वट वृक्ष (बरगद का पेड़), अश्वत्थम (रवि का पेड़), निंबा (नीम का पेड़), अमलाका (अमलाका का पेड़) और बिल्व (मारेदु का पेड़) से युक्त पंचवटी पारलौकिक गतिविधियों के लिए बहुत खास है। गौतम बुद्ध, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामकृष्ण परमहंस, साईबाबा जैसे कई संतों ने इन पांच पेड़ों के नीचे अपनी तपस्या की…

रामकृष्ण परमहंस ने दक्षिणेश्वर कालीदेवी मंदिर के पास एक पंचवटी की स्थापना की जहां उन्होंने पुरोहिती संभाली। उन्होंने स्वयं बरगद, अश्वत्थ, निम्बा, आमलक और बिल्व के पौधे लगाये। इसके अलावा जब वे वृन्दावन गए तो वहां से लाई गई मिट्टी इस पंचवटी में छिड़क दी गई। वे यहां एक छोटी सी कुटिया बनाकर ध्यान करते थे। यह महीना उनकी आध्यात्मिक खोज का मंच है। उन्होंने सिद्ध किया कि ‘पंचवटी’ ध्यान, जप और तप के लिए एक आदर्श स्थान है। उन्होंने इसी पंचवटी में अपने गुरुओं तोतापुरी और भैरवी ब्राह्मणी की उपस्थिति में आध्यात्मिक और तांत्रिक साधनाएँ भी की। इन पाँच वृक्षों की विशेषताएँ।

सनातन परंपरा में जिस पंचवटी के पेड़ों को लगाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति की बात कही गई है, उसे अपने घर या किसी स्थान पर लगाने का क्या नियम है ?

पीपल, बेल, वट, (Banyan Tree) आंवला व अशोक ये पांचो वृक्ष पंचवटी (Panchvati) कहे गये हैं। इन पांच वृक्षों में अद्वितीय औषधीय गुण (Medicinal Properties) है। आंवला विटामिन सी का सबसे समृद्ध स्त्रोत है एवं शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने की महौषधि है। पीपल, बेल, वट, आंवला व अशोक ये पांचो वृक्ष पंचवटी (Panchvati) कहे गये हैं। इनकी स्थापना पांच दिशाओं (Five Directions) में करनी चाहिए।

पीपल पूर्व दिशा में, बेल उत्तर दिशा में, वट (Banyan Tree) पश्चिम दिशा में, आंवला दक्षिण दिशा और आग्नये कोण में अशोक की तपस्या के लिए स्थापना करनी चाहिए। पांच वर्षों के पश्चात चार हाथ की सुन्दर वेदी की स्थापना बीच में करनी चाहिए। यह अनन्त फलों को देने वाली व तपस्या का फल देने प्रदान करने वाली है।

पंचवटी का महत्व (Importance Of Panchavati)

1- पंचवटी (Panchvati) के औषधीय महत्व

इन पांच वृक्षों में अद्वितीय औषधीय गुण है । आंवला विटामिन सी का सबसे समृद्ध स्त्रोत है एवं शरीर को रोग प्रतिरोधी बनाने की महौषधि है। बरगद (Banyan Trees) का दूध बहुत बलदायी होता है। इसके प्रतिदिन प्रयोग से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। पीपल रक्त विकार दूर करने वाला वेदनाशामक एवं शोथहर होता है। बेल पेट सम्बन्धी बीमारियों का अचूक औषधि है तो अशोक स्त्री विकारों को दूर करने वाला औषधीय वृक्ष है।

बरगद के पेड़ का वैज्ञानिक नाम फिकस बेंगलेंसिस (Banyan Tree Scientific Name) है। इस वृक्ष समुह में फलों के पकने का समय इस प्रकार निर्धारित है कि किसी न किसी वृक्ष पर वर्ष भर फल विधमान रहता है। जो मौसमी रोगों के निदान हेतु सरलता से उपलब्ध होता है। गर्मी में जब पाचन सम्बन्धी विकारों की प्रबलता होती है तो बेल है। वर्षाकाल में चर्म रोगों की अधिकता एवं रक्त विकारों में अशोक परिपक्व होता है। शीत ऋतु में शरीर के ताप एवं उर्जा की आवश्यकता को आंवला पूरा करता है।

2- पंचवटी (Panchvati) का पर्यावरणीय महत्व

बरगद (Banyan Trees) शीतल छाया प्रदान करने वाला एक विशाल वृक्ष है। गर्मी के दिनों में अपरान्ह में जब सुर्य की प्रचन्ड किरणें असह्य गर्मी प्रदान करत हैं एवं तेज लू चलता है, तो पंचवटी (Panchvati) में पश्चिम के तरफ स्थित वट वृक्ष (Banyan Tree) सघन छाया उत्पन्न कर पंचवटी को ठंडा करता है। पछुआ एवं पुरुवा दोनों की तेज हवाओं से वातावरण में धूल की मात्रा बढ़ती है। जिसको पूरब व पश्चिम में स्थित पीपल व बरगद (Banyan Tree) के विशाल पेड़ अवशोषित कर वातावरण को शुद्ध रखते हैं।

  • पीपल प्रदूषण शोषण करने वाला एवं प्राण वायु उत्पन्न करन वाला सर्वोतम वृक्ष है।
  • अशोक सदाबहार वृक्ष है, यह कभी पर्ण रहित नहीं रहता एवं सदैव छाया प्रदान करत है।
  • बेल की पत्तियों, काष्ठ एवं फल में तेल ग्रन्थियां होती है जो वातावरण को सुगन्धित रखती हैं।

3- पंचवटी (Panchvati) का धार्मिक महत्व

बेल पर भगवान शंकर का निवास माना गया है तो पीपल पर विष्णु एवं वट वृक्ष पर ब्रह्मा का। इस प्रकार प्रमुख त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पंचवटी में निवास है एवं एक ही स्थल पर तीनों के पूजन का लाभ मिलता है।

4- जैव विविधता संरक्षण

पंचवटी (Panchvati) में निरन्तर फल उपलब्ध होने से पक्षियों एवं अन्य जीव जन्तुओं के लिए सदैव भोजन उपलब्ध रहता है एवं वे इस पर स्थाई निवास करते हैं। पीपल व बरगद कोमल काष्टीय वृक्ष है जो पक्षियों के घोसला बनाने के उपयुक्त है।

हमें संकल्प लेना चाहिये कि अपने जीवनकाल में एक पंचवटी (Panchvati) स्थापित जरूर करें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रेरित करें। इस वर्ष राजस्थान में गर्मी ने 125 वर्षों का रिकोर्ड तोड़ दिया, तापमान 52 डिग्री हो चुका है। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में अभी तक तापमान 49 डिग्री तक पहुंच चुका है। अभी भी नहीं संभले तो फिर बहुत देर हो जायेगी और पृथ्वी को आग का गोला बनते देर नहीं लगेगी तो आपसे अपील है कि आज से, अभी से शुभ कार्य की शुरूवात करें।

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