संघ परिवार और भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने राजा अनिल प्रताप सिंह को फिर एक बार मनाने में कामयाब रहा, परन्तु इस बार कौन सा लालीपॉप दिया यह जनता जान न सकी
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के आदेश पर प्रतापगढ़ सदर सीट से राजा अनिल प्रताप सिंह का नामांकन वापस कराने पहुंचे काशी प्रांत के अध्यक्ष महेश चन्द्र श्रीवास्तव और प्रदेश सह प्रभारी सुनील भाई ओझा, आश्वाशन के साथ वापस कराया राजा अनिल प्रताप सिंह का नामंकन…
प्रतापगढ़। बेल्हा रियासत के राजा अनिल प्रताप सिंह सहज, सरल और विराट व्यक्तित्व के धनी हैं। भारतीय जनसंघ की प्रतापगढ़ में इसी रियासत से अलख जगी। कभी राजनीति के उच्च शिखर पर राजा अनिल का राजघरना रहा। राजा अनिल प्रताप सिंह के बाबा स्व. राजा अजीत प्रताप सिंह, जिन्होंने हिंदुत्व और भारतीयता को आत्मसात करते हुए सन 1962 में जनसंघ के चुनाव चिन्ह से प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और यहां की जनता के भरपूर आशीर्वाद से देश की सबसे बड़ी महापंचायत लोकसभा के सदन में पहुंचकर जनपद का गौरव बढ़ाया। राजा अनिल प्रताप सिंह के पूर्वज राजा प्रताप बहादुर सिंह, जिनके नाम से जनपद प्रतापगढ़ जाना जाता है। राजा अजीत प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश की सियासत में भी एक बड़े कद के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। राजा अजीत प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में खेल कूद मंत्री रहे, लखनऊ का केडी सिंह बाबू स्टेडियम और प्रतापगढ़ जनपद का एक मात्र स्टेडियम आज जहाँ जनपद के बच्चे खेलकूद के क्षेत्र में प्रतिभाग करने के लिए रात दिन कड़ी मेहनत कर जनपद का नाम रोशन कर रहे हैं, जो राजा अजीत प्रताप सिंह की देन है।
राजा अजीत प्रताप सिंह प्रदेश के वन मंत्री रहे। प्रदेश में लगातार पेड़ों की कड़ाई से आहत वन मंत्री रहते हुए सामाजिक वानिकी का कांसेप्ट तैयार कर बृक्षरोपण करने पर जोर दिया। राजा अजीत प्रताप सिंह प्रदेश सरकार में आबकारी मंत्री भी रहे और मद्य निषेद पर भी बड़ा काम किया। राजा अजीत प्रताप सिंह के पुत्र यानि उनकी विरासत को संभालने वाले राजा अभय प्रताप सिंह रहे। राजा अनिल प्रताप सिंह के पिताजी भी जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर रहे। स्व. राजा अभय प्रताप सिंह जनता दल से प्रतापगढ़ की सीट पर लोकसभा के सांसद चुने गए। राजा अजीत प्रताप सिंह ने जनपद के युवाओं की शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए जनपद में राजकीय इंटर कालेज की स्थापना के लिए अपनी नगर स्थित 14 बीघे से अधिक जमीन दान कर दिया। जनपद के लोगो को डिग्री और इंटर तक की शिक्षा के लिए बाहर न जाना पड़े, इसके लिए अपने पूर्वज राजा प्रताप बहादुर जी के नाम से सिटी में कालेज खोलकर उत्तम और गुणवत्ता परक शिक्षा पर बड़ा काम किया। राजा अनिल प्रताप सिंह ने पीबी कालेज में सभी संकाय की शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा की पढ़ाई को अपने इस विद्यालय में सुलभ कराया है। संस्कृत की शिक्षा के लिए संस्कृत का भी विद्यालय खोला, जिसमे संस्कार और संस्कृत की पढ़ाई बदस्तूर जारी है।
जनपद में बेहतर स्वास्थ्य के लिए जिला अस्पताल पुरुष और महिला की स्थापना के लिए अपनी बेशकीमती जमीन और महल इनके पूर्वजों ने चिकित्सा विभाग को दान कर दी। जिस पर आज मेडिकल कालेज निर्माणाधीन है। जिसका नाम अब मेडिकल कालेज के अधीनस्थ प्रताप बहादुर चिकित्सालय किया गया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए अपनी अमूल धरोहर गोपाल मंदिर की बेशकीमती जमीन संघ को दान कर दिया। यही नहीं संघ कार्यालय के भवन निर्माण में भी बड़ा सहयोग किया। जनपद और समाज के प्रति संपूर्ण सेवा समर्पण भाव से जुटा प्रतापगढ़ रियासत के राजा अनिल प्रताप सिंह के व्यतित्व के आसपास भी आज के राजनेता नहीं ठहरते। लेकिन जिस संघ की अलख जगाने वाले राजा अनिल प्रताप सिंह के राजघराने को जनपद में बड़ी-बड़ी रैलियों, संगोष्ठियों और अन्य बड़े आयोजनों को करने में बड़ी आर्थिक जिम्मेदारी देने में भाजपा और उसके अनुसंगिक संगठन बिल्कुल संकोच नहीं करते। भाजपा और संघ दोनों धन प्राप्त करने के लिए कटोरा लेकर प्रतापगढ़ की रियासत के राजा अनिल प्रताप सिंह खड़े हो जाते हैं। तन, मन और धन से राजा अनिल प्रताप सिंह भी भाजपा और संघ के सहयोग में कोई कसर नहीं छोड़ते। जब टिकट देने की बात आती है तो राजा अनिल का नाम टिकट की दौड़ में नहीं आता।
भाजपा में टिकट देते समय जिसका कोई योगदान नहीं रहता, भाजपा उस पर बाजी लगाती है। राजा अनिल प्रताप सिंह का टिकट यह कह कर काट दिया जाता है कि पार्टी यहां से बैकवर्ड लड़ाना चाहती है। राजा अनिल प्रताप सिंह तो सामान्य वर्ग में आते हैं और ऊपर से वह क्षत्रिय हैं, ऐसे में इनका टिकट संभव नहीं। भैया जब इनका टिकट नहीं हो सकता तो टिकट का सब्जबाग दिखाकर सीधे साधे राजा अनिल प्रताप सिंह का भाजपा से संघ परिवार तक शोषण क्यों किया जाता है ? राजा अनिल प्रताप सिंह नामांकन के अंतिम दिन के अंतिम क्षण में सदर सीट से निर्दलीय नामांकन किया। राजा अनिल प्रताप सिंह नामांकन नहीं करना चाहते थे। लेकिन हजारों की संख्या में अपने राजा अनिल प्रताप सिंह के टिकट न मिलने से नाराज क्षत्रियों ने नामांकन के अंतिम दिन सुबह से ही राजा अनिल प्रताप सिंह के किले पर जमघट लगा दी। सभी ने एक स्वर में कहा राजा साहब आप नामांकन दाखिल करिए, हम सब आपको चुनाव लड़ाएंगे। आपके साथ हो रहे अन्याय पर हम सब अभी तक खामोश थे, लेकिन अब अपनी लड़ाई हम सबको लड़नी पड़ेगी। अपने समर्थकों के दबाव में पार्टी और अपने आचरण के विपरीत राजा अनिल प्रताप सिंह नामांकन के अंतिम दिन और अंतिम क्षण में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। राजा अनिल प्रताप सिंह के समर्थको की आवाज सुनकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी राजा अनिल प्रताप सिंह के नामांकन की मौन स्वीकृत दी थी। तभी एक सेट निर्दलीय तो दूसरा सेट भाजपा से राजा अनिल प्रताप सिंह नामांकन दाखिल किये थे।