क्या मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने का आदेश नहीं दे सकते राज्यपाल, MUDA स्कैम पर कर्नाटक में बवाल

बेंगलुरु। देश की राजनीति में राज्यपाल और प्रदेश के सीएम के बीच खींचतान की कहानियां अब नई नहीं रह गई हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली के सीएम और एलजी, तमिलनाडु के राज्यपाल और स्टालिन सरकार, केरल सरकार और राज्यपाल के बीच तकरार। अब ताजा मामला कर्नाटक से आया है। मैसूरु अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (मुदा) द्वारा साइट आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले में सीएम सिद्धारमैया फंसते दिख रहे हैं। उनपर इस केस को लेकर मुकदमा चलाया जाएगा। कर्नाटक के मौजूदा राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने MUDA भूमि घोटाले के मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। अब इन सब के बीच सवाल यह उठता है कि क्या किसी प्रदेश का राज्यपाल मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने का आदेश दे सकता है? सवाल इसलिए भी लाजिमी हो गया है क्योंकि राज्यपाल के निर्देशानुसार, कर्नाटक के सीएम पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत मुकदमा चलाने की तैयारी है। आइए पूरी बात समझते हैं।

क्या है मुडा जमीन घोटाला…

पहले समझते हैं कि आखिर कर्नाटक में सीएम सिद्धारमैया जिस मामले में फंसते दिख रहे हैं, वह असल में है क्या? यह मामला MUDA(Mysore Urban Development Authority) की ओर से उस समय मुआवजे के तौर पर जमीन के पार्सल के आवंटन से जुड़ा है जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के इस मामले में लाभार्थी होने के कारण मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों के केंद्र में आ गए हैं। विपक्षी दल आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री ने दलित समुदाय की जमीन पर कब्जा किया और आरोप है कि यह घोटाला 3000 करोड़ रुपये का है। मुडा पर जाली दस्तावेज बनाने और करोड़ों रुपये की जमीन हासिल करने का आरोप लगाते हुए शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्ण ने सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ कई आरोप लगाए हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी पार्वती के अलावा शिकायतकर्ता ने सिद्धारमैया के बहनोई मल्लिकार्जुन स्वामी देवरज पर भी गलत काम करने का आरोप लगाया है। मुख्यमंत्री ने सभी आरोपों का खंडन किया और कहा कि सब कुछ कानून के अनुसार किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि विकास प्राधिकरण ने उनकी पत्नी की मैसूर के केसरुर में चार एकड़ जमीन पर बिना उचित अधिग्रहण के अवैध रूप से लेआउट विकसित किया।

पिछले महीने राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को एक ‘नोटिस’ जारी किया था जिसमें उन्हें अपने खिलाफ लगे आरोपों का जवाब सात दिनों के भीतर देने और बताया गया था कि उनके खिलाफ मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए। इसके बाद राज्य मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें राज्यपाल से मुकदमा चलाने की मंजूरी न देने की अपील की गई। सिद्धारमैया की अगुवाई वाली सरकार ने उनसे नोटिस वापस लेने की भी सलाह दी और राज्यपाल के ‘संवैधानिक पद का घोर दुरुपयोग’ करने का आरोप लगाया।

राज्यपाल का नोटिस भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता टीजे अब्राहम की एक याचिका के बाद आया था जिसमें मुडा में कथित अनियमितताओं को लेकर सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई थी। अपनी याचिका में उन्होंने आरोप लगाया था कि कई करोड़ रुपये के इस घोटाले से राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ है। जुलाई में लोकायुक्त पुलिस में दर्ज कराई गई एक शिकायत में श्री अब्राहम ने आरोप लगाया था कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को एक उच्च श्रेणी के मैसूरु पड़ोस में 14 वैकल्पिक साइटों का आवंटन अवैध था, जिससे खजाने को 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

किन धाराओं के तहत चलेगा मुकदमा पहले वो समझिए…

अब कानूनी दांवपेच समझते हैं। कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया पर राज्यपाल ने पहले जिस अधिनियम के तहत केस चलाने की मंजूरी दी है, वह क्या कहती है। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 की धारा 17 की बात करते हैं। इस धारा के अनुसार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17-ए जोड़े जाने के फलस्वरूप पुलिस अधिकारी द्वारा लोक सेवकों (शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारी) के विरूद्ध जांच या पूछताछ करने हेतु पूर्वानुमति जारी करने की प्रक्रिया के संबंध में राज्य शासन द्वार निर्देश जारी किए गए हैं। पुलिस अधिकारी, अन्वेषण एजेंसी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17-ए के अंतर्गत जांच करने के लिये राज्य शासन से पूर्वानुमति प्राप्त करना अनिवार्य हो गया है। सामान्य प्रशासन विभाग के संख्यक पत्र के अवलोकन से यह स्वत: स्पष्ट है कि राज्य शासन ने पुलिस अधिकारी, जांच एजेंसी को अधिनियम की धारा 17- ए के अंतर्गत जांच के लिये अनिवार्यत: पूर्वानुमति प्राप्त करने के कोई निर्देश नहीं दिये हैं। वस्तुत: ऐसे प्रकरणों, जिनमें कि संबंधित पुलिस अधिकारी, अन्वेषण एजेंसी जांच करने की पूर्वानुमति प्राप्त करना वांछित समझता हो, ऐसी पूर्वानुमति दिये जाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 218 कहती है कि अगर किसी जज, मजिस्ट्रेट या ऐसे सरकारी अधिकारी के खिलाफ, जिसे सरकार की मंजूरी के बिना हटाया नहीं जा सकता, यह आरोप लगता है कि उसने अपने सरकारी काम करते हुए कोई अपराध किया है, तो कोई भी कोर्ट उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता, जब तक कि सरकार की पहले से मंजूरी न हो। (लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में अलग प्रावधान हैं)
➤अगर वह व्यक्ति केंद्र सरकार के लिए काम करता था या करता है, तो केंद्र सरकार की मंजूरी चाहिए।
➤अगर वह व्यक्ति राज्य सरकार के लिए काम करता था या करता है, तो राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए।
➤अगर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा है और उस दौरान किसी राज्य सरकार के अधिकारी ने अपराध किया है, तो भी केंद्र सरकार की ही मंजूरी चाहिए। ➤सरकार को इस मंजूरी के फैसले के लिए 120 दिन का समय है। अगर 120 दिन में फैसला नहीं हुआ तो समझा जाएगा कि मंजूरी मिल गई है।

राज्यपाल के पास कौन-कौन से हैं अधिकार…

भारतीय संविधान में राज्यपाल को राज्य का प्रमुख बनाया गया है। हालांकि, प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ही राज्य की वास्तविक शासक होती है। राज्यपाल के अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेखित हैं, लेकिन ये अधिकार आमतौर पर नाममात्र के होते हैं और उन्हें केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करना होता है।

मुख्य अधिकारों में है शामिल…

➤राज्यपाल विधानमंडल के प्रत्येक सत्र की शुरुआत में भाषण देते हैं।
➤राज्यपाल विधानमंडल द्वारा पारित किए गए विधेयकों पर हस्ताक्षर करके उन्हें कानून का रूप दे सकते हैं या उन्हें रोक भी सकते हैं।
➤जब राज्य सरकार का संचालन संविधान के अनुसार नहीं हो पा रहा हो, तो राज्यपाल राष्ट्रपति के अनुमोदन से राज्य में शासन लागू कर सकते हैं।
➤राज्यपाल अपराधियों को क्षमादान या दंड कम कर सकते हैं।
➤राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं।
➤राज्यपाल राष्ट्रपति के अनुमोदन से विधानसभा को भंग कर सकते हैं।
हालांकि, इन अधिकारों के साथ कुछ सीमाएं भी जुड़ी हुई हैं…

➤राज्यपाल को केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करना होता है।
➤राज्यपाल के निर्णयों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
➤राज्यपाल के अधिकार संविधान द्वारा परिभाषित हैं और वे संविधान के दायरे से बाहर नहीं जा सकते।

भाजपा-कांग्रेस में वार पलटवार…

मुख्यमंत्री कार्यालय ने पुष्टि की है कि उन्हें यह सूचना मिल गई है। भाजपा ने राज्यपाल द्वारा सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने का स्वागत किया है। राज्य भाजपा प्रमुख बीवाई विजयेंद्र ने एक ऑनलाइन पोस्ट में कहा कि कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार घोटालों और मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों की पक्षपात और भ्रष्टाचार के खिलाफ पर्याप्त रिकॉर्ड और सबूत रखकर सिद्धारमैया ने दिखा दिया है कि उन्हें हिलाने वाला कोई नहीं है।

सिद्धारमैया का बचाव करते हुए कर्नाटक कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राज्यपाल पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और पूर्व कर्नाटक मंत्रियों शशिकला जोल्ले और मुरुगेश निरानी के खिलाफ जांच में कार्रवाई में देरी कर रहे हैं। पार्टी ने कहा कि यह तथ्य कि राज्यपाल ने केवल मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एक निराधार निजी शिकायत पर ही चौंकाने वाली तेजी के साथ कार्रवाई की, यह एक राजनीतिक रूप से प्रेरित साजिश लगती है।

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