‘यूपी में का बा….’ पर मचा हंगामा तो बिहार की लोक गायिका नेहा सिंह राठौर ने दिया स्पष्टीकरण
अखिलेश यादव को भाया बिहार की लोक गायिका नेहा सिंह राठौर का गाना, यूपी में का बा… गाने पर उत्तर प्रदेश में मचा सियासी घमासान…
वाराणसी। बिहार की लोक गायिका नेहा सिंह राठौर अपने चुनावी लोकगीत ‘यूपी में का बा…’ को लेकर आजकल इंटरनेट मीडिया पर सुर्खियों में हैं। मंगलवार को बनारस आई नेहा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मैं पार्टी बनाने या गिराने के लिए नहीं गाती हूं। लोग कहते हैं कि आप जो भी गाती हैं, उससे विपक्ष को सीधा फायदा होता है। जाहिर सी बात है कि जनता विपक्ष की भूमिका में ही होती है। हर विपक्षी पार्टी भी जनता के ही मुद्दों को लेकर सामने आती है। मैं खुद को लोक कवि और लोक गायिका कहती हूं। मेरा यह फर्ज है कि मैं, जनता की आवाज बुलंद करूं। किसी पक्ष या विपक्ष की बात न करूं। कोई जीते या हारे उससे मुझे क्या मतलब है ? सत्ता में जो है सवाल उससे ही होगा। मेरा काम है, जनता की आवाज बुलंद करना।
लोक कवि और लोक गायिका नेहा का आएगा अब दूसरा गाना : यूपी के लिए मेरा दूसरा गाना ‘का बा…’ का पार्ट-2 जल्द ही आएगा। ‘राम राज का झांकी बा, काशी-मथुरा बाकी बा’ पर उन्होंने कहा कि- कोई कहता है कि मैं राम को ला दूंगा। कोई कहता है कि मैं कृष्ण को ला दूंगा। ऐसा कहने वाले राम और कृष्ण को लेकर क्या आएंगे ? राम-कृष्ण तो उनको लेकर आए हैं। धर्म की राजनीति छोड़कर इन लोगों को इंसानियत के लिए जीना चाहिए। इनकी राजनीति इतनी गंदी हो चुकी है कि यह राम और कृष्ण को भी लड़वा देंगे।
सांसद रवि किशन ने कहा मैं पेड कलाकार हूं। उनका काम कहना है और वह कहते रहें। यूपी में फिल्म सिटी बनने की बात पर उन्होंने कहा कि इससे उन कलाकारों को फायदा होगा जो अपना घर और प्रदेश छोड़कर मुंबई जाते हैं। उनके जीवन में कैरियर बनाने के नाम पर संघर्ष चलता रहता है। मनोज वाजपेयी ने ‘बंबई में का बा…’ गाया था, वह बस एक गाना नहीं है। बल्कि वह संघर्ष बयान करता है, कलाकारों का…।
वाराणसी में विकास के सवाल पर नेहा ने कहा कि यहां बदलाव हुआ है। मैं हमेशा यह बात कहती हूं कि कोई भी सरकार न पूरी तरह से फेल होती है और न पूरी तरह से पास। उन्होंने कहा कि आज गंगा में क्रूज चल रहा है। कोरोना काल में इसी गंगा में लाशें भी बहती थीं। उन्हें पक्षी और जानवर नोचते रहते थे। हाथरस में दरिंदगी और हमीरपुर में हैवानियत की बात झूठी तो नहीं है। जिसे पूरी दुनियां ने देखा है, आखिर उस सच को स्वीकारने में क्या हर्ज है ? जनता की प्रतिक्रिया पर राजनीतिक दलों को चिढ़ना नहीं चाहिए। उसे स्वीकार कर कमियों को दूर करने के लिए काम करना चाहिए।