कांग्रेस के बाद सपा से भी टिकट न मिलने पर इमरान मसूद का फूटा गुस्सा, कहा- मुसलमानों एक हो जाओ, तुम्हारी वजह से मुझे पैर पकड़ने पड़े, धोबी का कुत्ता बन गया
अति महत्वाकांक्षी नेताओं ने राजनीति में लाई नैतिकता की गिरावट, पद पाने के लिए राजेताओं के शुर बदल जाते हैं और राजनीतिक पार्टी, जिसे कल तक अपनी माँ कहते थे, उसी को देने लगते हैं, गाली
सहारनपुर: यूपी चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही तमाम नेताओं ने पाले बदले, जिनमें से कई नेता दल बदलने के बाद सियासी तौर पर एक कदम आगे बढ़े, लेकिन कई नेता ऐसे भी हैं, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर पानी फिर गया। इसी कड़ी में पहला नाम आता है, कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल होने वाले इमरान मसूद का। इस घटनाक्रम से इमरान मसूद बेहद असहज महसूस कर रहे हैं। जिसका जीता जागता सबूत उनका एक वायरल वीडियो है, जिसमें वह अपना गुस्सा जाहिर करते हुए नजर आ रहे हैं। वायरल वीडियो में इमरान कहते नजर आ रहे हैं कि ‘मुसलमानों एक हो जाओ, तुम्हारी वजह से मुझे पैर पकड़ने पड़े, मुझे कुत्ता बना दिया, तुम एक हो जाओ तो वह मेरे पैर पकड़कर खुद टिकट देंगे।’ यह वीडियो अंबाला रोड के मेघ छप्पर स्थित इमरान मसूद के निवास के बाहर का है। यदि किसी नेता को टिकट नहीं मिलता तो क्या वह उसके बिना जी नहीं सकता ? तब तो प्रतियोगी छात्र और छात्राओं जिन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता नहीं मिलती वह भी सरकार से बगावत करके अपने लिए उस पद को सुरक्षित करने का दबाव बनाना चाहिए। जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा किया जा रहा है।
बता दें कि 11 जनवरी को इमरान मसूद कांग्रेस छोड़ सपा में गए, लेकिन सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के इस रवैये से नाराज इमरान मसूद से जब इस वीडियो के बारे में पूछा गया तो उन्होंने वीडियो बनाने वाले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था, हालांकि हमने कुछ गलत नहीं कहा है। मैं अपने समर्थकों से तमाम बातें करता हूं, यह भी वैसी ही एक बात है, इसमें हमने जो कहा है, सही कहा है। क्या सत्ता पाने के लिए देश और समाज के खिलाफ कुछ भी बोलकर अपने मन की भड़ास को निकाला जा सकता है ? सत्ता का मतलब कुर्सी से है। वह कुर्सी जिससे मान-सम्मान, इज्जत, मर्यादा और रसूख सबकुछ एकसाथ मिल जाता है और सबकुछ पाते ही ब्यक्ति अपना वजूद भूल जाता है और वह अनाप सनाप बोलकर अपना सम्मान खत्म कर लेता है। पहले राजनीति नैतिकता की होती थी। राजनेताओं में नैतिकता कूट-कूट कर भरी होती थी। जरा सा दामन पर दाग आने लगता था तो पद को लात मारकर अपने नैतिकता की रक्षा राजनेताओं द्वारा की जाती थी, परन्तु अब ऐसा नहीं है। आज के नेताओं की दशा ऐसी हो चुकी है कि पद बना रहे, उसके लिए नैतिकता की बलि भी चढ़ाने को आधुनिक नेता तैयार रहते हैं।