आईये जाने उत्तर प्रदेश में भाजपा की सियासी हार की मुख्य वजह

पीएम मोदी ने माना कि सरकार के प्रति नहीं बल्कि उम्मीदवारों के प्रति मतदाताओं में पैदा हुई थी, नाराजगी

उत्तर प्रदेश का बदलता सियासी नक्शा… 

मां-बाप सरीखे आरआरएस को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मध्य चुनाव के बीच किया अपमानित 

लोकसभा चुनाव के मध्य में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मीडिया में बयान दिया कि भाजपा को अब आरएसएस की जरूरत नहीं, भाजपा अब स्वयं में सक्षम है। इस बयान के आते ही तूफ़ान खड़ा हो गया और आरएसएस से भाजपा की दूरी बढ़ती गई और लोकसभा चुनाव में आरएसएस ने अपने हाथ खींच लिए। नतीजा सामने है। भाजपा की दशा जो आज हुई है, उसकी जिम्मेदार भाजपा ही है।

आरएसएस की भाजपा से दूरी ने लोकसभा चुनाव में उसे इस दशा में पहुँचाने का कार्य किया है। दोनों के बीच नाराजगी इतनी अधिक थी कि जब प्रचार चरम पर था, तब आरएसएस ने द्वितीय वर्ष का अभ्यास वर्ग नागपुर में रख दिया। जो 27 दिन का होता, दो दिन समारोह यानी 29 दिन। लाखों पूर्ण कालिक स्वयंसेवक नागपुर चले गये। प्रचार कौन करता ? भाजपा के पास इस बार समर्पित कार्यकर्त्ता नहीं रहे।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ऐसे लोगों को मंत्रियों के साथ जनसंपर्क अधिकारी लगाया गया जो एबीवीपी सदस्यों की मदद के स्थान सत्ता सुख में लिप्त हो गये। बड़े दायित्वाधिकारी कुलपतियों, रजिस्ट्रार, विभागाध्यक्षों के साथ नये समीकरणों में संलिप्त। युवा सदस्यों के हितों की अनदेखी हुई। अपवाद हर स्थान पर हैं। विवि की धूप, पेड़ की छांव, जमीन, छात्रावास में मीटिंगें नहीं हुईं। संवाद हीनता से दूरियां बढ़ती गई।

वैचारिक बेहतर के स्थान पर नेतृत्व क्षमता से विरत छात्रों को दायित्व बाटना और महंगे फोन, बड़ी गाड़ियां, बड़े होटल और मॉल का नया कल्चर अडाप्ट होना भारी पड़ा। अपवाद भी हैं। भाजपा के ओहदेदारों का अहंकार चरम पर था। हर कोई खुद को मोदी, योगी और शाह समझने लगा था, नेता पिक एन्ड चूज के आधार पर लोगों से मिल रहे थे। स्वयं को ऐसा पेश करते थे मानों वह वोट मांगने नहीं, बल्कि उनसे मिलकर एहसान कर रहे हैं।

वैचारिक बेहतर के स्थान पर नेतृत्व क्षमता से विरत छात्रों को दायित्व बाटना और महंगे फोन, बड़ी गाड़ियां, बड़े होटल और मॉल का नया कल्चर अडाप्ट होना भारी पड़ा। अपवाद भी हैं। भाजपा के ओहदेदारों का अहंकार चरम पर था। हर कोई खुद को मोदी, योगी और शाह समझने लगा था, नेता पिक एन्ड चूज के आधार पर लोगों से मिल रहे थे। स्वयं को ऐसा पेश करते थे मानों वह वोट मांगने नहीं, बल्कि उनसे मिलकर एहसान कर रहे हैं।

अधीनस्थ चयन सेवा आयोग की कमान एक ऐसे अधिकारी को सौंपी गई, जो आईएएस रहते हुए ढीली ढाली कार्यप्रणाली के लिये जाने जाते हैं और उनका परिवार कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष के कैम्प में काम करता है। विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार और भ्रष्ट कुलपतियों को सत्ता के शीर्ष से समर्थन छात्र-छात्राओं के आक्रोश का कारण बन रहा था। इन दिनों छात्र संघ है नहीं, इसलिए उनका आक्रोश सीधे ईवीएम मशीन में दिखा।

उत्तर प्रदेश की गैर भाजपा सरकार ने यूपीपीएससी, सिपाही, दारोगा भर्ती की सीबीआई से लेकर एसआईटी जांच अधिकारियों की अभ्यारण बन गई। कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जब विपक्ष ने पेपर लीक का सवाल उठाया तब ऐसा माहौल बना कि भाजपा में ही यह हो रहा। गैर भाजपा सरकर के भर्ती घोटालों को उठाने का भाजपा के पास आधार ही नहीं बचा।

खनन घोटाले में गैरभाजपा के एक शीर्ष नेता को सीबीआई ने नोटिस दिया और चुप्पी साध गयी। इससे मुस्लिम मतदाताओं में संदेश गया कि उनके सियासी रहनुमा को परेशान किया जा रहा। शिक्षित, तर्कशील हिन्दू मतदाताओं ने निष्कर्ष निकाला की सब एक हैं। यह भाव बनते ही सांप्रयादिक सौहार्द को जरूरी मानते हुए इस वर्ग ने भाजपा के खिलाफ वोट कर दिया।

भाजपा ने ऐसे-ऐसे प्रत्याशी उतारे जिनके खिलाफ जनाक्रोश नेत्रहीन को दिखाई दे रहा था, फिर भी टिकट दिया गया। मंत्रियों, विधायकों और खुद सांसद ने जिलों के कार्यकर्तोंओं की भीषण उपेक्षा की। कुलाधिपति कार्यालय जिसकी जिम्मेदारी सबसे अधिक युवाओं को नियंत्रित करने और उनके हितों की नीति बनानी होती है, उसकी ओर से एकदम नई धारा बनाई गई, जिससे युवा भड़क गया। साल- 2014 के पहले के वास्तविक कार्यकर्तोओं की उपेक्षा हो रही थी।

प्रतियोगी परीक्षा में पेपर लीक मामले में सरकार लापरवाही बनी रही और कड़े कदम नहीं उठाये गए। पेपर लीक मामले को युवाओं ने अपने जीवन से जोड़ कर देखा और सरकार से सवाल किये कि जिस तरह प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक हुए और परीक्षाएं रद्द कर दी गई, ठीक वैसे ही चुनाव के पूरा होने पर यह कहा जाए कि चुनाव परिणाम 4 महीने के लिए के लिए रोक दिया जाए।

फिर जब परिणाम आए तब नॉर्मलाइजेशन किया जाए और मेरिट दोबारा बने और मामला हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में जाए। सारे उम्मीदवार और उनके समर्थक परिणाम के लिए धरना दें और पुलिस उन पर लाठीचार्ज करे। फिर एक साल बाद फैसला आए कि चुनाव एक साल बाद दोबारा कराया जायेगा। उस समय इन उम्मीदवारों को कैसा लगेगा ? जाहिर सी बात है कि उन्हें बहुत बुरा लगेगा और वह मर मिटने के लिए तैयार हो जायेंगे।

सच बात यही है। तभी जाकर इनको इस बात का एहसास होगा कि रोजगार के लिए परीक्षा देने वाले एक अभ्यार्थी का दर्द क्या होता है ? क्योंकि जाके पांव न फटी बेवाई, सो का जाने पीर पराई। ऐसी ही स्थिति प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक होने के बाद परीक्षा रद्द होने से युवाओं को हुई और वह अपनी सारी नाराजगी ईवीएम की बटन पर जाकर उतार आये। राष्ट्रवादी विचार के छात्र और छात्राएं को इस बात का गम नहीं कि उन्हें लोग क्या कहेंगे ?

बेलगाम नौकरशाही और ब्लाक, थाना, तहसील और जिला मुख्यालय स्तर पर भ्रष्टाचार भी एक बड़ा कारण हैं। सरकार-संगठन-प्रत्याशी- क्षेत्रीय विधायक, MLC आदि में कोई तालमेल चुनाव को लेकर नहीं दिखा। साल- 2014 के पहले वाले वास्तविक कार्यकर्ताओ की उपेक्षा। बूथ-पन्नाप्रमुख की रचना जमीन पर नहीं दिखा। वोटर और लाभार्थी से कार्यकर्ताओ का सम्पर्क नहीं करना। दलाल, चोर, उचक्का, माफिया टाइप के नेताओ को पार्टी में शामिल करना।

पिछड़ी जाति में मतों का ध्रुवीकरण हुआ और दलित वोट इंडिया गठबंधन में शिफ्ट हो गए। दल-बदलू नेता को अधिक तरजीह देना और पुराने कार्यकर्ताओं को नजरंदाज, अपमानित और तिरस्कृत करना। कोर BJP वोटर ब्राह्मण, बनिया और क्षत्रियों वोटर ने बांदा, बलिया, अमेठी और सोनभद्र हराया तथा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बदायूं, चंदौली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, आंवला, खीरी, धौरहरा और भुमिहारों ने इलाहाबाद और घोसी हराया।

अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और डॉ संजय निषाद जैसे स्थनीय दलों को सहयोगी बनाये रखना और भाजपा का कोर वोटबैंक से स्थानीय राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को आसानी से ट्रांसफर हुआ, परन्तु जिस जाति की राजनीति करने के उदेश्य से ये जातिवादी नेता स्थानीय दल बनाये और अपनी जाति के नेता बने, उस जाति का वोट भाजपा के उम्मीदवारों को ट्रांसफर नहीं हुए।

साल-2022 के विधानसभा चुनाव में ये बातें दिखी, परन्तु बहुमत मिला गया तो विधानसभा में जिन सीटों पर हार मिली थी, उसकी समीक्षा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नहीं किया, जिसका दुष्परिणाम लोकसभा चुनाव- 2024 में भाजपा के सामने मुंह फाड़कर खड़ा है और जवाब नहीं सूझ रहा है। लोकसभा चुनाव-2024 में मुस्लिम मतदाता एक साथ झूमकर इंडिया गठबंधन को वोट दिया। मुस्लिम मतदाता इस बार बंटे नहीं।

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