सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता, परन्तु यहां तो सत्य का ही गला घोंटकर होटल संचालक पुनः उसी बिल्डिंग में होटल का नाम बदलकर संचालन करने लगा

हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका भी हो गई डिस्पोजल, सिर्फ शासन व प्रशासन की रिपोर्ट को देखकर माननीय द्वय न्यायधीश महोदय ने दिशा निर्देश जारी कर अपने दायित्वों से कर लिया इतिश्री…

प्रतापगढ़ जनपद में 19 जून, 2015 के बाद प्रशासनिक अमले के दिन बहुर गए। हाईकोर्ट में जनहित याचिका के जवाबी कार्यवाही के नाम पर सुबह से शाम तक शहरी क्षेत्र ही नहीं तहसील मुख्यालयों पर बनी बिल्डिंगों पर छापेमारी शुरू की गई। विनियमित क्षेत्र से मानचित्र पास कराने वाले भवन स्वामियों को नियत प्राधिकारी के कार्यालय में नोटिस देकर बुलाने का कार्य शुरू हुआ। 500 से अधिक भवन स्वामियों को बुलाया गया। प्रशासनिक अमला मालामाल हो गया। फिर प्रकरण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

होटल गोयल रेसीडेंसी में 18जून की रात यानि 19 जून, 2015 की सुबह आग लगने की सूचना से शहर प्रतापगढ़ जल उठा था। प्रयागराज अयोध्या राष्ट्रीय राजमार्ग 330 घण्टों जाम रहा। सड़क से लेकर पोस्टमार्टम और जिला अस्पताल तक सिर्फ चीख पुकार के मंजर से रोंगटे खड़े हो जा रहे थे। परिजनों के विलाप के सामने सांत्वना देने के लिए दो शब्द जुबान से निकल नहीं पा रहे थे। बस लोग इतना ही कह पा रहे थे कि ईश्वर ने अनर्थ कर दिया। कुछ हाजिर जवाब देने वाले ही आपस में कानाफूंसी करते रहे कि मृतकों में ऐसे लोग भी रहे जिनके आवास होटल से चंद कदम दूर था तो होटल में वह क्यों रुका था ? फिहलाल होटल में जो होता था, वह लोगों ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था।

भगवान की कृपा थी कि आग की ज्वाला किचन में रखे एलपीजी सिलेंडरों तक नहीं पहुँची, नहीं तो प्रतापगढ़ बाबागंज का नक्शा ही बदल जाता। जबकि जाँच टीम ने रिपोर्ट में बताया कि होटल संचालक की लापरवाही से किचन में शॉर्ट सर्किट से होटल गोयल रेजीडेंसी में लगी थी। आग लगने से 10 लोग आधिकारिक रूप से मृतक माने गए जिनके शवों का पोस्टमार्टम प्रतापगढ़ में कराया गया था। दो दर्जन से अधिक लोगों को गंभीर दशा में प्रयागराज के स्वरूप रानी हॉस्पिटल के लिए रेफर किया गया था। वहाँ कितने लोग मृतक हुए और कितने इलाज से सही हुए इसकी सूचना सार्वजनिक नहीं सकी। शासन व प्रशासन मृतकों की संख्या को छिपाता रहा। होटल संचालक मृतकों और घायलों को अस्पताल पहुँचाने के बजाय अपना अभिलेख और कम्प्यूटर आदि हटाने में परेशान रहा ताकि होटल में रुके यात्रियों की असल स्थिति का पता न चल सके।

राज्य का मुख्य सचिव हाईकोर्ट में शपथ पत्र दे और न्यायालय को विश्वास दिलाये कि प्रकरण की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जाँच कराई जा रही है। जाँच के लिए मंडलायुक्त राजन शुक्ल प्रयागराज को नियुक्त किया गया। मण्डलायुक्त प्रयागराज की निगरानी में अपर आयुक्त कनक त्रिपाठी सहित दो सदस्य नियुक्त किये गए। कई पेज की जाँच रिपोर्ट तैयार हुई। प्रथम दृष्टया होटल संचालक को दोषी ठहराया गया। साथ ही होटल संचालन के लिए सम्बंधित विभागों से जारी होने वाली NOC के अधिकारियों को दोषी बताया गया। अंत में अपर जिलाधिकारी प्रतापगढ़ और स्वयं जिलाधिकारी प्रतापगढ़ को पर्यवेक्षणीय शिथिलता का दोषी बताया गया। जैसे ही इस बात की जानकारी मंडलायुक्त राजन शुक्ल को हुई तो अपर आयुक्त कनक त्रिपाठी से उनकी कहासुनी हो गई। फिलहाल अपर आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट पर कायम थी। किसी तरह के संशोधन से इंकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि कनक त्रिपाठी को अपर आयुक्त पद से हाथ धोना पड़ा।

तत्कालीन जिलाधिकारी अमृत त्रिपाठी और तत्कालीन उप जिलाधिकारी सदर जेपी मिश्र ने होटल गोयल रेजीडेंसी और होटल शशांक की बिल्डिंग को मानक के विपरीत गैरकानूनी पाया और उसे ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया। बाद में हर घटना के बाद जिस तरह प्रशासनिक अमला लीपापोती करके मामले को ठंडे बस्ते में डाल देता है। ठीक उसी तरह होटल गोयल रेसीडेंसी में लगी आग और उसमें जान गंवाने वाले लोगों के प्रकरण में किया गया। ताज्जुब की बात यह रही कि सरकार की तरफ से मृतक के परिजनों को कोई सहायता राशि नहीं दी गई और न ही होटल संचालक की तरफ से किसी को कोई मुआवजा दिया गया। किसी भी जनहानि की घटना पर अखिलेश सरकार दोनों हाथ से परिजनों को मुआवजा देती रही, परन्तु प्रतापगढ़ के होटल गोयल रेजीडेंसी में मृतकों के परिजनों को फूटी कौड़ी नहीं दिया। न ही गंभीर रूप से घायलों के ईलाज के लिए एक रुपये दिया। सरकार पूरी तरह से असंवेदनशील बनी रही।

मजेदार बात यह रही कि योगी सरकार बनने के बाद होटल संचालक सुनील कुमार गोयल भाजपा में शामिल हुए और अपनी माया के बल पर शासन व प्रशासन को अपने प्रभाव में लेकर होटल का संचालन नाम बदलकर उसी ध्वस्तीकरण वाली बिल्डिंग में पुनः कर लिया गया। सवाल उठता है जो लोग होटल गोयल रेजीडेंसी में अपनी जान गंवाए क्या उन्हें न्याय मिला ? क्या यह सत्य नहीं कि होटल गोयल रेजीडेंसी में 10 लोग अपनी जान नहीं गंवाए ? यदि यह सत्य है तो क्या उन्हें न्याय मिला ? यहाँ तो सत्य परेशान नहीं हुआ, बल्कि सत्य पराजित भी हो गया। सुनील कुमार गोयल सरीखे मायाबी ब्यक्ति ने सत्य का गला घोंटकर मौज कर रहा है। आज तो हरिश्चंद्र के खानदान से बड़ा ईमानदार और स्वयंभू रईस बताने से भी गुरेज नहीं करता। याद रहे कि राजधानी दिल्ली में उपहार छवि गृह के अग्निकांड में 40 साल बाद फैसला आया था। उसके संचालक जेल गए थे। साथ ही मुआवजा भी देना पड़ा था। पर इतनी देर से मिले न्याय का कोई मायने नहीं होता।

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