महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर, शिंदे सरकार में शामिल हुए अजित पवार, बने डिप्टी सीएम, सरकार में आठ मंत्री शामिल
आईये जाने एनसीपी में अब तक क्या-क्या हुआ ?
महाराष्ट्र के राजनीति जानने से पहले यह जानना जरुरी है कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का गठबंधन हुआ करता था और दोनों पार्टियां मिलकर दो बार सरकार भी बना चुकी हैं। साल-2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला, परन्तु मुख्यमंत्री पड़ को लेकर दोनों पार्टियों के नेताओं में तालमेल न बैठ सका तो शिवसेना सुप्रीमों उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पड़ की चाहत में कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन कर सरकार बना लिए और अपने पुराने सहयोगी पार्टी भाजपा को दांव देते हुए जोर का झटका धीरे से दिया।
इस सियासी बदलाव की कहानी नवंबर- 2019 से शुरू हुई थी। तब विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा को 105 सीटों पर जीत मिली थी। शिवसेना के 56 और एनसीपी के 54 प्रत्याशी चुनाव जीते थे। कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाली शिवसेना ने मुख्यमंत्री के मुद्दे पर गठबंधन तोड़ लिया। भाजपा भले ही सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन बहुमत के आंकड़ों से दूर थी। बहुमत के लिए पार्टी को 145 विधायकों का समर्थन चाहिए था। आनन-फानन में अजित पवार ने एनसीपी का समर्थन दे दिया और देवेंद्र फडणवीस सीएम बन गए। अजित पवार ने डिप्टी सीएम का पद की शपथ ली।
पद की चाहत और अति महत्येवाकांक्षा में अजित पवार ने सारे निर्णय स्वयं के बल पर लिया था। इसके लिए उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की मंजूरी भी नहीं ली थी। कुल मिलाकर ये एक तरह से बगावत ही थी। इसका असर हुआ कि पांच दिन के अंदर ही एनसीपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया। अजित चाहते हुए भी भाजपा के साथ नहीं जा पाए। देवेंद्र फडणवीस की सरकार गिर गई। उधर एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनाए गए, जबकि अजित पवार को डिप्टी सीएम का पद फिर से मिल गया। जब शिवसेना में दो फाड़ हुआ और वापस भाजपा की सरकार बनी तो अजित पवार गुट में हलचल तेज हो गई। कई एक्सपर्ट कहते हैं कि अजित पवार गुट चाहता था कि भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र में राजनीति करें, जबकि शरद पवार ऐसा नहीं चाहते थे।
एनसीपी के अध्यक्ष पद से 2 मई को शरद पवार ने अचानक इस्तीफा दे दिया। 24 घंटे तक इसको लेकर खूब गहमा-गहमी रही। बाद में नेताओं के कहने पर पवार ने अपना इस्तीफा वापस भी ले लिया। हालांकि, तभी ये तय हो गया था कि शरद पवार पार्टी में कुछ बड़ा करने वाले हैं। पार्टी के 25वें स्थापना दिवस समारोह पर शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्ष के नामों का एलान किया। इसमें एक बेटी सुप्रिया सुले हैं तो दूसरे पार्टी के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल का नाम है। सुप्रिया को केंद्रीय चुनाव समिति का प्रमुख भी बनाया गया। इस दौरान अजित को लेकर कोई एलान नहीं किया गया। बस यही वह वजह थी, जिससे अजित पवार नाराज हुए और वह बगावत करने का फैसला अंदर ही अंदर ले लिया।
चाचा शरद पवार से नाराज थे,अजित पवार…
पार्टी सुप्रीमों शरद पवार के निर्णय से भतीजे अजित पवार की नाराजगी जब सार्वजानिक हुई तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हुई थी कि अजित पवार कहीं अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में जा सकते हैं और शिंदे सरकार में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, पार्टी लगातार इस पर पर्दा डालती रही। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता अजित पवार ने हाल ही में मीडिया में आई उन खबरों को खारिज कर दिया था, जिनमें कहा जा रहा था कि सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को संगठन का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से वह नाखुश हैं। अजित पवार ने कहा था कि जो लोग कह रहे हैं कि कोई जिम्मेदारी नहीं मिली, मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि मेरे पास महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी है। वहीं, शरद पवार ने भी कहा था कि अजित नाराज क्यों होंगे। उनकी सहमति से ही सब फैसले लिए गए हैं। हालांकि, अब साफ हो गया है कि अजित पवार पार्टी से नाखुश थे। उनके नाखुश होने वाली बात अफवाह नहीं बल्कि सच थी।