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नवागत बीडीओ जीतेंद्र यादव ने ठप करा दी राशन घोटाले की जांच, पूंछने पर अब केवल वे कर रहें हैं,आनाकानी

जांच रिपोर्ट देने के पहले ही दोनों अधिकारियों का स्थानांतरण हो गया। क्या जांच अधिकारी के तवादले से मामले को ठंडे बस्ते में डाल देना उचित होगा ? क्या तवादला होने से भ्रष्टाचार की समस्या खत्म हो गई ? गरीबों के अनाज पर डाका डालने वाले पर कार्रवाई कब होगी ? ऐसे अनगिनत सवाल हैं, जिनके जवाब सिस्टम में बैठे भ्रष्ट अफसरों के पास नहीं होते और वह बगल झाँकने लगते हैं।  

पूर्व बीडीओ के आदेश पर पूर्व एडीओ सी आजाद सिंह द्वारा प्रीतमपुर ग्राम सभा समूह से राशन के सम्बंध में जानकारी लेते हुए…

प्रतापगढ़। शिकायत का आधार चाहे जितना पुख्ता और ठोस हो, परन्तु भ्रष्ट ब्यवस्था के आगे डीएम तोड़ देती है। केंद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार लाख दावे किये कि उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जायेगा। परन्तु सूबे की भ्रष्ट नौकरशाही ने भी कमर कसते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने वालों का मनोबल ही गिरा दिया। जल्दी तो कोई ब्यक्ति किसी भ्रष्टाचार की शिकायत करने के लिए आगे नहीं आता और कभी कोई हिम्मत करके आ भी गया तो उससे इतना चक्कर लगवाया जाता है कि वह थक हारकर बैठ जाने में अपनी भलाई समझता है। भ्रष्टाचार का एक प्रकरण प्रतापगढ़ के बाबागंज ब्लॉक से सम्बन्धित प्रकाश में आया। जिसमें शिकायतकर्ता ने बड़ी उम्मीद के साथ शिकायत की थी कि मामले की जांच निष्पक्षता के साथ होगी और उस पर कठोर कार्रवाई होगी, परन्तु सिस्टम में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

भ्रष्टाचारियों के संरक्षक बन गए बाबागंज के नवागत बीडीओ जीतेंद्र यादव…

सारी हकीकत जानने के बाद भी नवागत बीडीओ जीतेंद्र यादव ने ठप करा दी राशन घोटाले की जांच। जांच के बारे में पूछने पर अब केवल वे आनाकानी कर रहें हैं। शासनादेश और शिकायत को भी बाबागंज ब्लाक के बीडीओ और उनके मातहत ठेंगे पर रखतें हैं। पूर्व बीडीओ संतोष यादव ने राज्य सरकार के शासनादेश सहित मीडिया में प्रकाशित खबरों को संज्ञान में लेकर प्रीतमपुर और चेतरा गांव में कोरोना काल में आए खाद्यान्न घोटाले की एडीओ सहकारिता आज़ाद सिंह को जांच सौपी थी। जांच में ग्रामीणों ने बताया था कि उनको राशन नहीं मिला है। कोटेदार से राशन उठान करने के बाद भी समूहों ने राशन नही बांटा था। जांच रिपोर्ट देने के पहले ही दोनों अधिकारियों का स्थानांतरण हो गया। क्या जांच अधिकारी के तवादले से मामले को ठंडे बस्ते में डाल देना उचित होगा ? क्या तवादला होने से भ्रष्टाचार की समस्या खत्म हो गई ? गरीबों के अनाज पर डाका डालने वाले पर कार्रवाई कब होगी ? ऐसे अनगिनत सवाल हैं, जिनके जवाब सिस्टम में बैठे भ्रष्ट अफसरों के पास नहीं होते और वह बगल झाँकने लगते हैं।

मामलें में प्रीतमपुर ग्राम सभा के ग्रामीणों ने जनसुनवाई पोर्टल पर भी की थी शिकायत लेकिन जांच में भी पंचायत सचिव राम प्रताप यादव ने कर दिया खेल। राशन न बटने का अभिलेखीय प्रमाण होने के बाद भी दिखा भी पंचायत सचिव राम प्रताप ने राशन बटने की आख्या दे दिया। बाबागंज ब्लाक के भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मियों के बीच में फंसकर गरीबों का निवाला रह गया। कैबिनेट मंत्री रहे मोती सिंह के गृह जिले में स्वयं सहायता समूह और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने गरीबों के निवालों को ही हजम कर गए। राज्य सरकार के आदेश देने के बाद भी भ्रष्ट अधिकारियों ने आदेश का अनुपालन नहीं कराया। इससे यह तय होता है कि नीचे से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार ब्याप्त है। शिकायत पर जांच के आदेश तो दे दिए जाते हैं, परन्तु अंदर से सब मैनेज रहता है और नीचे से अधिकारी जो चाहता है, वही रिपोर्ट जाती है और रिपोर्ट के साथ रूपये की पोटली अलग से चली जाती है। सूबे में ब्याप्त भ्रष्टाचार की यही असलियत है। ऐसे में यह सोचना कि भ्रष्ट ब्यवस्था को कोई उखाड़ फेंकेगा तो यह संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। क्योंकि लोगों के रगो में खून की तरह भ्रष्टाचार के वायरस भी दौड़ रहे हैं।

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